मानव जाति ने अपनी सुख-सुविधा के लिए प्रकृति चक्र को विनाश..!!
बढ़ते वैश्विक ताप यानी ग्लोबल वार्मिंग के कारण हर वर्ष गर्मी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। वैश्विक स्तर पर ठंडे देशों में भी तापमान में बढ़ोतरी हो रही है, हालात यही रहे तो आने वाले वर्षों में तापमान जीवधारियों की सहनशक्ति के पार पहुंच सकता है,ऐसी स्थिति में पृथ्वी पर जीवन कैसा होगा, इसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है। पृथ्वी का बढ़ता तापमान हमारे लिए आपदा का सबब बनता जा रहा है। ऋतु चक्र में परिवर्तन, असमय बारिश और आंधी का आना भी पर्यावरण के असंतुलन को दर्शाता है। मानव जाति ने अपनी सुख-सुविधा के लिए प्रकृति चक्र को विनाश के गर्त में धकेल दिया है!हम सब इसका दुष्परिणाम भुगतने को विवश हैं छोटे-छोटे प्रयासों से पर्यावरण संतुलन बना रखने में हम अपना योगदान दे सकते हैं। वृक्ष को सहेज-संरक्षित करके, नदियों को प्रदूषण से बचाकर, वर्षा जल को सहेजकर और सौर ऊर्जा को बढ़ावा देकर हम पर्यावरणीय संकट को एक हद तक कम कर सकते हैं।