तथागत बुद्ध बनाम वाल्मीकि/तुलसीदास

 

तथागत बुद्ध बनाम वाल्मीकि/तुलसीदास

जय भारत साथियों 🇮🇳🇮🇳🇮🇳आज हम एक बहुत बडे झूठ का पर्दाफाश करने वाले हैं एक बहुत बडी गलतफहमी को दूर करेगें, चूंकि यह विषय काफी प्राचीन है इसलिए लेख थोडा लम्बा होगा, लेकिन 1 मिनट का समय निकालकर पढें जरूर ।

हम जिस देश में रहते हैं। उस देश का नाम भारत है भारत शब्द व्यक्ति वाचक नहीं बल्कि भाव वाचक  शब्द है भा अर्थात ज्ञान, रत मतलब लगातार (अनवरत) जहां से लगातार ज्ञान का प्रकाश निकलता है उस भूभाग को भारत कहा जाता है। वही भूमि जहां तथागत बुद्ध के धम्म रूपी ज्ञान (प्रकाश) से पूरी दुनिया को ज्ञान मिला, जहां नानंदा तक्षशिला विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों में देश विदेश से छात्र छात्राएं पढने आते थे। और इस तरह तथागत बुद्ध की शिक्षाओं की वजह से भारत को विश्व गुरू का गौरव प्राप्त हुआ।

आज भी जब भारत के राजनेता विदेशों में जाते हैं तब वे बोलते हैं। हम बुद्ध के देश से आए हैं। अर्थात पूरी दुनिया में आज भी भारत की पहचान सिर्फ तथागत बुद्ध से होती है। जरा गौर कीजिए, जिन तथागत बुद्ध का पूरी दुनिया इतना सम्मान करती है उनके बारे में वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकाण्ड में   वाल्मीकि लिखते हैं कि जैसे चोर दण्डनीय होता है उसी प्रकार तथागत बुद्ध और बौद्धमतावलंबी भी दण्डनीय हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि वाल्मीकि के मन में तथागत बुद्ध के प्रति कितनी नफ़रत थी। दूसरी बात तथागत बुद्ध  का जन्म 563 ईसा पूर्व {अब से 2585 वर्ष पूर्व} के काफी समय बाद वाल्मीकि रामायण लिखी गयी। इसीलिए बुद्ध की चर्चा वाल्मीकि रामायण में की गयी है।

_दूसरी बात बुद्ध के बारे में ऎसी घटिया वाहियात बाते लिखने वाला नसेडी, भंगेडी, गंजेडी हो सकता है, मूर्ख हो सकता है विद्वान कदापि नहीं। बात सिर्फ वाल्मीकि तक होती तो बात और थी, उनके काफी समय बाद जब तुलसीदास ने रामचरित मानस लिखा, तो तुलसीदास ने सुन्दर कांड में लिखा..._

"लंका निश्चर निकर निवासा। इहां कहां सज्जन करि वासा।।"

अर्थात लंका में निशाचरों का वास है वहाँ सज्जन लोग नहीं रहते...

_सोचिए तुलसीदास ऎसा क्यों लिखे होगें??? क्योंकि तथागत बुद्ध के सीलों पर चलने वाला देश सिलोन वर्तमान (श्रीलंका) तथागत बुद्ध का अनुयाई देश है। सम्राट अशोक के समय से लेकर आजतक श्रीलंका का बहुसंख्यक वर्ग बौद्ध हैं। अब ये बात तुलसीदास कैसे हजम कर पाते, इसलिए उन्होंने तथागत बुद्ध का नाम लिए बिना बुद्ध को मानने वाले पूरे देश को ही निशाचरों का देश कह दिया।

कुल मिलाकर वाल्मीकि और तुलसीदास ने जिस तरह से  तथागत बुद्ध और उनके अनुयायियों के बारे में जो अपशब्द लिखें है वह बिल्कुल गलत है जिस धर्मग्रंथ मे तथागत बुद्ध के बारे में ऎसी बातें लिखी हैं मैं ऎसे धर्मग्रंथों का बहिष्कार करता हूँ और प्रबुद्ध वर्ग से निवेदन करता हूँ कि इस मामले को लेकर माननीय उच्च न्यायालय जाएं।

महापुरुषो के सम्मान में,आओ अब मैदान में_🤝🤝🤝

आपका शाक्य बीरेन्द्र मौर्य

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