कहीं राजनीतिक दबाव व क्षेत्रीय पूर्ति अधिकारियों की मिलीभगत तो नहीं
कर्नलगंज, गोण्डा। तहसील क्षेत्र के ब्लॉक कर्नलगंज अन्तर्गत ग्राम पंचायत पाण्डेय चौरा की कोटेदार श्रीमती उषा सिंह के विरुद्ध बीते दिनों गंभीर अनियमितताओं की हुई शिकायत में जांचोपरांत आरोप सही पाए पाये जाने के बावजूद जिलापूर्ति अधिकारी गोंडा द्वारा कोटे की दुकान का निलंबन ना करके मात्र ₹ 2000 का आर्थिक दंड लगाये जाने से डीएसओ की कार्यप्रणाली सवालिया घेरे में है। वहीं उपरोक्त प्रकरण में कहीं राजनीतिक दबाव व क्षेत्रीय पूर्ति अधिकारियों की मिलीभगत तो नहीं जैसे सवालों की झड़ी लग रही हैं।
प्रकरण तहसील व विकास खण्ड कर्नलगंज के ग्राम पंचायत पाण्डेय चौरा के कोटे की दुकान से जुड़ा है, जिसके संबंध में पूर्व में अनेकों ग्रामीणों द्वारा गंभीर अनियमितताओं को लेकर की गई शिकायत के क्रम में जिला पूर्ति अधिकारी ने शिकायतकर्ता से बयान दर्ज करके आरोप सही पाए पाये जाने पर बीते 21 अप्रैल 2022 को पत्रांक संख्या 506 आदेश जारी करके कोटेदार श्रीमती उषा सिंह के विरुद्ध मात्र ₹2000 का आर्थिक दंड (जुर्माना) लगाया है। जिसकी प्रतिलिपि जिला पूर्ति अधिकारी ने उप जिलाधिकारी करनैलगंज, क्षेत्रीय खाद्य निरीक्षक एवं पूर्ति निरीक्षक करनैलगंज, वितरण निरीक्षक करनैलगंज तथा कोटेदार श्रीमती उषा सिंह को भेजा है।
शिकायत कर्ताओं में जगदंबा सिंह पुत्र ठाकुर प्रसाद, अमन सिंह पुत्र गुलाब सिंह, शिवकुमार पुत्र शीतला प्रसाद, कुसुम पत्नी अमर बहादुर व कुसुम सिंह अंत्योदय कार्ड धारक से बयान लेने के बाद यह कार्रवाई की गई है। वहीं इस तरह की कार्रवाई से कोटेदारों का हौसला बढ़ता प्रतीत हो रहा है। ऐसे में लोगों का कहना है कि जब आरोप सच पाए गए उसके बावजूद भी कोटेदार का कोटा निलंबित ना करना राजनीतिक दबाव तथा अधिकारियों की मिलीभगत को दर्शा रहा है।
एक कोटेदार के लिए ₹2000 जुर्माना नहीं बल्कि ब्लैक और अनाज कम देने का इनाम लग रहा है। लोगों का कहना है कि यदि जिला पूर्ति अधिकारी ईमानदार हैं और भ्रष्ट सिस्टम में शामिल नहीं हैं तो सरकार की मंशा के अनुरूप पूर्ण रूप से पांच किलो अनाज प्रति यूनिट कार्ड धारकों को दिलाने का काम करना चाहिए और निर्धारित मात्रा में खाद्यान्न वितरण ना करने वाले कोटेदारों के विरुद्ध महज खानापूर्ति ना करके सख्त कार्यवाही कर सरकार की मंशा को धरातल पर साकार करने का कार्य करना चाहिए। वहीं उपरोक्त प्रकरण में कहीं राजनीतिक दबाव व क्षेत्रीय पूर्ति अधिकारियों की मिलीभगत तो नहीं जैसे सवालों की झड़ी लग रही है।