कर्नलगंज, गोण्डा। तहसील मुख्यालय स्थित मंडी समिति कर्नलगंज में हुए करोड़ों रुपए के घोटाले के मामले में एक नया मोड़ आ गया है, जिसमें एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी द्वारा अपने को निर्दोष बताते हुए उच्चाधिकारियों से न्याय की गुहार लगाई गयी है। मालूम हो कि माला मंडी समिति कर्नलगंज से जुड़ा है, जहां प्राप्त जानकारी के अनुसार तत्कालीन मंडी समिति सचिव व कर्मचारियों ने धोखाधड़ी कर विभाग को करोड़ों रुपए की क्षति पहुंचाई है।जिसका खुलासा विभागीय ऑडिट में हुआ था। जिस पर उपनिदेशक प्रशासन ज्योति यादव ने अधिकारियों द्वारा पहुंचाई गई वित्तीय क्षति को 15 दिसंबर तक जमा करने के निर्देश दिये थे।
मामले में तत्कालीन मंडी सचिव मोहम्मद इसराइल व स्वर्गीय प्रमोद श्रीवास्तव अमरनाथ मंडी सहायक व मंडी परिषद के कर्मचारी स्वर्गीय हनुमान प्रकाश श्रीवास्तव और चपरासी रामदीन पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए थे। अब घोटाले के मामले में मंडी समिति के दो कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया है व दो कर्मचारियों की मृत्यु हो चुकी है। यहां बड़ा सवाल यह है कि मृतक कर्मचारियों द्वारा किए गए घोटाले की राशि की वसूली किस प्रकार होगी।
जांच का विषय यह भी है की दोषी यही दोनों कर्मचारी ही हैं या और भी कोई इसमें शामिल है। बीते कई वर्षों से जब घोटाला किया जा रहा था यह किसी छोटे कर्मचारी का काम नहीं हो सकता कहीं ना कहीं इसमें बड़े भी शामिल हैं और बड़े स्वयं की गर्दन बचाते हुए छोटों को फंसा कर मलाई काट रहे हैं जिसका खुलासा मंडी के चपरासी रामदीन के निदेशक राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद के उप निदेशक प्रशासन विपणन अयोध्या को दिए गए पत्र में हुआ है।
जिसमें उसनेे अपने ऊपर लगाए गए आरोपोंं को गलत बताया है। 2013/14 से वर्ष 2020/21 की गई विभागीय विशेष संप्रेक्षण आख्या में पता चला है की 2,25,17,043 रुपये की मंडी समिति के कर्मचारियों द्वारा क्षति पहुंचाई गई। कार्रवाई की जद में आये रामदीन ने पत्र में कहा है कि उसके ऊपर रूपए 967330 की क्षति दायित्व का निर्धारण करते हुए प्रति पूर्ण कराने के निर्देश दिए गए है। मंडी समिति के कर्मचारियों द्वारा व्यापारियों से बिना मंडी शुल्क व विकास सेस वसूल किये बिना उन्हें गेट पास जारी कर दिए गए। जिसमें मंडी सहायक अमरनाथ से 8762763 रुपए के क्षतिपूर्ति का दायित्व निर्धारित करते हुए व अन्य व्यक्तियों से उनके द्वारा की गई विभागीय नुकसान के प्रतिपूर्ति कराने के निर्देश 27 नवंबर 2021 को जारी किए गए पत्र में कहा गया था,इसके लिए दोषी कर्मचारियों के सभी प्रकार के देय जो विभाग द्वारा किए जाने हैं उन पर रोक लगा दी जाए और जब तक उनके द्वारा पहुंचाई गई आर्थिक क्षति की पूर्ति नहीं की जाती है तब तक इन सभी के सेवानिवृत्त संबंधी भुगतान व अन्य भुगतान पर रोक लगा दी गयी थी। घोटाले की जड़ें कहींं ना कहीं बहुत गहरायी तक जाती दिख रही है।
करीब एक दर्जन से अधिक उन फर्मों को रजिस्टर्ड कर दिया गया जो अस्तित्व में ही नहीं हैं उन्हीं फर्मों के माध्यम से फर्जी गेट पास बनााकर घोटालेेे पर घोटाले किए जाते रहे और छोटेे कर्मचारियों पर मौखिक रूप से दबाव बनाया गया जिस कार्य को करने के लिए वे अधिकृत नहीं थे वह कार्य भी उनसे लिया गया।
जिससे यह स्पष्ट होता है कि कहीं बड़े अधिकारियो की मिलीभगत तो इस घोटाले की जन्मदाता नहीं ? यदि पूरे मामले की गहनता व निष्पक्षता से जांच की जाए तो इससे बड़ा घोटाला भी सामने आ सकता हैैैै और कई बड़ों की गर्दन फंस सकती हैं। अब देखना यह होगा कि मामला यहीं शान्त हो जाता है या घोटाले के आंच की लपट बड़े जिम्मेदारों तक पहुँचती है।