🖋️शादाब अली की कलम से 🖋️
किसम किसम की है प्रथा,बचो हो जितना संभव यथा” जी हाँ दोस्तों दुनियाभर में कई भाषाएं है , रिश्ते हैं नाते हैं दोस्त हैं भले मानस हैं लेकिन एक ऐसी कौम भी इसी दुनिया में है जिसको चमचा अर्थात चापलूस कहते हैं शब्द भले चुभने वाला हो लेकिन है बड़े काम का जी हाँ भारत में तो ये चमचे आपको दफ्तर से दूकान तक और साहब से सरकार तक बहुतायत में मिल जायेंगे
ये चमचे भी कई क्वालिटी और वेरायटी में अपनी नायाब फितरती ज़ेहन से सर्वेसर्वा सर्वव्यापी और सर्वप्रभावी नज़र आते हैं दरअसल चमचागिरी चमचे उन्हीं की करते हैं जिनको चम्मचगिरि पसंद हो ऐसे लोगों को ये चम्मच यानि चमचे बखूबी सूंघ लेते हैं और अपनी लपलपाती जुबां से एकदम से घेर लेते हैं कुछ लोग तो चमचगिरी में डिप्लोमा डिग्री भी लिए नज़र आते हैं यानि सामने वाला पूरी तरह से आ जाता है… राजनीति में किसी भी नेता के लिए चमचो की अहमियत को नकारा नही जा सकता , हर नेता बिना चमचो के न केवल अधूरा होता है बल्कि सच्चाई तो ये है कि चमचो के बिना किसी भी नेता का अस्तित्व ही नही होता है …. कड़वी कसैली इसी चमचागिरी की विलक्षण प्रतिभा पर इस लेख में आप जानेंगे इनकी वेरायटी और क्वालिटी , आज हम बात करेंगे चमचो के प्रकार और उनको प्राप्त होने वाले लाभो के संदर्भ में , चलिए अब बात इन चमचों के प्रकार भी जान लीजिये
चमचा नंबर 1 राजनीति में किसी भी नेता के लिए चमचो की अहमियत को नकारा नही जा सकता,हर नेता बिना चमचो के न केवल अधूरा होता है बल्कि चमचो के बिना किसी भी नेता का अस्तित्व ही नही होता ,आज हम बात करेंगे चमचो के प्रकार और उनको प्राप्त होने वाले लाभो के संदर्भ में , सबसे पहले नम्बर आता है गुरु अर्थात अभिभावक अर्थात मार्गदर्शक इस श्रेणी में वो नेता आते है जिनका सहयोग पाकर या जिनके सानिध्य में नेता,नेता बनता है और फिर उसे सिर्फ दिखावे का सम्मान मिलता है या दिया जाता है आर्थिक लाभ या किसी भी तरह का लाभ नही मिलता,
चमचा नंबर 2
दूसरा है सखा अर्थात मित्र रुपी चमचा ,जो नेता की मजबूरी या ताक़त के प्रतीक होते है,नेता के मंत्रिमंडल अथवा कोर कमेटी के सबसे ताक़तवर शख्स के रूप में इनकी पहचान होती है,यही सबकुछ तय करते है अर्थात नेता की मजबूरी होती है ये श्रेणी, किसी भी तरह का सबसे ज़्यादा लाभ या सबसे ज़्यादा हानि इसी श्रेणी को होता है।
चमचा नंबर 3
बड़ी दिलचस्प है ये कैटेगरी शिष्य श्रेणी ,इस श्रेणी में नेता शिष्य को भरपूर लाभ देता है , शिष्य के लिए शर्त होती है कि उसे 24 घंटे नेताजी के चरण वंदना में अर्थात सेवा में रहना होता है , खुफिया फाइलों से लेकर खातों तक का राज़दार ये शिष्य नेता जी का पत्नी से ज्यादा वफादार , राज़दार होता है शिष्य लेकिन शिष्य के मन मे ख्वाहिश रहती है अपने नेता की कुर्सी पर बैठने की,इच्छाओं को नियंत्रित रखता है,नेता को पता होता है शिष्य की इच्छाओं के बारे में,भरपूर पैसा कमाने के अवसर उपलब्ध कराए जाते है,शिष्य द्वारा अपने नेता को भी आर्थिक सुविधाओं का समर्पण जारी रहता है।
चमचा नम्बर-4
फिर कार्यकर्ता श्रेणी,नेता की कार्यकर्ता में आस्था और कार्यकर्ताओं की नेता में आस्था, मौका,माहौल और लाभ पर आधारित होती है,वफादारी दोनो और से नही होती मगर लाभ हानि पर आधारित ये श्रेणी शिफ्ट हो सकती है,कही भी-कभी भी,इनकी आस्था पार्टी समर्पित होती है,
चमचा नंबर-5
इसके बाद भक्त आते है, ये श्रेणी बिना लाभ हानि की परवाह किये नेता जी को समर्पित होती है नेता जी इन्हें सपनो में ऐश कराते है और अहसास कराते है कि ये सब आपके लिए है ,ये श्रेणी सिर्फ नेता जी को समर्पित रहती है,नेता जी इनसे मुस्कराकर मिलते है कभी कभार चाय भी पिलवा देते है,भक्त इसी में खुश हो जाते है,अपनी जेब से भी खर्चा-चर्चा करते है
चमचा नंबर-6
अंत में नंबर आता है अंधभक्तों का,जिनके लिए उनका नेता ही सर्वश्रेष्ठ, सर्वमान्य, सर्वोच्च होता है,वो सही करें या गलत करें वो ही स्वीकार्य होता है माता भी वो,पिता भी वो,गुरु भी वो,सम्मान भी वो,स्वीकार भी वो,नेता जी ने जो कह दिया वो ही कानून है,वो ही धर्म है,वो ही कर्तव्य,वो ही आस्था, वो ही मर्यादा, इस श्रेणी के लोग अपना सबकुछ भूलकर नेता जी के सम्मान में समर्पित रहते है,लाभ-हानि मायने नही रखती इनके लिए ,अपना खर्चा भी करते है,हर्जा भी करते है,चर्चा भी करते है,इनके यहाँ कभी कभार नेता जी चाय पीने या खाना खाने की इच्छा व्यक्त कर देते है वो इसी में खुश हो जाते है,नेता जी कभी कभार मेहरबान हुए तो इनके कहने से फ़ोन-वोन कर देते है,चिट्टी लिख देते है या थोड़ा बहुत आर्थिक लाभ पहुँचवा देते है,चिठ्ठी या फ़ोन से काम होने की कोई गारंटी नही होती ,बस यही प्रकार है और यही नानाप्रकार है राजनैतिक चमचो के .. उम्मीद है आपको भी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हर मोड़ पर हर समाज की घटनाओं में इन्ही पांच प्रकार के चमचो से वास्ता भी पड़ता होगा लेकिन कमल ये है कि जिस तरह सांस के बिना ज़िंदगी असंभव है वैसे ही चमचों के बगैर हाकिम की महफ़िल की रौनक अधूरी है |
चमचागिरी करना कोई बड़ी फ़नकारी नहीं