मध्यप्रदेश बैतूल वाहन राजसात करने का वन विभाग का हथकंडा, वन अपराध के आरोपी को नहीं दी विधि सहायता
बैतूल जिले से : जिला ब्यूरो चीफ आशीष पेंढारकर की खबर
बैतूल। मप्र राज्य। भारत सरकार एवं राज्य सरकार को पता नहीं हैं कि नगारिको के साथ कैसे कैसे अन्याय एवं अत्याचार सरकारी विभागों में किए जाते हैं और कानून एवं न्याय की प्रक्रिया की आड़ में संपत्ति को हड़पने का एक धंधा किया जाता हैं। वन विभाग का एक एैसा ही मामला सामने आया हैं जिसमें वन अपराध के आरोपी को वाहन मुक्त करने का झांसा वन कर्मियों द्वारा दिया। जाकर बचाव पक्ष में पैरवी के लिए विधिक सहायता उपलब्ध नहीं करवाकर वाहन को राजसात कर लिया गया।
प्राधिकृत अधिकारी एवं उपवनमंडलाधिकारी आमला (सामान्य) द्वारा वन अपराध क्र0 571/2019 में महज 875 रूपए की खनिज रेत 0.0360 घनमीटर वनोपज के लिए एक आदिवासी का ट्रैक्टर ट्राली को राजसात कर लिया गया हैं। राजसात के आदेष को देखकर मालूम पड़ता हैं कि आरोपी को विधिक सहायता उपलब्ध नहीं करवाई गई हैं और अभियोजन साक्षीगण का प्रतिपरीक्षण स्वयं आरोपी को करना पड़ा हैं। वन विभाग में वन अपराध के मामलों में सुनवाई इसी तरह से की जाती हैं। विधि न्याय एवं मानवाधिकार का प्रष्न यह हैं कि वन अपराध के अरोपी को आखिर विधिक सहायता राज्य सरकार के व्यय पर उपलब्ध क्यों नहीं करवाई जाती हैं?
वन अपराध के अरोपीगण संतुलाल पिता तुकाराम निवासी कोल्हूढाना तहसील भैसदेही एवं कमलसिंग उईके पिता रायजू उईके वाहन मालिक निवासी चूनालोमा को भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 26 (1) (छ), 41, 52 मप्र वन उपज (व्यापार विनियमन) अधिनियम 1996 की धारा 5 (1), 15, 16 एवं मप्र अभिवहन (वनोपज) नियम 2000 की धारा 3 के संबंध में कोई जानकारी नहीं हैं, बचाव क्या लेना हैं कोई जानकारी नहीं हैं? तो फिर इनको विधिक सहायता उपलब्ध करवाई जानी चाहिए थी अथवा स्वयं का कोई अधिवक्ता नियुक्त करने का सुझाव प्राधिकृत अधिकारी को देना चाहिए था। वन विभाग के अधिकारी एैसा नहीं करते हैं लेकिन मुख्य वन संरक्षक बैतूल को इसमें कुछ भी गलत नजर नहीं आता हैं। आरोपी कमलसिंग उईके द्वारा मुख्य वन संरक्षक बैतूल के समक्ष पेष की गई अपील को पढ़कर ही बहुत कुछ समझ आ जाता हैं। यह भी देखने में आता हैं कि वन अपराध के झूठे मामले बनाए जाते हैं, कूट रचित साक्ष्य तैयार कर लिए जाते हैं, आरोपी की कानूनी ज्ञान के अभाव का लाभ उठाकर वनकर्मी वाहन मुक्त करवाने का झूठा आष्वासन देकर, आरोपी को मामले में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता नियुक्त नहीं करने की सलाह देते हैं, जिससे वाहन आसानी से राजसात हो जाता हैं जिसे वन विभाग में एक बड़ी उपलब्धी माना जाता हैं।
वन विधि एवं खनिज अपराध के अधिवक्ता भारत सेन कहते हैं कि वन अपराध के मामलों में लघु वन अपराध के लिए वाहन राजसात के आदेष नहीं दिए जाते हैं बल्कि 10 हजार रूपए का अर्थदण्ड आरोपित कर अपराध का प्रषमन कर वाहन को मुक्त किया जाता हैं। उपवनमंडलाधिकारी को मामले के विचारण के पूर्व आरोपीगण को विधिक सहायक उपलब्ध करवाने का वैधानिक दायित्व को पूरा करना चाहिए था। वन विभाग में प्राधिकृत अधिकारी का आदेष सामान्यतः अपील की सुनवाई में मुख्य वन संरक्षक द्वारा पलटा तो नहीं जाता हैं बल्कि न्यायपालिका से ही कोई उपचार मिल पाता हैं तब तक तो आरोपी की जप्त संपत्ति कबाड़ बन जाती हैं।