फिरोजपुर जसमड़ा में मनाया गया बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा का जन्मोत्सव।

उन्नाव:- उत्तर प्रदेश स्टांप वेंडर अध्यक्ष रूपराम मौर्य एवं अशोका द ग्रेट चैरिटेबल ट्रस्ट ऑफ इंडिया के नेतृत्व में हसनगंज तहसील अंतर्गत फिरोजपुर जसमड़ा उन्नाव में बिहार लेनिन बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा का जन्मोत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाया गया।


कार्यक्रम का संचालन अशोका द ग्रेट चैरिटेबल ट्रस्ट के विधिक सलाहकार माननीय राजकुमार मौर्य ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्र नायक महासंघ के संस्थापक माननीय एल बौद्ध ने बिहार लेनिन बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर दिया तत्पश्चात वहां पर उपस्थित समस्त लोगों ने बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा की प्रतिमा पर फूल एवं मालाएं अर्पण किए उत्तर प्रदेश स्टांप वेंडर अध्यक्ष रूपराम मौर्य ने कार्यक्रम में आए सभी वक्ताओं को माला पहनाकर स्वागत किया।


कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजेंद्र सिंह कुशवाहा व वक्तागणो में गिरीश बाबू कुशवाहा, नीरज कुशवाहा, लोक गायिका काजल कुशवाहा, विदिशा मौर्य, एडवोकेट शशिप्रभा शाक्य, रजनी रावत एवं मुख्य वक्ता राष्ट्र नायक महासंघ संस्थापक माननीय ए एल बौद्ध ने बाबू जगदेव प्रसाद का संक्षिप्त जीवन परिचय एवं उनके कार्य पर प्रकाश डाला कहा कि भारत के लेनिन जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को गौतम बुद्ध की ज्ञान स्थली बोध गया के समीप कुर्था प्रखंड के कुरहारी नामक ग्राम में हुआ था। इनका परिवार अत्यंत निर्धन था। इनके पिता प्रयाग नारायण कुशवाहा पेशे से प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक थे एवं इनकी माता रासकली पेशे से गृहणी थीं।


वे बचपन से ही ज्योतिबा फूले, पेरियार रामास्वामी नायकर,  बाबा साहेब  डॉ.भीम राव अम्बेडकर आदि जैसे 

 महामानवों के विचारों से प्रभावित थे। बाबू जगदेव प्रसाद  बचपन से ही विद्रोही स्वभाव व समता के पक्षधर थे। बचपन में बिना गलती के शिक्षक ने जगदेव के गाल पर जोरदार तमाचा दिया था। कुछ दिनों बाद वही शिक्षक कक्षा में पढ़ाने के समय सो रहा था। तब 

जगदेव ने शिक्षक के गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया था। शिक्षक ने जब इसकी शिकायत प्रिंसिपल से की तो जगदेव निडर होकर बोले 'गलती के लिए सजा सबको बराबर मिलनी चाहिए अब चाहे वह शिक्षक हो या छात्र।'

जगदेव प्रसाद ने अपने पारवारिक समस्याओं से जूझते हुए उच्च शिक्षा पूरी की। उसके बाद वह पटना विश्वविद्यालय से अपनी स्नातक तथा परास्नातक की पढ़ाई किया  और वहीं उनकी मुलाकात चंद्रदेव प्रसाद वर्मा से हुई। चंद्रदेव जी ने उन्हें महापुरुषों के विचारो को पढ़ने के लिए प्रेरित किया। जिससे 

 प्रभावित होकर बाबू जगदेव प्रसाद  राजनीतिक गतविधियों में भाग लेने लग गए और  सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गये।माता जी पूजा अर्चना बहुत करती थी,कि उनके सुहाग सहित पूरा परिवार स्वस्थ्य  रहेगा। उनके पति बहुत बीमार हुए तब उन्होंने  खूब पूजा अर्चना तथा देवी - देवताओ से मन्नते मांगी। वे अपने पति को नहीं बचा सकी। बाबू जगदेव ने अपने पिता के अंतिम संस्कार के समय सभी देवी - देवताओ की मूर्तियों और तस्वीरों को अर्थी पर डाल दिया।   उसके बाद उन्होंने देवी - देवताओं और भगवानों से सम्बंधित सभी डकोसलों को जिंदगीभर के लिए नकार दिया।

उस समय  देश में जातिवाद का नशा चरम पर था,  क्योंकि  मनुवादी  व्यवस्था का विरोध जल्दी जल्दी  करने का  कोई साहस नहीं  करता था। किसानों की जमीन की फसल का पांच कट्ठा जमींदारों के हाथियों को चारा देना उस समय एक प्रथा सी बनी हुई थी, इस प्रथा को पंचकठिया प्रथा कहा जाता था।

बाबू जगदेव ने अपने साथियो के साथ मिलकर जब महावत हाथी को लेकर फसल चराने आया तो उसे मना कर दिया। महावत ने जब जबरदस्ती चराने की कोशिश की, तो बाबू जगदेव ने अपने साथियो के साथ मिलकर महावत को सबक सिखा दिया।साथ ही भविष्य में दोबारा न आने की चेतावनी भी दे दी, इस घटना के बाद पंचकठिया प्रथा का अंत हो गया।

बिहार में उस समय समाजवादी आन्दोलन की बयार थी, लेकिन जे.पी. तथा लोहिया के बीच सैद्धान्तिक मतभेद था। जब जे.पी. ने राम मनोहर लोहिया का साथ छोड़ दिया । तब बिहार में जगदेव बाबू ने लोहिया का साथ दिया। उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया और समाजवादी विचारधारा को अपने हिसाब से प्रचार प्रसार किया।

 1967 में बाबू जगदेव प्रसाद संसोपा उम्मीदवार के रूप मे  कुर्था से बड़ी दर्ज की। उनकी सूझ- बूझ से बिहार में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। 25 अगस्त, 1967 में उन्होंने ने शोषित समाज दल नाम से नयी पार्टी बनाई।  उन्होंने ने नारा दिया कि-दस का शासन नब्बे पर,नहीं चलेगा, नहीं चलेगा। सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे भाग हमारा है। बिहार की जनता इन्हें 'बिहार के लेनिन के नाम से बुलाने लगी।

जे पी आन्दोलन को गलत हाथों से निकाल कर जन आन्दोलन बनाया और मई 1974 को 6 सूत्रीय मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने लगे कोई असर न पड़ने पर 5 सितम्बर 1974 से राज्य व्यापी विस्तार दिया। परिणामस्वरूप कुर्था के डी.एस.पी.सत्याग्रहियों को रोका तो जगदेव बाबू ने प्रतिरोध किया। निर्दयी पुलिस ने उनके ऊपर गोली चला दी। जो सीधे उनके गर्दन में जा घुसी और वह बेहोश हो गये, फिर भी पुलिस घसीटते हुए पुलिस स्टेशन ले गयी। चिल्ला रहे थे। पुलिस बन्दूकों के कुंदों से उनकी छाती पर मार रही थी। उनके  पानी मांगने पर उनके मुंह पर पेशाब किया गया। इस प्रकार उन्होंने थाने में ही अंतिम सांस ली। 6 सितम्बर को उनका शव पटना लाया गया। उनकी शव यात्रा में लाखों लोग पहुंचे। इस तरह शोषितों के महान नेता बाबू जगदेव प्रसाद की हस्ती को मिटा दिया गया।

कार्यक्रम के समापन की घोषणा करते हुए उत्तर प्रदेश स्टांप वेंडर अध्यक्ष ने कहा कि शिक्षा ही सर्वोपरि है एक रोटी कम खाएं लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ाएं तो लोगों ने वहीं सहमती जताते हुए अपने बच्चों को पढ़ाने की शपथ भी ली कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद रहे।

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