कुरीतियों एवं अंधविश्वासों के विरुद्ध लड़ने का साहस
यादव शक्ति पत्रिका वर्ष 2006 से वंचित, पिछड़े, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यकों में सामाजिक जागृति लाने तथा उनमें व्याप्त सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों एवं अंधविश्वासों के विरुद्ध संघर्षरत है।समाज में वैज्ञानिक सोच एवं जागृति पैदा कर ब्राह्मणवादी कुप्रथाओं/परम्पराओं के यथार्थ को प्रस्तुत करने का कार्य कर रही है।यह पत्रिका लोगो को बताती है कि किसी भी बात/परम्परा को तर्क, विवेक बुद्धि, वैज्ञानिक सोच से, जानें तब माने। यह पत्रिका ब्राह्मणवादी संस्कृति का भण्डाफोड़ करती है और बहुजन समाज को जागृत करती है। बहुजन समाज के जो लोग इसे पढ़ रहे हैं ,वे जागृत भी हो रहे हैं। अनुसूचित जाति में यह जागृति काफी सन्तोषजनक है, पर पिछड़ी जाति के यादव, कुर्मी, काछी/कोइरी/कुशवाहा/मौर्य,लोहार,बढ़ई आदि पिछड़ी जाति के लोग इस पत्रिका को पढ़ने के बाद भी जागृत नहीं हो रहे हैं और ब्राह्मणवाद के जाल के खूॅटों से बुरी तरह बंधे रहना चाहते हैं। वे इन खूॅटों से आजाद होने को सोच नहीं पा रहे हैं और न ही साहस जुटा पा रहे हैं। वे बहुजन महापुरुषों के विचारों को नहीं जानना चाहते हैं। वे ब्राह्मणवादी नायकों, ग्रन्थों/शास्त्रों को पढ़तें और सुनते हैं जिससे उनकी मानसिक गुलामी बढ़ती जा रही है। वे पढ़-लिखकर भी नहीं चेत रहे हैं, बल्कि जो उच्च शिक्षित हैं, वे दिखावा के लिए ब्राह्मणवादी कुरीतियों एवं अंधविश्वासों को बढ़ चढ़ कर निभाते हैं। इससे उनका परिवार और समाज तो प्रभावित होता ही है, उनकी आने वाली पीढ़ियां भी ब्राह्मणवादी जाल के खूॅटों से मजबूती से बॅधती जा रही हैं।जो थोड़ा बहुत जागरूक हैं,वे भी अपने घर-परिवार को ब्राह्मणवादी खूॅटों से आजाद नहीं कर पा रहे हैं और वे इसके लिए जिम्मेदार अपने परिवार की महिलाओं को बताते हैं।
कोई कहता है, "मैं अपनी मां को नहीं समझा सकता -पूजा-पाठ बन्द करने के लिए।"
क़ोई कहता है, "मैं अपनी बहन को मना नहीं कर सकता- भाईदूज और राखी बांधने के लिए। "
कोई कहता है, " मैं अपनी पत्नी को नहीं समझा सकता - करवा चौथ का व्रत के लिए। "।
कोई कहता है , "मैं अपने घर की महिलाओं और पुरुषों को बहुत समझता हूँ, ब्राह्मणवादी त्योहारों एवं कुरीतियों को छोड़ने के लिए, पर वे मानते ही नहीं। "
तो फिर कैसे बदलाव आयेगा - समाज में?? तो फिर ढोते रहें, अपने कन्धों पर झूठी शान, अंधविश्वास और पाखण्ड का बोझ। करते रहें, मनुवाद/ब्राह्मणवाद को मजबूत। बने रहे, ब्राह्मणवाद के मानसिक गुलाम/दास।
जब तक हम /आप अपने घर की महिलाओं को बहुजन विचार धारा से नहीं जोड़ेगें, तब तक मनुवाद/ब्राह्मणवाद के खिलाफ लड़ाई नहीं जीत सकेंगें। हमारे/आपके घर की महिलाएं सबसे ज्यादा पाखण्ड जैसे सोमवार, शुक्रवार, शनिवार, महाशिवरात्रि, नवरात्रि, छठ पूजा, कवि चौथ आदि के व्रत रखती हैं और पूजा पाठ के चक्कर में आकण्ठ डूबी हुई हैं। ब्राह्मणवादी/मनुवादी कुरीतियों और अंधविश्वासों का सारा बोझ इन्होंने अपने कन्धों पर उठा रखा है।
अनपढ़ या कम पढ़ी-लिखी तो अंधविश्वास और पाखण्ड में उलझी हुई हैं ही, अच्छी खासी पढ़ी लिखी कामयाब, नौकरी-पेशा महिलाओं को भी अपनी संस्कृति और इतिहास की जरा सी भी जानकारी नहीं है।इनको ब्राह्मणवादी परम्पराओं , कथाओं की जानकारी तो रहती है और उसे निभाने में ये कोई चूक नहीं करती। ये शिवलिंग पूजन, नवरात्रि में काल्पनिक माता की थाल सजाने, सारी रात बैठकर हथेलियों पीटने में पारंगत होती हैं और इसे वे बखूबी निभाती हैं।
परन्तु इतना सब होने के बाद यह कहा जा सकता है कि इस मानसिक बीमारी के लिए अकेली वे ही जिम्मेदार नहीं हैं। इसके लिए उनके घर के पुरूष भी जिम्मेदार हैं, जो उन्हें यथार्थ से अवगत नहीं कराते या स्वयं अवगत नहीं होते। वे अपने घर की महिलाओं को ब्राह्मणवादी मानसिकता वाले टीवी जो दिन भर इन्हें भजन- कीर्तन कराते रहते हैं, के सहारे छोड़ जाते हैं।इन्हें कहीं किसी जागरूकता कार्यक्रम में भी नहीं ले जाते, इसमें वे अपनी तौहीनी समझते हैं।
क्या हमारा/आपका कर्म नहीं बनता है कि हम /आप इन्हें तथागत बुद्ध, छत्रपति शाहूजी महाराज, महामना ज्योति राव फूले, सावित्री बाई फूले, प्रतिमा शेख, पेरियार रामास्वामी नायकर, पेरियार ललई सिंह यादव, राम स्वरूप वर्मा, बाबू जगदेव प्रसाद कुशवाहा, महाराज सिंह भारती कबीर दास, रविदास, गुरू नानक, अम्बेडकर आदि बहुजन महापुरुषों की विचार धारा से जोड़ने का कार्य करें, ताकि ये खुद जागरूक होकर आने वाली पीढ़ियों का उद्धार कर सकें।
आज इस बात को सोचने की आवश्यकता है कि अगर हमारे/आपके घर में परिवर्तन नहीं हो पा रहा है तो इसका मूल कारण क्या है,
कहीं हमीं/ आप तो जिम्मेदार नहीं हैं??
बहुजन महापुरुषों के विचारों से जो लोग जागरूक हो गये हैं, उन्हें देखना चाहिए कि जो लोग अंधविश्वास और पाखण्ड, कुरीतियों/परम्पराओं के ब्राह्मणवादी जाल के खूॅटों से बॅधे हैं, उन्हें उन खूॅटों से अवगत कराकर उससे मुक्त कराने का प्रयास करें। उनके बताने और समझाने के बाद भी अगर वे ब्राह्मणवादी कुरीतियों/कुप्रथाओं को छोड़ना नहीं चाहते तो उनका सामाजिक बहिष्कार करें और उनके द्वारा आयोजित किसी भी ब्राह्मणवादी कार्यक्रम में सम्मिलित न हों। उनके सम्मिलित न होने से लोगों में चर्चाएं शुरू होंगी और लोगों में जागरूकता आयेगी। लोग कुप्रथाओं/कुरीतियों को छोड़ने का साहस जुटा सकेंगें।
जाने तो माने।
जय विज्ञान जय संविधान।