राजनीति शायद अब अपने भृष्टता के अंतिम पायदान पर है और इस ऐतिहासिक दौर को जब इतिहास में लिखा जाएगा तो सबसे मोटी और गहरी लाइन होगी वह ये की जब भारत की सरकारी ईंटों, इमारतों, सड़कों, मीलों, अस्पतालों, स्कूलों, ट्रेनों, ट्रैकों, प्लेटफार्मो इत्यादि को जब बेचा जा रहा था तो लोकतंत्र का चौथा और सबसे मजबूत स्तम्भ कहा जाने वाला मीडिया ऐसे रोल प्ले कर रहा था जैसे मदारी का बन्दर!बस फर्क इतना है कि मदारी के बन्दर एक होता है और 'यहां मदारी एक बन्दर अनेक यह भूलने वाले लोगों की भीड़ के बीच कुछ लोगो को आज भी याद होगा कि अन्ना हजारे और उनके साथ चंद लोगों ( जो कि आज सर्वाधिक BJP में हैं ) आंदोलन को इसी मीडिया ने कैसे दिन रात टेलीकास्ट किया था और उस आंदोलन को जन आंदोलन का कहकर चलाया था आज महज कुछ वर्षों बाद उससे कई गुना बड़ा आंदोलन, कई गुना अधिक भीड़, देश के कोने - कोने से लोगो का समर्थन, कई किसान शहीद और फिर भी इस मीडिया के पास समय नही टेलीकास्ट करने का, आज अखबार पढ़ा तो पता चला कि 90 % स्कूलों को बन्द करने की तैयारी अरे जब उनकी नीयत ही है देश बेचने की तो क्या कर लेंगे देशवासी, कहा - कहा आंदोलन करोगे ?
कभी रेलवे के कर्मचारी आंदोलन पर, तो कभी एयरवेज़ के कर्मचारी आंदोलन पर, कभी बैंक के कर्मचारी आंदोलन पर, और किसानों का क्या है उनको तो कुछ हरामखोरों ने देशद्रोही, आतंकवादी, खालिस्तानी, और न जाने क्या - क्या बता दिया है।
👆👆👆उक्त यह सब खेल सिर्फ इसलिए हो रहे हैं ताकि देश को कुछ मुट्ठीभर लोगों के हाथों में सौंपा जा सके।
- शाक्य अरविन्द मौर्य