"भक्ति/आस्था के दुश्मन तर्क और बुद्धि - शाक्य अरविन्द मौर्य


 "भक्ति/आस्था के दुश्मन तर्क और बुद्धि"


ये हम सबने कहीं न कहीं जरूर पढ़ा या सुना होगा कि जहां तर्क है, जहाँ प्रश्न है, जहाँ बुद्धि का प्रयोग किया गया है वहां - वहाँ आस्था बौनी हुई है, इस धारा को धार समय - समय पर बहुत सारे महापुरुष देते आए हैं, महामानव बुद्ध से लेकर अजीत केसकम्बल, चार्वाक, सुकरात, इब्न रोश्द, कॉपरनिकस, मार्टिन लूथर, फ्रैंसिस बेकन, बेंजामिन फ्रेंकलिन, चार्ल्स डार्विन, कार्ल मार्क्स, अल्बर्ट आइंस्टीन, स्टीफन हॉकिंग फूले दम्पति, कवि कबीर, पेरियार, ललई सिंह, बाबू जगदेव प्रसाद, बाबा साहब अम्बेडकर इत्यादि तमाम महापुरुष एक के बाद एक आए और हर किसी ने इस सोये हुए समाज को जगाने का प्रयास किया, ये सिर्फ भारत ही नही अपितु पूरी दुनिया में क्रांतिकारी दौर सदियों से चला आ रहा है, हर देश/संस्कृति में लोगो ने गलत को गलत कहकर बदलने की हिम्मत दिखाई और इसमें एक बात स्पष्ट हुई वो ये की जो हम बचपन से सुनते और पढ़ते आ रहे हैं "जीत हमेशा सत्य की होती है" ये एक सबसे बड़ा झूठ साबित होता दिख रहा है, वरना आज दुनिया ने आस्था से निजात पा लिया होता, यहाँ जीत झूठ की होती जा रही है, ब्रूनो और गैलीलियो जैसे खोजियों को आस्था ने मार गिराया है जबकि बाद में पता चला कि सही वो दोनों  ही थे ।*_


*ऐसी तमाम घटनाएं इतिहास में पढ़ने को मिल जाएंगी जहां तार्किक प्रश्नों के सामने आस्था/अज्ञानता परास्त हुई है लेकिन इस आस्था को परास्त करने वाले महापुरुषों को इस दुनिया की आस्थावान भीड़ ने समय - समय पर आहत किया है, कभी शारीरिक चोटें दी है तो कभी सीधे मौत ही दे दी, यहां तक कि अगर हम गौर करेंगे कि सदी के सबसे बड़े वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी कहा है कि👇👇👇


"व्यक्ति का नैतिक आचरण मुख्य रूप से सहानुभूति, शिक्षा और सामाजिक बन्धन पर निर्भर होना चाहिए, इसके लिए किसी ईश्वर या धार्मिक आधार की जरूरत नही है, म्रत्यु के बाद का भय और पुरस्कार की आशा से नियंत्रित करने पर मनुष्य की हालत दयनीय हो जाती है" ।


तो हमको, आपको पूरे समाज को अपनी बुद्धि को खोलकर तर्क करके सत्य को समझना चाहिए 👏👏👏



                                   - शाक्य अरविन्द मौर्य

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