जवानों का किसानों के खिलाफ इस्तेमाल करना बेहद निंदनीय और शर्मनाक है, इससे सरकार अपनी नाकामी छिपाने की कोशिश में लगी है, यूं तो हम सब बचपन से सुनते आए हैं "जय जवान, जय किसान" लेकिन अब पहली बार इस निरंकुश सरकार की घटिया राजनीति के चलते "किसान बनाम जवान" देखने को मिल रहा है, इस तरह की घटनाओं को देखकर यकीन हो गया है कि हम कोई साधारण जीवन नही जी रहे हैं बल्कि एक बुरे दौर में जी रहे हैं, जहां हर कोई दफन हो रहा है, किसान, जवान, बेरोजगार युवा, कोरोना की मार झेल रहे परिवार, सरकारी संस्थाए, छोटे उद्योग, छोटे व्यापारी, सरकारी स्कूल, सरकारी अस्पताल, एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन,इत्यादि । पहले सुनने को मिलता था👇👇👇
किसान जहर की गोली से मर रहा है
और जवान दुश्मन की गोली से,
किसान खेतों में शहीद हो रहे हैं,
जवान बॉर्डर पर शहीद हो रहे हैं ।
_सच्चाई तो यही है कि ये जो जवान हैं ये सब इन्ही दबे, कुचले, निचले, गरीब, किसान परिवारों से आते हैं और आज इन्ही जवानों को अपनों के ऊपर कभी लाठी, तो कभी भीषण ठंड में पानी, तो कभी आसू गैस के गोले छोड़ने पड़ रहे हैं, ये कैसा दौर चल रहा है कि कर्म के चलते कोई अपने परिवारों पर लाठियां, गोलियां, पानी बरसा रहा है, असल मे ये जवान भी ऐसा कुछ करना नही चाहते लेकिन हैं कुछ देश के पीड़ित समाज (लाचार किसान, बेरोजगार युवा, अशिक्षित समाज, प्रताड़ित महिलाएं, सदियों से सताए हुए लोग) के असली दुश्मन सीमा के अंदर, जिनके आदेशों को मानना इन जवानों की मजबूरी है, लेकिन अब एक बात तय है कि ये किसान भी वापस नही लौटने वाले हैं बहुत दिन से सरकार ने लोगो को कोरोना के नाम से लोगों को बरगला रखा था, वरना जनता पहले ही इनको लतिया चुकी होती, फिलहाल देश की स्थिति को देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि हम / आप सब लोकतंत्र में नहीं बल्कि तानाशाही राज में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
शाक्य अरविन्द मौर्य