देश का किसान एक तरफ जहां कोरोना महामारी के कारण परेशान था तो वही दूसरी तरफ बढ़ती महंगाई के कारण हताश हो कर रह गया है। भारत कृषि प्रधान देश है यहाँ की सत्तर प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर करती है। किसान इस देश की रीढ़ की हड्डी हैं। पिछली सरकारों द्वारा किसानों को भगवान का दर्जा देकर काफी दिनों तक मूर्ख बनाए रक्खा गया ।
सबका साथ सबका बिकास एवं सबका विश्वास का नारा देकर सत्ता में आई मोदी सरकार से किसानों मे उम्मीदें जगी थी कि शायद अब देश के किसानों को कुछ राहतें मिलेगी लेकिन सब बेकार पिछली सरकारों की तरह वर्तमान सरकार भी किसान बिरोधी और ब्यापारियों की हितैषी बन कर रह गई है। देश का किसान प्रकृति की मार के साथ अवारा पशुओं की मार को झेलने के बाद इस बढ़ती महंगाई के दौर में जैसे तैसे अपनी फसलें तैयार करता है। तो उसको फसलों की उचित कीमत नही मिल पाती है जिससे उसको औने-पौने दामों में अपनी फसलों को बेचना पड़ता है। किसानों की वही फसलें जब ब्यापारियों के पास पहुंच जाती है तो दूने चौगने दामों में बिकती है। अभी आलू और प्याज जब किसानों के घरों में था तब आलू 16 रुपये से बीस रुपये मे तथा प्याज 8 से 10 रुपये में आमतौर से बिक रहा था वहीं आलू और प्याज जब ब्यापारियों के हाथों में चला गया तो अब वही आलू और प्याज 40 रुपये किलो बिक रहा है। किसानों का गेहूं 14 से 15 रुपये किलो धान 10 रुपये से 12 रुपये किलो बिक रहा है तो वही ब्यापारियों के यहाँ रखा मिर्चा हल्दी आज दोगुने दामों में बिक रहा है। किसानों का कहना है कि वर्तमान और पिछली सरकारों मे फिलहाल कोई भी अंतर दिखाई नही पड़ रहा है। अब किसानों का सरकारों से भरोसा समाप्त हो चुका है अब ऊपर वाले पर ही एक मात्र भरोसा बचा है।