उत्तर प्रदेश:- ग्राम रोजगार सेवक आवास बनबाने में मदत करता है,मृदा-संरक्षण,जल संरक्षण,शोषित बंचित मजदूरों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार मुहैय्या कराना-जिसके जरिये पलायन रोकना,नदी नालों का संरक्षण वृक्षारोपण करके पर्यावरण संरक्षण,व्यक्तिगत किसानों के खेतों में भूमि समतलीकरण-मेड़बन्दी कार्य करके भूमि संरक्षण,गरीब किसानों व भूमि हीन मजदूरों के पालतू पशुओं के शेड्स का निर्माण कार्य कराने,प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण जैसे तमाम कार्य कराने पर भी,मनरेगा अंतर्गत प्रदेश की हर गांव पंचायत में कार्यरत ग्राम रोजगार सेवक एक गुलाम की जिंदगी जी ने को विवश है,उसके मौलिक अधिकार,उन्नति करने का अधिकार
अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के अधिकार,अपने परिजनों को अच्छी जिंदगी देने के अधिकार,उनके भरण पोषण के अधिकारो से बंचित किया जा रहा है,मजबूरन आभाव और पीड़ा दायक जिंदगी जीने को मजबूर है,पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी जितने भी उपरोक्त कार्य है रोजगार सेवक मनरेगा द्वारा कराता है जिन्हें सरकार अन्य साधनों को करने में अरबो रुपये खर्च करने पर भी नही करा पाती,फिर भी हम बिल्कुल हासिये पर हैं,,रिकॉर्ड इंटरनेट पर मौजूद हैं,,कोरोना महामारी के दौरान हमने बिना कोरोना यौद्धा के दर्जे,बिना अपनी व अपने परिजनों की जान की परवाह किये,बिना किसी रिसकबर बीमे के,,,संकट के वक्त लाखों गरीब मजदूरों को फैक्ट्री कारखानों के बन्द होने पर गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराया,फिर भी हमारी पीड़ाओं की ओर किसी ने ध्यान तक नही दिया, इतना अन्याय हमारे साथ क्यों!
👇 ऐसे ही तमाम कारण है जिनसे प्रतीत होता है कि अभी देश गुलाम है आज़ाद नही,लोकतंत्र नजर नही आता।
👉2008 में ग्राम रोजगार सेवक पद हेतु मेरिट के आधार पर गांव के टॉपर्स का चयन हुआ,12 वर्ष नोकरी करने के बाद भी मात्र 6 हजार रु महीने भर मे,यानी प्रति दिन 200 रु जोकि एक मजदूर के बराबर भी मेहनताना पाने में अक्षम,है,घोर अन्याय!उपरोक्त विभिन्न प्रकार के कार्य कराए जाने पर भी वित्तीय अधिकारों से बंचित,कोई वैल्यू नही कोई सम्मान नहीं।
👉नोकरी में 12 वर्ष पूर्ण करने पर भी भविष्य सुरक्षित नहीं,कब नोकरी से निकाल दिया जाए कुछ पता नही,यानी पढ़े लिखे नवजवान की पूरी लाइफ बेगार/गुलामी में गुजरनी है।
👉 मात्र 6 हजार प्रति माह अल्प मेहनताने में पूरे परिवार का भरण पोषण,बच्चों को अच्छी शिक्षा,मूलभूत सुविधाएं देने में अक्षम,हजारो बार गुहार लगाने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं,यानी शासन/सरकार की मंशा आज भी छोटे लोगो को गुलाम बना के रखा जाए,ऐसी प्रतीत होती है।
👉 हमारे मेहनताने का शासन के पास कौन सा पैमाना है,जो हम रोजगार सेवकों द्वारा अन्य लोगो से अधिक कार्य करने, अधिक जिम्मेदारी उठाने पर 6 हजार रु एक माह में पर्याप्त लगता है, और वो ही कार्य करने पर अन्य को 40 से 60 हजार रु,दिए जाते है,,,कतिथ बड़े लोगो के 6 हजार रु उनके जूतों के पॉलिश में खर्च हो जाते है हम से परिवार के भरण पोषण,बच्चों की परवरिश व शिक्षा का खर्च,भविष्य हेतु बचत,आकस्मिक बीमारी दुर्घटना आदि का खर्च उन्ही पैसों में उठाने की अपेक्षा की जाती है,कैसी सोंच है सरकार व शासन की।
👉सरकारी कार्य पर झगड़ा होने पर हमी दोषी,सरकारी कर्मी मानने से इंकार, कार्य के दरमियान फसाद होने पर यदि कोई हम पर हमला करे तो खुद का बचाव करने पर भी पुलिस केश लगने का पूरा डर,उच्च अधिकारी गणो का कोई संरक्षण नही!कोई सुनने वाला नही सौतेला व्यवहार,मतलब परस्ती बस काम हो कैसे भी!
👉सब काम पर जोर देते है लेकिन मांगो/जरूरत पर कोई ध्यान नही देता कोई नही सुनता,पक्षपात झेलने को विवश।
👉कार्य अच्छा होने पर उच्च अधिकारीगण और अन्य लोगो को इनाम-प्रसंशा,,कार्य न होने पर रोजगार सेवक दोषी,घोर अन्याय।
👉हर 5 वर्ष में घोर पीड़ा दायक स्थिति का सामना करना जब नय ग्राम प्रधानों का कार्यकाल प्रारम्भ होता है,वेवजह गांव की राजनीति का शिकार होने का दंश झेलने को मजबूर।
👉उच्च अधिकारी गणो गांव समाज मे आम जन मानस में बहुत बड़ी भ्रांति कि रोजगार सेवक कमाई कर रहा है वास्तविकता ये है कि घोर आभाव की जिंदगी जीने को मजबूर जोड़ तोड़ करके गुजर बसर करने की हकीकत से सब अनजान।
शासन सरकार को हम पीड़ित बंचित रोजगार सेवकों ने सैकड़ो बार सम्मानजनक मेहनताना पाने हेतु और वित्तीय अधिकार व अधिकारो में बढ़ोतरी हेतु गुहार लगाई परन्तु कोई सुनने को तैयार नही,ये ताना शाही है !! हम ऐसे शासक की निदा करते हैं जिसे पीड़ितों का दर्द न दिखाई पड़ता है न सुनाई पड़ता है!
👉 सरकार द्वारा फालतू वेवजह के कार्यों में समय व अर्थ नष्ट किया जा रहा।
देश की मीडिया केवल अपनी TRP बढाने हेतु वेवजह के मुद्दों पर 24 घण्टे व्यापार में लगे हैं,क्या पीड़ित बंचितो की पीड़ा दिखाई नही देती,सरकार क्यों हम संविदा कर्मियों को गुलामी की जिंदगी जीने को मजबूर किये है,क्यों देश के सभी संविदा कर्मियों को नियमित नही करती और इसके उलट देश मे चैन सुकून विकास के झूठे दावे करती है।
क्या हम जैसे संविदा कर्मियों की पीड़ा नही दिखती क्या हम इंसान नही।
(संविदा कर्मी)..