मोदी सरकार के स्वच्छ भारत मिशन में कितना साफ़ हुआ देश?


शादाब अली की रिपोर्ट

दावा- स्वच्छ भारत मिशन के तहत केन्द्र सरकार ने एक करोड़ शौचालय बनाने की घोषणा की थी. प्रधानमंत्री मोदी का दावा है कि अब भारत के 90 फ़ीसदी घरों में शौचालय है, जिनमें से तक़रीबन 40 फ़ीसदी 2014 में नई सरकार के आने के बाद बने हैं.


 उन्नाव जिले की अक्सर ग्राम सभाओं में अंधेर नगरी चौपट राज है यहां शासन प्रशासन नेताओं व अधिकारियों के संरक्षण में फल-फूल रहे हैं दबंग भूमाफिया प्रधान खनन माफिया चरस स्मैक हिस्ट्रीशीटर जैसे अपराधी लोग


सच्चाई - ये बात सही है कि मोदी सरकार के समय घरों में शौचालय बनाने के काम ने र फ़्तार पकड़ी है, लेकिन ये बात भी सही है कि अलग अलग कारणों से नए बने शौचालयों का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है.


"आज, 90 फ़ीसदी से ज़्यादा घरों में टॉयलेट की सुविधा मौजूद है, जो 2014 के पहले केवल 40 फ़ीसदी घरों में थी" सितंबर 2018 में नरेन्द्र मोदी ने ऐसा कहा था.


*लेकिन विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इस परियोजना की आलोचना की थी.*


कांग्रेस सरकार में पेयजल और स्वच्छता मंत्री रहे जयराम रमेश ने पिछले साल अक्टूबर में कहा था, " हवाई दावों को सच साबित करने के लिए बड़े पैमाने पर शौचालयों के निर्माण के लक्ष्य को पूरी तरह से भटका दिया."


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भारत सरकार ने 'स्वच्छ भारत मिशन' को दो भागों में बांटा है.



*स्वच्छ भारत ग्रमीण इसके तहत गांवों में हर घर में शौचालय बनाने और खुले में शौच मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है.*


*लेकिन उन्नाव जिले की अक्सर ग्राम सभाओं में आज भी दबंग प्रधान ब्लॉक के मंत्री व बीडीओ की मिलीभगत से आज भी गरीब लोगों को अपात्र को पात्र नहीं मिला वही शौचालय को भी मजबूर हैं लोग*


आए दिन उन्नाव जिले की अलग-अलग ग्राम सभाओं में प्रधानों के खिलाफ रोज जनता मोर्चा खोल रही है लेकिन शासन-प्रशासन नेताओं के संरक्षण में नहीं मिल पा रहा है लोगों को आवास व शौचालय और सिर्फ और सिर्फ धमकियां  आश्वासन मिलता है प्रधान जी व ब्लॉक में बैठे मंत्री वीडियो इतने माहिर हैं कि उन लोगों को कॉलोनी और इज़्ज़त घर दिए है जो प्रधान के चहेते व अच्छे खासे पैसे में ताकतवर है ऐसे लोगों के नाम दे दिए हैं कि जिनके घरों में पहले से ही शौचालय मोहिया हैं


स्वच्छ भारत शहरी - घरों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर भी शौचालय हो, ये सुनिश्चित करना इस मिशन का मक़सद है. साथ ही कूड़ा-कचरा प्रबंधन पर भी मिशन में ज़्यादा फ़ोकस है.


भारत में खुले में शौच सालों से चली आ रही समस्या है, जिसकी वजह से कई बीमारियां भी फैलती हैं.


स्वच्छ भारत मिशन

महिलाओं के लिए ये सुरक्षा से जुड़ा मामला भी है, क्योंकि घर में शौचालय नहीं होने की सूरत में महिलाओं को अंधेरे में शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है.


भारत सरकार स्वच्छ भारत मिशन को सफल बताते हुए दावा कर रही है कि लक्ष्य का 96.25 फ़ीसदी काम पूरा हो चुका है.


जबकि अक्टूबर 2014 के पहले केवल 38.7 फ़ीसदी घरों में ही शौचालय थे.


इन आंकड़ों से साफ़ है कि भाजपा के शासन में कांग्रेस के शासनकाल से मुक़ाबले दोगुनी तेजी से शौचालय बने हैं.


स्वच्छ भारत मिशन: कितनी सफ़ाई.. कितनी गंदगी..

‘खुले में शौच मुक्त’ घोषित होने के लिए बिहार कितना तैयार?

भारत के ग्रामीण इलाक़े, कितने खुले में शौच मुक्त हो पाए हैं, उस पर NARSS नाम की एक स्वतंत्र एजेंसी ने सर्वे किया है. नवंबर 2017 और मार्च 2018 के बीच किए गए इस सर्वे में 77 फीसदी ग्रामीण घरों में शौचालय पाए गए और ये भी बताया गया कि भारत में 93.4 फ़ीसदी लोग शौचालय का इस्तेमाल करते हैं.


इस सर्वे में 6,136 गांवों के 92,000 घरों को शामिल किया गया.


स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि देश भर के 36 में से 27 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश खुले में शौच मुक्त हो गए हैं, जबकि 2015-16 में केवल सिक्किम ही एकमात्र ऐसा राज्य था, जो खुले में शौच मुक्त था.


टॉयलेट का इस्तेमाल

केन्द्र में मोदी सरकार के कार्यकाल में देश भर में कितने शौचालय बने इसके कई आंकड़े हैं, लेकिन इसका कोई आंकड़ा नहीं कि बनाए गए शौचालयों का कितने लोग इस्तेमाल करते हैं.


साफ़ है कि शौचालय बनाने का ये मतलब कतई नहीं माना जाए कि उन शौचालयों का इस्तेमाल हो भी रहा है.


नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफ़िस के 2016 के आंकड़े के मुताबिक़ दो साल पहले जिन 45 फ़ीसदी घरों में शौचालय थे उनमें से पांच फ़ीसदी घरों में शौचालय का इस्तेमाल नहीं होता था और तीन फ़ीसदी घरों में शौचालयों में पानी का कनेक्शन नहीं था.


खुले में शौच, महिलाओं की सुरक्षा के लिए भी एक बड़ा ख़तरा है


स्वच्छ भारत ग्रामीण मिशन में सचिव परमेश्वरन अय्यर ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि स्वच्छ भारत मिशन के सफर में तब से अब तक कई बदलाव हुए हैं.


लेकिन कई एनजीओ ने इस मिशन पर काफी पड़ताल की है और उनकी पड़ताल में इस मिशन की कई ख़ामियां सामने आई हैं-


 कई शौचालय सिंगल पिट बन कर तैयार हुए हैं, जो हर पांच से सात साल में भर जाते हैं.


• कई जगहों पर शौचालयों के रख-रखाव की समस्या है.


• कई शहरों और गांवों में टारगेट ही गलत सेट किए गए हैं


2015 में मोदी सरकार ने दावा किया था कि हर सरकारी स्कूल में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय बनाए गए हैं


लेकिन 2016 की ASER रिपोर्ट के मुताबिक़ 23 फीसदी सरकारी स्कूल में शौचालय की सुविधा है ही नहीं।


स्वच्छ भारत मिशन के कई रिपोर्ट से ये भी पता चला है कि शौचालय बनाने के टारगेट कई साल पुराने है और तब से अब तक काफी पानी बह चुका है


2018 में गुजरात के स्वच्छ भारत मिशन पर जारी की गई CAG रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात में शौचालय बनाने के टारगेट 2012 के हैं. लेकिन तब से अब तक वहां जनसंख्या भी बढ़ गई है और परिवार की संख्या भी


खुले में शौच मुक्त का सच

बीबीसी की मराठी सेवा ने 2018 में महाराष्ट्र सरकार के दावों का सच जानने के लिए ख़ुद ही कुछ इलाक़ों का सर्वेक्षण किया था. उन्होंने पाया कि एक गांव में 25 फ़ीसदी घरों में शौचालय की सुविधा नहीं थी और वो खुले में शौच के लिए जाने के लिए मजबूर थे।


जैसे ही बीबीसी मराठी सेवा की कहानी स्थानीय प्रशासन के कानों तक पहुंची, प्रशासन तुरंत हरकत में आया जिसके बाद वहां और शौचालय बनाए गए. लेकिन उन्नाव जिले की अक्सर ग्राम सभा ओ के हालात बद से बदतर होने के बाद भी आज तक किसी के कानों में कोई जू तक रेंगने को तैयार नहीं है।


सार्वजनिक शौचालय

दूसरी कई और रिपोर्ट भी हैं जो खुले में शौच मुक्त होने के राज्यों के दावे की पोल खोली हैं।


मसलन गुजरात सरकार ने ख़ुद को 2 अक्टूबर 2017 में खुले में शौच से मुक्त घोषित किया था।


लेकिन एक साल बाद कैग की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 29 फ़ीसदी घरों में शौचालय है ही नहीं।


आदत में बदलाव

इस मिशन की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि जनता अपने आप को बदलने के लिए कितनी तैयार है।


भारत में देखा गया है कि अमूमन जो लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं उन्हें शौचालय का इस्तेमाल करने से परहेज़ होता है।


हालांकि ये बदलाव कितने लोगों में आया ये पता लगाने का कोई पैमाना ही नहीं है।


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लेकिन कई इलाक़ों में इसके उदाहरण देखने को मिले है जिससे पता चला है कि लोग बदलने को तैयार नहीं है।


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उत्तर प्रदेश के बरेली में हाल ही में एक टॉयलेट प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।


इस प्रतियोगिता का आयोजन कराने वाले स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी सतेन्द्र कुमार ने बीबीसी को बताया, "लोगों ने घरों में शौचालय तो बना लिए हैं लेकिन आज भी उसे अपने घर का हिस्सा नहीं मानते हैं. ये समस्या ज़्यादातर घरों में बुज़ुर्गों के साथ है. बुज़ुर्ग घरों में बने शौचालय का इस्तेमाल करने से कतराते हैं।


इसी साल जनवरी में प्रकाशित स्वच्छ भारत के सर्वे में भी ये बात सामने आई कि बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लोगों की 'आदत में बदलाव' नहीं आ पा रहा है।


सर्वे में कहा गया है कि इन राज्यों में एक चौथाई घरों में शौचालय होने के बाद भी लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं। जबकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि रेडीमेड को चाले मानक में नहीं है कई प्रधानों को नोटिस देने के बाद भी वही रेडीमेड शौचालय आज भी ऐसे ही आंसू बहा रहे हैं और कुछ प्रधान मंत्रियों व वीडियो की मिलीभगत से इतना बुरा हाल है कि शौचालय में कूड़ा करकट बकरियों का रहन-सहन बना हुआ है क्योंकि प्रधानमंत्री इतने माहिर है की चोर चोर मौसेरे भाई होने के नाते गरीब लोगों को सिर्फ आश्वासन और परेशान करना इनका एक पैसा बन चुका है और कॉलोनियों से लेकर शौचालय तक उन्हीं लोगों के नाम दर्ज है जिनके नाम पहले से ही सब कुछ है अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार कितनी गंभीर होती है ऐसे लोगों पर कार्रवाई कराने में यह एक बड़ा सवाल है।

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