उत्तराखंड का मदर गार्डन ऑफ लीची पूरे उत्तर भारत की शान
शादाब अली की खास रिपोर्ट
आम को फलों का राजा माना जाता है तो लीची फलों की रानी है।यह दोनों ही राजधानी देहरादून की खास पहचान हैं।
यहां की लीची और आम मलिहाबाद,व जिला उन्नाव और दुनिया के कोने-कोने में अपने लाजवाब स्वाद के लिए जाने जाते हैं। लीची और आम की यह स्वादिष्ट खेप एक विशेष गार्डन में तैयार होती है, जिसे पूरे उत्तर भारत में मदर गार्डन ऑफ लीची कहा जाता है।
देहरादून शहर आज भले ही कंक्रीटों के जंगल में तब्दील हो चुका है। लेकिन एक वक्त था, जब यह अपनी लीची और आम के लिए पूरे देश और दुनिया में जाना जाता था। अंग्रेज जब भारत आए तो मसूरी उनकी पसंदीदा जगहों में से एक थी। वहीं, देहरादून में अंग्रेजों ने कई ऐसे उद्यान विकसित किए, जो आज अपना अस्तित्व खो चुके हैं। इन्हीं में से एक उद्यान अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1910 में स्थापित किया गया था। इसे मदर गार्डन ऑफ लीची के नाम से जाना जाता है। इस उद्यान में आज भी लीची और आम की पैदावार होती है और आज भी यह उतना ही मशहूर है। मुख्यमंत्री निवास से लगा यह बाग आज उत्तराखंड सरकार के उद्यान विभाग के अधीन है और इसे सर्किट हाउस गार्डन के नाम से जाना जाता है।
आज भी इस बगीचे में लीची के 60-70 साल पूराने पेड़ लगे हुए हैं। लीची की प्रजातियों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और लोकप्रिय रोज सेंटेड लीची को माना जाता है, जिसे जन्म देने वाला यही उद्यान है। बताया जाता है कि इस लीची की वजह से देहरादून को विशेष पहचान मिली थी। शुरुआत में इस लीची को देहरा रोज के नाम से जाना जाता था। आज भी इस गार्डन में लीची की पांच अलग-अलग तरह की प्रजाती पाई जाती है। वहीं, आज भी लीची की सभी किस्मों का संरक्षण और संवर्धन यहां किया जाता है। देहरादून मुख्यमंत्री आवास से लगा यह उद्यान 7.14 हेक्टेयर में फैला है। इस विशाल बगीचे से न केवल हर साल उद्यान विभाग को लाखों का राजस्व आता है, बल्कि हर साल यहां से तकरीबन 25 हजार लीची की उन्नत किस्म की नई पौध बनकर तैयार होती है, जोकि प्रदेश में और प्रदेश के बाहर भी भेजी जाती है। गार्डन इंचार्ज दीपक पुरोहित ने बताया कि उत्तराखंड सहित उत्तर प्रदेश और आस-पास में जहां भी लीची पाई जाती है। उन सबके लिए यह बाग मदर गार्डन है, क्योंकि सब जगह लीची इसी बगीचे से गई है और अभी भी हर साल 35 हजार पौध यहां से बनाकर दूसरी जगहों पर भेजा जाता है। देहरादून सर्किट हाउस में मौजूद इस मदर गार्डन में लगातार लीची की प्रजातियों को बेहतर उन्नत किस्म की बनाने और नई किस्म को विकसित करने पर शोध जारी है। बाग में लीची की नए पौध को तैयार करने के लिए भी कई प्रकार के प्रयोग किए जाते हैं। लीची के बाग में पौध तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में गार्डन इंचार्ज दीपक पुरोहित ने बताया कि एयर लेयरिंग के जरिए यहां पौध को तैयार करने का काम किया जा रहा है, जो 14 मार्च से लेकर मई और जून तक चलता है। इसे कृषि की भाषा में बुटी बांधना भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि हर साल 30 से 35 हजार बुटी बांधी जाती है और आने वाली बरसात के लिए इन्हें तैयार किया जाता है। आम सीजन की तरह ही इस बार भी मदर गार्डन आफ लीची में अच्छे किस्म के आम, लीची और अन्य फलों की पैदावार हुई है, जो एक बार फिर से देश-दुनिया के कोने में पहुंचने को तैयार है। लेकिन लॉकडाउन और श्रमिकों की कमी के कारण फलों की खेप को बाहर भेजने में दिक्कतें आ रही हैं। ऐसे में अब सभी को इंतजार है कि कब स्थितियां सामान्य हों और इससे जुड़े लोगों का जीवन पटरी पर आ सके।
शादाब अली की खास रिपोर्ट
आम को फलों का राजा माना जाता है तो लीची फलों की रानी है।यह दोनों ही राजधानी देहरादून की खास पहचान हैं।
यहां की लीची और आम मलिहाबाद,व जिला उन्नाव और दुनिया के कोने-कोने में अपने लाजवाब स्वाद के लिए जाने जाते हैं। लीची और आम की यह स्वादिष्ट खेप एक विशेष गार्डन में तैयार होती है, जिसे पूरे उत्तर भारत में मदर गार्डन ऑफ लीची कहा जाता है।
देहरादून शहर आज भले ही कंक्रीटों के जंगल में तब्दील हो चुका है। लेकिन एक वक्त था, जब यह अपनी लीची और आम के लिए पूरे देश और दुनिया में जाना जाता था। अंग्रेज जब भारत आए तो मसूरी उनकी पसंदीदा जगहों में से एक थी। वहीं, देहरादून में अंग्रेजों ने कई ऐसे उद्यान विकसित किए, जो आज अपना अस्तित्व खो चुके हैं। इन्हीं में से एक उद्यान अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1910 में स्थापित किया गया था। इसे मदर गार्डन ऑफ लीची के नाम से जाना जाता है। इस उद्यान में आज भी लीची और आम की पैदावार होती है और आज भी यह उतना ही मशहूर है। मुख्यमंत्री निवास से लगा यह बाग आज उत्तराखंड सरकार के उद्यान विभाग के अधीन है और इसे सर्किट हाउस गार्डन के नाम से जाना जाता है।
आज भी इस बगीचे में लीची के 60-70 साल पूराने पेड़ लगे हुए हैं। लीची की प्रजातियों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और लोकप्रिय रोज सेंटेड लीची को माना जाता है, जिसे जन्म देने वाला यही उद्यान है। बताया जाता है कि इस लीची की वजह से देहरादून को विशेष पहचान मिली थी। शुरुआत में इस लीची को देहरा रोज के नाम से जाना जाता था। आज भी इस गार्डन में लीची की पांच अलग-अलग तरह की प्रजाती पाई जाती है। वहीं, आज भी लीची की सभी किस्मों का संरक्षण और संवर्धन यहां किया जाता है। देहरादून मुख्यमंत्री आवास से लगा यह उद्यान 7.14 हेक्टेयर में फैला है। इस विशाल बगीचे से न केवल हर साल उद्यान विभाग को लाखों का राजस्व आता है, बल्कि हर साल यहां से तकरीबन 25 हजार लीची की उन्नत किस्म की नई पौध बनकर तैयार होती है, जोकि प्रदेश में और प्रदेश के बाहर भी भेजी जाती है। गार्डन इंचार्ज दीपक पुरोहित ने बताया कि उत्तराखंड सहित उत्तर प्रदेश और आस-पास में जहां भी लीची पाई जाती है। उन सबके लिए यह बाग मदर गार्डन है, क्योंकि सब जगह लीची इसी बगीचे से गई है और अभी भी हर साल 35 हजार पौध यहां से बनाकर दूसरी जगहों पर भेजा जाता है। देहरादून सर्किट हाउस में मौजूद इस मदर गार्डन में लगातार लीची की प्रजातियों को बेहतर उन्नत किस्म की बनाने और नई किस्म को विकसित करने पर शोध जारी है। बाग में लीची की नए पौध को तैयार करने के लिए भी कई प्रकार के प्रयोग किए जाते हैं। लीची के बाग में पौध तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में गार्डन इंचार्ज दीपक पुरोहित ने बताया कि एयर लेयरिंग के जरिए यहां पौध को तैयार करने का काम किया जा रहा है, जो 14 मार्च से लेकर मई और जून तक चलता है। इसे कृषि की भाषा में बुटी बांधना भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि हर साल 30 से 35 हजार बुटी बांधी जाती है और आने वाली बरसात के लिए इन्हें तैयार किया जाता है। आम सीजन की तरह ही इस बार भी मदर गार्डन आफ लीची में अच्छे किस्म के आम, लीची और अन्य फलों की पैदावार हुई है, जो एक बार फिर से देश-दुनिया के कोने में पहुंचने को तैयार है। लेकिन लॉकडाउन और श्रमिकों की कमी के कारण फलों की खेप को बाहर भेजने में दिक्कतें आ रही हैं। ऐसे में अब सभी को इंतजार है कि कब स्थितियां सामान्य हों और इससे जुड़े लोगों का जीवन पटरी पर आ सके।