नई दिल्ली: भारत बड़े बहुमत के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य चुना गया है. न्यूयॉर्क में 17 जून को हुए चुनाव में यूएन के 192 में से 184 देशों ने भारत की दावेदारी को अपना वोट दिया. भारत अगले दो साल यानी 2021 और 2022 में सुरक्षा परिषद की ताकतवर मेज पर बतौर अस्थाई सदस्य मौजूद होगा।
एक दशक बाद सुररक्षा परिषद में भारत की एंट्री ऐसे समय हो रही है जब दुनिया में कोरोना संकट के बाद अंतरराष्ट्रीय समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. सुरक्षा परिषद के लिए हुए चुनावों में भारत की जीत और वैश्विक बिरादरी से मिले समर्थन पर यूएन में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टीसी तिरुमूर्ति ने धन्यवाद जताया है. उन्होंने बताया कि बहुत भारी संख्या में सदस्य देशों ने अपना समर्थन दिया और यह काफी उत्साहित करने वाला है. तिरूमूर्ति ने कहा कि भारत कोरोना संकट और उसके बाद की वैश्विक व्यवस्था में अपना नेतृत्व देता रहेगा. साथ ही नई और बदली बहुपक्षीय व्यवस्था बनाने के लिए भी सक्रिय भूमिका निभाएगा।
उन्होंने भारत को मिले व्यापक समर्थन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन और उनके वैश्विक नेतृत्व का प्रतीक करार दिया. यूएन में हुए चुनाव से पहले भारतीय अभियान का विजन दस्तावेज जारी करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी पीएम मोदी के 5एस मंत्र को सुरक्षा परिषद में भारत की भूमिका का आधार बताया था. इसके मुताबिक भारत सुरक्षा परिषद में वैश्विक स्तर पर सबके सम्मान, संवाद, सुरक्षा, शांति और समृद्धि के लिए करेगा. कोरोना संकट के बीच हुए चुनावों में भारत को जहां एशिया-प्रशांत क्षेत्र से चुना गया है वहीं मैक्सिको को लैतिन अमेरिका-कैरेबियन समूह से, नॉर्वे और आयरलैंड को पश्चिमी यूरोप क्षेत्र से सदस्यता मिली है।
अफ्रीका समूह से कीनिया और जिबूती सुरक्षा परिषद की अस्थाई सीट के लिए जरूरी 128 मतों का समर्थन हासिल करने से चूक गए. सुरक्षा परिषद में भारत का चुनाव क्लीन स्लेट एंट्री था क्योंकि उसके मुकाबले कोई दावेदार ही नहीं था. दरअसल, एक दशक बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की सबसे ताकतवर हॉर्स शू टेबल पर भारत की मौजूदगी कई मायनों में अहम होगी. भारत भले ही अस्थाई सदस्य के तौर पर 15 सदस्यों वाली सुरक्षा परिषद में शामिल हो लेकिन 2022 तक के कार्यकाल में करीब दो बार भारत सुरक्षा परिषद की अगुवाई भी करेगा. यानी अगस्त 2021 और नवंबर 2022 में भारत की अध्यक्षता संभव है.इसके अलावा सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्यों के रूप में भारत सबसे प्रभावशाली मुल्क के तौर पर भी मौजूद होगा।
आकार और अंतरराष्ट्रीय दबदबे के चलते भारत जैसे देश की बात को सिरे से नजरअंदाज करना स्थाई सदस्यों के लिए भी संभव नहीं है. इतना ही नहीं भारत के सुरक्षा परिषद की मेज पर पहुंचने के बाद चीन के लिए भी भारत के खिलाफ किसी मीटिंग को आयोजित करना या प्रस्ताव लाना जहां मुश्किल होगा वहीं मसूद अजहर जैसे आतंकियों को यूएन सूची में डलवाने जैसी कोशिशों का रास्ता रोकना भी कठिन होगा. जानकारों के मुताबिक भारत यूं तो सुरक्षा परिषद की स्थाई सीट का मजबूत दावेदार है मगर बाहर रहने की बजाए भीतर जाने का मौका अगर मिलता है तो उसे लेना चाहिए. सुरक्षा परिषद में मौजूदगी से किसी भी देश की यूएन प्रणाली में दखल और दबदबे का दायरा बढ़ जाता है।
क्या हैं मायने?
ऐसे में 10 साल बाद भारत का सुरक्षा परिषद में दो साल के लिए पहुंचना खासा अहम होगा. सुरक्षा परिषद के ताजा कार्यकाल में भारत अस्थाई सदस्यों के ई-10 समूह का भी सबसे बड़ा मुल्क होगा. ऐसे में जानकारों के मुताबिक अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस के लिए भी भारत को साधना अहम होगा. यूएन में 55 देशों वाले एशिया प्रशांत समूह ने पहले ही भारत को अपनी तरफ से नामित कर दिया था. भारत इससे पहले 1950 से लेकर अब तक सात बार सुरक्षा परिषद का सदस्य रह चुका है।
पिछली बार 2011-12 में भारत इस मेज पर सदस्य के तौर पर मौजूद था. भारत दस साल के अंतराल पर अस्थाई सदस्यता का चुनाव लड़ता है. हालांकि भारत की ही तरह सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता की मांग कर रहा जापान जैसा जी-4 का देश प्रत्येक 5 साल में अस्थाई सदस्यता हासिल करता है. अगले साल खत्म हो रहे जापान और दक्षिण अफ्रीका के कार्यकाल के बीच भारत सुरक्षा परिषद में जी-4 का अकेला नुमाइंदा होगा. महत्वपूर्ण बात है कि भारत समेत जी-4 मुल्क सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट पर दावेदारी के साथ इसके कामकाज में व्यापक सुधारों की मांग कर रहे हैं।
एक दशक बाद सुररक्षा परिषद में भारत की एंट्री ऐसे समय हो रही है जब दुनिया में कोरोना संकट के बाद अंतरराष्ट्रीय समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. सुरक्षा परिषद के लिए हुए चुनावों में भारत की जीत और वैश्विक बिरादरी से मिले समर्थन पर यूएन में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टीसी तिरुमूर्ति ने धन्यवाद जताया है. उन्होंने बताया कि बहुत भारी संख्या में सदस्य देशों ने अपना समर्थन दिया और यह काफी उत्साहित करने वाला है. तिरूमूर्ति ने कहा कि भारत कोरोना संकट और उसके बाद की वैश्विक व्यवस्था में अपना नेतृत्व देता रहेगा. साथ ही नई और बदली बहुपक्षीय व्यवस्था बनाने के लिए भी सक्रिय भूमिका निभाएगा।
उन्होंने भारत को मिले व्यापक समर्थन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन और उनके वैश्विक नेतृत्व का प्रतीक करार दिया. यूएन में हुए चुनाव से पहले भारतीय अभियान का विजन दस्तावेज जारी करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी पीएम मोदी के 5एस मंत्र को सुरक्षा परिषद में भारत की भूमिका का आधार बताया था. इसके मुताबिक भारत सुरक्षा परिषद में वैश्विक स्तर पर सबके सम्मान, संवाद, सुरक्षा, शांति और समृद्धि के लिए करेगा. कोरोना संकट के बीच हुए चुनावों में भारत को जहां एशिया-प्रशांत क्षेत्र से चुना गया है वहीं मैक्सिको को लैतिन अमेरिका-कैरेबियन समूह से, नॉर्वे और आयरलैंड को पश्चिमी यूरोप क्षेत्र से सदस्यता मिली है।
अफ्रीका समूह से कीनिया और जिबूती सुरक्षा परिषद की अस्थाई सीट के लिए जरूरी 128 मतों का समर्थन हासिल करने से चूक गए. सुरक्षा परिषद में भारत का चुनाव क्लीन स्लेट एंट्री था क्योंकि उसके मुकाबले कोई दावेदार ही नहीं था. दरअसल, एक दशक बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की सबसे ताकतवर हॉर्स शू टेबल पर भारत की मौजूदगी कई मायनों में अहम होगी. भारत भले ही अस्थाई सदस्य के तौर पर 15 सदस्यों वाली सुरक्षा परिषद में शामिल हो लेकिन 2022 तक के कार्यकाल में करीब दो बार भारत सुरक्षा परिषद की अगुवाई भी करेगा. यानी अगस्त 2021 और नवंबर 2022 में भारत की अध्यक्षता संभव है.इसके अलावा सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्यों के रूप में भारत सबसे प्रभावशाली मुल्क के तौर पर भी मौजूद होगा।
आकार और अंतरराष्ट्रीय दबदबे के चलते भारत जैसे देश की बात को सिरे से नजरअंदाज करना स्थाई सदस्यों के लिए भी संभव नहीं है. इतना ही नहीं भारत के सुरक्षा परिषद की मेज पर पहुंचने के बाद चीन के लिए भी भारत के खिलाफ किसी मीटिंग को आयोजित करना या प्रस्ताव लाना जहां मुश्किल होगा वहीं मसूद अजहर जैसे आतंकियों को यूएन सूची में डलवाने जैसी कोशिशों का रास्ता रोकना भी कठिन होगा. जानकारों के मुताबिक भारत यूं तो सुरक्षा परिषद की स्थाई सीट का मजबूत दावेदार है मगर बाहर रहने की बजाए भीतर जाने का मौका अगर मिलता है तो उसे लेना चाहिए. सुरक्षा परिषद में मौजूदगी से किसी भी देश की यूएन प्रणाली में दखल और दबदबे का दायरा बढ़ जाता है।
क्या हैं मायने?
ऐसे में 10 साल बाद भारत का सुरक्षा परिषद में दो साल के लिए पहुंचना खासा अहम होगा. सुरक्षा परिषद के ताजा कार्यकाल में भारत अस्थाई सदस्यों के ई-10 समूह का भी सबसे बड़ा मुल्क होगा. ऐसे में जानकारों के मुताबिक अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस के लिए भी भारत को साधना अहम होगा. यूएन में 55 देशों वाले एशिया प्रशांत समूह ने पहले ही भारत को अपनी तरफ से नामित कर दिया था. भारत इससे पहले 1950 से लेकर अब तक सात बार सुरक्षा परिषद का सदस्य रह चुका है।
पिछली बार 2011-12 में भारत इस मेज पर सदस्य के तौर पर मौजूद था. भारत दस साल के अंतराल पर अस्थाई सदस्यता का चुनाव लड़ता है. हालांकि भारत की ही तरह सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता की मांग कर रहा जापान जैसा जी-4 का देश प्रत्येक 5 साल में अस्थाई सदस्यता हासिल करता है. अगले साल खत्म हो रहे जापान और दक्षिण अफ्रीका के कार्यकाल के बीच भारत सुरक्षा परिषद में जी-4 का अकेला नुमाइंदा होगा. महत्वपूर्ण बात है कि भारत समेत जी-4 मुल्क सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट पर दावेदारी के साथ इसके कामकाज में व्यापक सुधारों की मांग कर रहे हैं।