लद्दाख बॉर्डर पर अपनी सीमा के भीतर 14000 फीट की ऊंचाई पर भारत द्वारा 255 किमी. सड़क का निर्माण कराये जाने से पड़ोसी मुल्क चाइना इस कदर बौखलाया है कि उसने सारी हदें तोड़ते हुए चार दशक के बाद लद्दाख बॉर्डर पर गलवां बॉर्डर पर भारतीय सैनिकों के साथ हिंसक झड़पें कीं। चाइना ने इस खूनी संघर्ष को उस वक्त अंजाम दिया, जबकि दोनों देशों के बीच तनाव खत्म करने को लेकर सैन्य अधिकारियों के बीच वार्ता चल रही थी। इस संघर्ष में भारतीय सेना के एक कमांडिंग आफिसर समेत 20 जवान शहीद हो गये। दूसरी ओर चाइना के भी 43 सैनिक इस संघर्ष के दौरान ढेर हो गये।
पीठ में छुरा भोंकने वाली चाइना की हस हरकत ने एक बार फिर से बता दिया है कि उसकी किसी भी बात पर भरोसा करना बेकार है। विशेषकर ऐसे वक्त में, जबकि कोरोनावायरस के संक्रमण को लेकर दुनिया भर के राष्ट्रों के निशाने पर आकर तेजी से अलग-थलग पड़ते जा रहे चाइना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर भारत के साथ जानबूझकर तनाव पैदा करने की कोशिश के साथ लद्दाख इलाके में घुसपैठ की, ताकि इस वक्त वह कोरोना वायरस महामारी के सम्बंध में वह दुनिया का ध्यान अपनी संदिग्ध भूमिका से हटा सके।
चाइना द्वारा धोखे से किये गये सैनिक टकराव के दौरान 20 भारतीय सैनिकों की शहादत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। हालांकि, इस संघर्ष में भारत के जांबाज सैनिकों ने पूरी शक्ति के साथ चाइना की हरकत का जवाब देते हुए बड़ी संख्या में उसके सैनिकों को ढेर कर डाला। इस टकराव के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास बड़ी संख्या में चाइनीज एम्बुलेंस, हेलीकाप्टर आदि की आवाजाही देखी गयी, ताकि वह इस हिंसक झड़प के दौरान मारे गये तथा गंभीर रूप से जख्मी हुए अपने सैनिकों को ले जा सके।
गौरतलब है कि सन् 1962 के बाद यह पहला मौका है, जब चाइना के साथ संघर्ष में हमारे सैनिकों ने कुर्बानी दी है। जाहिर सी बात है कि इस घटना के बाद भारत को तुरंत सक्रिय होना था। सो, मंगलवार को इस मसले को लेकर पूरे दिन उच्च स्तरीय बैठकों का दौर चलता रहा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तीनों सेनाध्यक्षों एवं विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत से मुलाकात की। तदुपरांत उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी देते हुए उनके साथ गंभीरता से विचार विमर्श किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मसले को लेकर गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की।
अब जबकि, इस घटना के बाद भी दोनों सेनाओं के अधिकारियों के बीच कूटनीतिक वार्ता का क्रम जारी है, भारत ने भी चाइना को कड़ा जवाब देने की ठान ली है। समझा जा रहा है कि भारत सबसे पहले चाइनीज कम्पनियों के साथ कुछ प्रोजेक्ट्स को लेकर किये गये करार को रद्द करके सबसे पहले चाइना को आर्थिक झटका देगा।
अब चाइना को भी यह अच्छी तरह समझना होगा कि भारत की समस्या के शांतिपूर्ण समाधान की कोशिश को उसकी कमजोरी समझने की कोशिश न करे, क्योंकि भारत भी सन् 1962 से बहुत आगे बढ़ चुका है। प्रधानमंत्री ने इस मसले पर विचार विमर्श के लिए 19 जून को सर्वदलीय बैठक बुलायी है, ताकि सभी दलों को विश्वास में लेकर चाइना को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके।
पीठ में छुरा भोंकने वाली चाइना की हस हरकत ने एक बार फिर से बता दिया है कि उसकी किसी भी बात पर भरोसा करना बेकार है। विशेषकर ऐसे वक्त में, जबकि कोरोनावायरस के संक्रमण को लेकर दुनिया भर के राष्ट्रों के निशाने पर आकर तेजी से अलग-थलग पड़ते जा रहे चाइना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर भारत के साथ जानबूझकर तनाव पैदा करने की कोशिश के साथ लद्दाख इलाके में घुसपैठ की, ताकि इस वक्त वह कोरोना वायरस महामारी के सम्बंध में वह दुनिया का ध्यान अपनी संदिग्ध भूमिका से हटा सके।
चाइना द्वारा धोखे से किये गये सैनिक टकराव के दौरान 20 भारतीय सैनिकों की शहादत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। हालांकि, इस संघर्ष में भारत के जांबाज सैनिकों ने पूरी शक्ति के साथ चाइना की हरकत का जवाब देते हुए बड़ी संख्या में उसके सैनिकों को ढेर कर डाला। इस टकराव के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास बड़ी संख्या में चाइनीज एम्बुलेंस, हेलीकाप्टर आदि की आवाजाही देखी गयी, ताकि वह इस हिंसक झड़प के दौरान मारे गये तथा गंभीर रूप से जख्मी हुए अपने सैनिकों को ले जा सके।
गौरतलब है कि सन् 1962 के बाद यह पहला मौका है, जब चाइना के साथ संघर्ष में हमारे सैनिकों ने कुर्बानी दी है। जाहिर सी बात है कि इस घटना के बाद भारत को तुरंत सक्रिय होना था। सो, मंगलवार को इस मसले को लेकर पूरे दिन उच्च स्तरीय बैठकों का दौर चलता रहा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तीनों सेनाध्यक्षों एवं विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बिपिन रावत से मुलाकात की। तदुपरांत उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस पूरे घटनाक्रम की जानकारी देते हुए उनके साथ गंभीरता से विचार विमर्श किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मसले को लेकर गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की।
अब जबकि, इस घटना के बाद भी दोनों सेनाओं के अधिकारियों के बीच कूटनीतिक वार्ता का क्रम जारी है, भारत ने भी चाइना को कड़ा जवाब देने की ठान ली है। समझा जा रहा है कि भारत सबसे पहले चाइनीज कम्पनियों के साथ कुछ प्रोजेक्ट्स को लेकर किये गये करार को रद्द करके सबसे पहले चाइना को आर्थिक झटका देगा।
अब चाइना को भी यह अच्छी तरह समझना होगा कि भारत की समस्या के शांतिपूर्ण समाधान की कोशिश को उसकी कमजोरी समझने की कोशिश न करे, क्योंकि भारत भी सन् 1962 से बहुत आगे बढ़ चुका है। प्रधानमंत्री ने इस मसले पर विचार विमर्श के लिए 19 जून को सर्वदलीय बैठक बुलायी है, ताकि सभी दलों को विश्वास में लेकर चाइना को मुंहतोड़ जवाब दिया जा सके।