आखिर बीडीओ की भूमिका को क्यों किया जा रहा नजरन्दाज निरीक्षण के दौरान क्या देखते रहे अधिकारी

अंबेडकर नगर, 28 जून। 14वें वित्त आयोग के तकनीकी एवं प्रशासनिक मद के धन गबन का मामला प्रकाश में आने के बाद जिस तरह से इस विभाग से जुड़े उच्च अधिकारियों के द्वारा आरोपियों के विरुद्ध जांच किये बगैर ही आनन फानन में मुकदमा पंजीकृत कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। उच्च अधिकारियों के द्वारा अपनाई गई इस प्रक्रिया से ही से कई अहम सवाल खड़े हो गए हैं। वहीं अगर इस प्रकरण की जांच में बैंकों की भूमिका को भी शामिल कर लिया जाए तो इस प्रकरण से अपना पल्ला झाड़ने वाले उच्च अधिकारियों की भूमिका का सही अंकलन किया जा सकता है। बता दें कि शासन द्वारा ग्रामीण स्तर पर तकनीकी एवं प्रशासनिक व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करने के लिए शासनादेश 2016 के आधार पर 14वें वित्त आयोग तकनीकी एवं प्रशासनिक मद की व्यवस्था की गई थी।जिसमे अभी हाल ही में पूरे जनपद में करोड़ों रुपए के साथ अकेले बसखारी विकासखंड में प्रथम दृष्टया 11 लाख 535 रूपये के गबन का मामला प्रकाश में आ चुका है। जिसकी विभागीय जांच किए बगैर ही खंड विकास अधिकारी बसखारी के द्वारा आनन-फानन में एक पूर्व खंड सहायक विकास अधिकारी व एक वर्तमान सहायक विकास अधिकारी के विरुद्ध कई संगेय धाराओं में धन गबन को लेकर मुकदमा पंजीकृत करा दिया गया है। जो विभाग से जुड़े कई अन्य उच्च अधिकारियों के द्वारा कहीं ना कहीं अपनी गर्दन को बचाने का प्रयास बताया जा रहा है। इस प्रकरण में ऐसी ही कई चर्चाओं को लेकर ढेर सारे सवाल लोगों के जेहन में उठने लगे हैं। जब इस मद में आए हुए धन को खंड विकास अधिकारी व खंड सहायक विकास अधिकारी के द्वारा संचालित संयुक्त खाते से खर्च होना था। तो खंड विकास अधिकारी ने शासनदेश के बावजूद एकल खाते को संयुक्त खाते के रूप में संचालन करने की जिम्मेदारी क्यों नहीं समझी। जबकि कोई भी शासनादेश उच्चाधिकारियों के माध्यम से ही उनके अधीनस्थ अधिकारियों तक पहुंचता है। वही सरकारी धन का दुरुपयोग ना हो इसकी मॉनिटरिंग के लिए भी ब्लॉक मुख्यालय से लेकर इस विभाग से जुड़े निरीक्षण अधिकारी सहित कई उच्च अधिकारियों को जिम्मेदारी दी जाती है। लेकिन इन अधिकारियों की नाक के नीचे 2016 से संचालित इस मद से जुड़े खातों से धन का दुरुपयोग संबंधित अधिकारियों के द्वारा किया जाता रहा और इसकी भनक किसी उच्च अधिकारी को नहीं लग पाई। ऐसा कैसे संभव हो सकता है? वहीं विभाग से जुड़े एक उच्च अधिकारी का भी मानना है कि बगैर जांच किए मुकदमा पंजीकृत कराने की प्रक्रिया गलत है।तो बिना जांच के ही मुकदमा कैसे पंजीकृत करा दिया गया।।साथ ही बैंकों में शासनादेश के निर्देशानुसार अगर खातों का संचालन संयुक्त रूप से होना था।और बैंकों में इस तरह के खातों का संचालन एकल किसके आदेश पर कराया गया? बगैर किसी उच्च अधिकारी की संस्तुति के ही सहायक विकास अधिकारियों ने खाते का संचालन एकल किया? आदि कई अहम सवालो के साथ अगर बैंकों की भूमिका को ध्यान में रखकर इस पूरे प्रकरण की जांच किसी जांच एजेंसी से कराई जाए तो आरोपी अधिकारियों के साथ-साथ कई उच्च अधिकारियों की भी इस करोड़ों रुपए के हुए घोटाले में संलिप्तता उजागर हो सकती है। वही इस प्रकरण में निरीक्षण अधिकारी की भी भूमिका तय की जानी चाहिए जिससे इस तरह के होने वाले भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके।

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