भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि यहाँ कार्य करनेवाली सामाजिक संस्थाओं को हमेशा उपेक्षा की नजरों से देखा जाता है। लेकिन देश पर जब भी आपदा आती है, भारत की स्वयं सेवी संस्थाओं ने कठिन परिस्थितियों में भी बढ़-चढ़कर कार्य किया है। सरकार, पुलिस या प्रशासन को यह समझने की जरूरत है कि सामाजिक संस्थाएं देश के लिए एक संसाधन हैं, और अगर वे कोई गलती करते हैं तो उसमें पुलिस-प्रशासन या सत्ता में बैठे लोगों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है।
इसी मानसिकता और सरकारी कार्यप्रणाली की शिकार बी केयर फाउडेशन नामक संस्था है जो करीब साढे चार वर्षों से गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों तथा उनके बच्चों की भलाई के लिए समर्पण भाव से कार्य कर रही है तथा समाज कल्याण में एक छोटा सा एक योगदान देने की कोशिश कर रही है।
संस्था कार्यालय में नवम्बर 2018 में नोएड़ा पुलिस द्वारा यह कहकर एक रेड डाला गया कि यह एक फर्जी संस्था है जिसका कोई निबन्धन या संस्था होने का कोई प्रमाण नहीं है। यह भी आरोप लगाया गया कि ये गरीब बच्चों के नाम अवैध तरीके से पर पैसे लेते हैं और उसका दुरपयोग करते हैं। पुलिस के अनुसार यह रेड एक मुखबीर के द्वारा दी गई गुप्त सुचना पर आधारित थी। बी केयर फाउडेशन के मुख्य कार्यकारी विकास गोस्वामी बताते हैं कि वास्तव में पुलिस मेरे कार्यालय के ऊपरी तल पर स्थित एक काल सेंटर पर छापा मारने आयी थी, इसी दरम्यान उन्हें यह ग़लतफ़हमी हो गयी कि मेरा कार्यालय भी काल सेंटर का ही अंग है।
बाद में उन्हें पता चला कि यह तो एक सामाजिक संस्था का कार्यालय है तो उनलोगों ने संस्था को ही फर्जी बताकर केस दर्ज कर लिया।
इस आरोप के बाद मार्च 2019 में संस्था ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में सेशन 482 के अंतर्गत एक अपील दायर की तथा माननीय न्यायालय के सामने यह बताया कि संस्था पूरी तरीके से कानून के दायरे में रहकर अपना कार्य कर रही है और संस्था पर जो भी आरोप लगाए गए है, वह गलत एवं निराधार है। संस्था ने नोएड़ा पुलिस द्वारा लगाये आरोपों के जवाब में न्यायालय में सभी सबूत दिये तथा हर आरोपों का पूर्णतः खण्डन किया। संस्था द्वारा कोर्ट में निबन्धन प्रमाण पत्र, आई0एस0ओ0 सर्टीफिकेट, 12ए तथा 80जी का निबन्धन प्रमाण पत्र सबकुछ उपलब्ध कराया गया। संस्था ने 73 गरीब मरीजों का उपचार कराया जिसके साक्ष्य तथा प्रमाण प्रस्तुत किये गये इसके अलावा संस्था द्वारा आय- व्यय का बेलेंस सीट, आई0टी0आर0 की कॉपी भी दी गई। माननीय न्यायालय ने मामले को संज्ञान में लेते हुए 4 अप्रैल 2019 को संस्था के ऊपर लगाये गये सभी आरोपों पर स्टे कर दिया तथा 6 हफ्तों में पुलिस को इन सारे आरोपों तथा ऐविडेंस के विषय पर लिखित जवाब मांगा, जो कि 6 हफ्तों के अन्दर ही देना था। लेकिन एक साल से ज्यादा बीतने के बाद भी नोएड़ा पुलिस द्वारा किसी भी प्रकार का माननीय न्यायालय को जवाब नहीं दिया गया।
विकास गोस्वामी कहते है कि किसी भी संस्थान को शक्ति का दुरपयोग करते हुए बदनाम करना दुखद है। यह किसी के श्रम, समय और पैसे की बर्बादी है, जो किसी अपराध से कम नहीं है। ये आरोप पूर्णतः संस्था तथा संस्था के एम्प्लाई एवं वोलेंटियर को बदनाम करने की गलत मानसिकता है। यद्द्पि बी केयर फाउडेशन को एक सॉफ्ट टारगेट बनाया गया, लेकिन संस्था आज भी उचित तरीके से समाज कल्याण के कार्य कर रही है और करती रहेगी।
इसी मानसिकता और सरकारी कार्यप्रणाली की शिकार बी केयर फाउडेशन नामक संस्था है जो करीब साढे चार वर्षों से गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों तथा उनके बच्चों की भलाई के लिए समर्पण भाव से कार्य कर रही है तथा समाज कल्याण में एक छोटा सा एक योगदान देने की कोशिश कर रही है।
संस्था कार्यालय में नवम्बर 2018 में नोएड़ा पुलिस द्वारा यह कहकर एक रेड डाला गया कि यह एक फर्जी संस्था है जिसका कोई निबन्धन या संस्था होने का कोई प्रमाण नहीं है। यह भी आरोप लगाया गया कि ये गरीब बच्चों के नाम अवैध तरीके से पर पैसे लेते हैं और उसका दुरपयोग करते हैं। पुलिस के अनुसार यह रेड एक मुखबीर के द्वारा दी गई गुप्त सुचना पर आधारित थी। बी केयर फाउडेशन के मुख्य कार्यकारी विकास गोस्वामी बताते हैं कि वास्तव में पुलिस मेरे कार्यालय के ऊपरी तल पर स्थित एक काल सेंटर पर छापा मारने आयी थी, इसी दरम्यान उन्हें यह ग़लतफ़हमी हो गयी कि मेरा कार्यालय भी काल सेंटर का ही अंग है।
बाद में उन्हें पता चला कि यह तो एक सामाजिक संस्था का कार्यालय है तो उनलोगों ने संस्था को ही फर्जी बताकर केस दर्ज कर लिया।
इस आरोप के बाद मार्च 2019 में संस्था ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में सेशन 482 के अंतर्गत एक अपील दायर की तथा माननीय न्यायालय के सामने यह बताया कि संस्था पूरी तरीके से कानून के दायरे में रहकर अपना कार्य कर रही है और संस्था पर जो भी आरोप लगाए गए है, वह गलत एवं निराधार है। संस्था ने नोएड़ा पुलिस द्वारा लगाये आरोपों के जवाब में न्यायालय में सभी सबूत दिये तथा हर आरोपों का पूर्णतः खण्डन किया। संस्था द्वारा कोर्ट में निबन्धन प्रमाण पत्र, आई0एस0ओ0 सर्टीफिकेट, 12ए तथा 80जी का निबन्धन प्रमाण पत्र सबकुछ उपलब्ध कराया गया। संस्था ने 73 गरीब मरीजों का उपचार कराया जिसके साक्ष्य तथा प्रमाण प्रस्तुत किये गये इसके अलावा संस्था द्वारा आय- व्यय का बेलेंस सीट, आई0टी0आर0 की कॉपी भी दी गई। माननीय न्यायालय ने मामले को संज्ञान में लेते हुए 4 अप्रैल 2019 को संस्था के ऊपर लगाये गये सभी आरोपों पर स्टे कर दिया तथा 6 हफ्तों में पुलिस को इन सारे आरोपों तथा ऐविडेंस के विषय पर लिखित जवाब मांगा, जो कि 6 हफ्तों के अन्दर ही देना था। लेकिन एक साल से ज्यादा बीतने के बाद भी नोएड़ा पुलिस द्वारा किसी भी प्रकार का माननीय न्यायालय को जवाब नहीं दिया गया।
विकास गोस्वामी कहते है कि किसी भी संस्थान को शक्ति का दुरपयोग करते हुए बदनाम करना दुखद है। यह किसी के श्रम, समय और पैसे की बर्बादी है, जो किसी अपराध से कम नहीं है। ये आरोप पूर्णतः संस्था तथा संस्था के एम्प्लाई एवं वोलेंटियर को बदनाम करने की गलत मानसिकता है। यद्द्पि बी केयर फाउडेशन को एक सॉफ्ट टारगेट बनाया गया, लेकिन संस्था आज भी उचित तरीके से समाज कल्याण के कार्य कर रही है और करती रहेगी।