विज्ञान रूपी इंजन से तेज गति से चलने वाली ये दुनिया अचानक थम सी गयी, जहां पूरी दुनिया के तमाम देश खुद को एक दूसरे से आगे होने की होड़ में लगे थे, आज अचानक इन सब ने सब कुछ छोड़कर "इंसानियत को कैसे बचाया जाए" इस पर काम कर रहे हैं, आज न किसी को पीछे होने का डर है न किसी को आगे बढ़ने की चाहत, सबको सिर्फ एक ही बात की चिंता हो रही है कि अपने देश और लोगों को कैसे बचाया जाए ???
अब इन विषम परिस्थितियों में सब बेबस, लाचार नजर आ रहे हैं कभी न रुकने वाले लोग भी थके हारे नजर आ रहे हैं, जिनके सपने आसमान से भी ऊंचे थे वो सब भी आज जिंदा कैसे रहा जाए ? इस पर काम कर रहे हैं, हमेसा जरूरत में साथ देने वाले डॉक्टर, वैज्ञानिक सब को इस बीमारी ने परेसान करके रख दिया है, लोग 24 घण्टे इस बीमारी से कैसे निबटा जाए, उसी की तैयारी कर रहे हैं ।
लेकिन इस "कोरोना" ने बेशक पूरी दुनिया को परेसान कर दिया है, लेकिन इंसान को इससे सीख बहुत बड़ी - बड़ी मिली हैं, शायद अब इंसान को ये समझ आ गया हो कि किसी भी देश, समाज के लिए सबसे जरूरी क्या है ? मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा या स्कूल, अस्पताल, जरूरतमन्द संसाधन ???
मुसीबत के समय उनके साथ कौन है ?क्या वो जिससे सुख, शांति, कुशलता मांगते हैं क्या वहां से कुछ मिलता है ? या फिर आज इंसान - इंसान के काम आ रहा है, आज कोई किसी का जाती - धर्म नही पूंछ रहा है सब एक दूसरे की मदद कर रहे हैं, शायद यही इंसानियत है ।
शाक्य अरविन्द मौर्य
अब इन विषम परिस्थितियों में सब बेबस, लाचार नजर आ रहे हैं कभी न रुकने वाले लोग भी थके हारे नजर आ रहे हैं, जिनके सपने आसमान से भी ऊंचे थे वो सब भी आज जिंदा कैसे रहा जाए ? इस पर काम कर रहे हैं, हमेसा जरूरत में साथ देने वाले डॉक्टर, वैज्ञानिक सब को इस बीमारी ने परेसान करके रख दिया है, लोग 24 घण्टे इस बीमारी से कैसे निबटा जाए, उसी की तैयारी कर रहे हैं ।
लेकिन इस "कोरोना" ने बेशक पूरी दुनिया को परेसान कर दिया है, लेकिन इंसान को इससे सीख बहुत बड़ी - बड़ी मिली हैं, शायद अब इंसान को ये समझ आ गया हो कि किसी भी देश, समाज के लिए सबसे जरूरी क्या है ? मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा या स्कूल, अस्पताल, जरूरतमन्द संसाधन ???
मुसीबत के समय उनके साथ कौन है ?क्या वो जिससे सुख, शांति, कुशलता मांगते हैं क्या वहां से कुछ मिलता है ? या फिर आज इंसान - इंसान के काम आ रहा है, आज कोई किसी का जाती - धर्म नही पूंछ रहा है सब एक दूसरे की मदद कर रहे हैं, शायद यही इंसानियत है ।
शाक्य अरविन्द मौर्य