महाराष्ट्र पालघर में सन्तों के साथ हुई दर्दनाक घटना के विरोध में उतरे राष्ट्रीय किसान मंच के नेता सर्वेश पाल

बोले हिंदूवादी नेता की सरकार होते हुए भी सन्तों की हत्या बर्दाश्त नहीं

 मौजूद पुलिस कर्मियों पर निलम्बन की कार्यवाही की की मांग

देश इस वैश्विक महामारी कोरोना के संकट से गुजर रहा है ।वही मुम्बई में  हुई माब लीचिंग की घटना ने एक बार फिर से मानवता को शर्मशार कर दिया है। जहाँ पुलिस के सामने दो साधु और एक ड्राइवर की भीड़ ने अफवाहों के चलते  हत्या कर दी । जबकि साधुओं के साथ पुलिस भी मौजूद थी वह भी उनकी मदद नही कर सकी। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण घटना है इस घटना को लेकर राष्ट्रीय किसान मंच के नेता  सर्वेश पाल महाराष्ट्र सरकार की अलोचना करते है।

 जब अनियंत्रित भीड़ द्वारा किसी दोषी को उसके किये अपराध के लिये या कभी-कभी मात्र अफवाहों के आधार पर ही बिना अपराध किये भी तत्काल सज़ा दी जाए अथवा उसे पीट-पीट कर मार डाला जाए तो इसे भीड़ द्वारा की गई हिंसा या मॉब लिंचिंग कहते है।
 झूठी अफवाहों के चलते भीड़ ने कई लोगों को मौत के घाट उतारा है आखिर ऐसा क्या कारण है अचानक इतने लोग एक साथ एक ही मकसद से कैसे इकट्ठे हो जाते हैं। देश में पूर्व में भी इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी हैं जैसे झारखंड में गौ तस्करी के आरोप में युवक की हत्या,असम में बच्चा चोरी के आरोप में एक इंजीनियर निलोप्पल दास, और व्यपारी अभिजीत की हत्या , महाराष्ट्र में  लातूर ,  औरंगाबाद ,गोंदिया ,बीड, जलगाँव, धुले, में भी कई घटनाये पूर्व में हों चुकी है।
IPC की धारा 302, 304, 307, 308, 323, 325, 34, 120-बी, 141 और 147-149 और CRPC की धारा 129 और 153 ऐसे अपराधों के लिए पर्याप्त प्रावधान हैं।
महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर, 2017 को राज्यों को मॉब लिंचिंग रोकने का आदेश दिया था।हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने की वजह से, उनके खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया गया  था नेताओं के संरक्षण में मॉब लिंचिंग एक संगठित उद्योग बन गया है। जिसके खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की बजाय, राज्यों के खिलाफ अवमानना नोटिस से क्या हासिल होगा।
आईटी एक्ट के तहत इंटरमीडियरी नियमों के अनुसार इंटरनेट और सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा देश में शिकायत अधिकारी की नियुक्ति ज़रूरी है। दिल्ली हाईकोर्ट ने अगस्त, 2013 में सरकार को इस नियम को लागू कराने के आदेश दिए थे। इसके बाद फेसबुक, गूगल और ट्विटर जैसी कंपनियों ने भारत के लिए शिकायत अधिकारी को यूरोप और अमेरिका में बैठा दिया।गोरक्षक, डायन और बच्चा चोरी जैसी अफवाहों को फेसबुक और व्हॉट्सऐप जैसे प्लेटफार्मों से प्रसारित करने से रोकने के लिए पुलिस और सुरक्षाबल लाचार रहते हैं।व्हॉट्सऐप में शिकायत अधिकारी के माध्यम से अफवाहों के संगठित बाज़ार पर लगाम लगाने के साथ पुलिस द्वारा पुराने कानूनों पर सख्त अमल से मॉब लिंचिंग पर यदि प्रभावी अंकुश नहीं लगाया गया, तो देश को भीड़तंत्र बनने से कैसे रोका जा सकेग।
मानवता की दुहाई देने वाले के मानवाधिकार संगठन अगर ठोस  कार्यवाही करे तो शायद कुछ हद तक मॉब लीचिंग की घटनाओं पर अंकुश लग सकता है।
 अगर इसको लेकर कोई ठोस कदम न उठाए गए तो आने वाले समय में हम धार्मिक और जातिगत  उन्मादों में  पड़कर  देश के दो फाड़ कर देंगे जिससे देश मे  ही गृह युद्ध जैसे हालात हो जाएंगे और हम किसी भी सूरतेहाल में आगे बढ़ न पाएंगे। जरूरी हो गया है कि हमे जातिगत , धार्मिक मामलों में बेहद संजीदगी से काम करते हुए ऐसा कोई कृत्य न करना चाहिए जिससे किसी भी धर्म विशेष के व्यक्ति को कोई ठेस पहुँचे और उसकी जान चली जाए।भीड़ में होने वाली घटनाओं (मॉब लीचिंग  ) को रोकते हुए एक सभ्य मानव समाज की स्थापना करनी होगी।
यहां भीड़  तानाशाही व्यवस्था का ही विस्तार है। भीड़ सभ्य समाज की सोचने समझने की क्षमता और बातचीत से मसले सुलझाने का रास्ता ख़त्म कर देती है।ताकि ये घटनाएं दुबारा न हो सके।



जीएसऐ न्यूज़ के लिए यूपी हेड सर्वेश कुमार की रिपोर्ट

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