वाराणसी :- देशभर में होली का त्योहार 10 मार्च को मनाया जाएगा, लेकिन भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी काशी अभी से होली के रंग में पूरी तरह रंग गई है. बाबा विश्वनाथ के शहर काशी के लोगों पर होली का खुमार चढ़ा हुआ है. यहां मंगलवार को गौरा यानी मां पार्वती की तेल-हल्दी की रस्म बड़े धूमधाम से मनाई जा रही है.वहीं, 5 मार्च को रंगभरी एकादशी के मौके पर यहां के लोग जमकर गुलाल खेलेंगे. इसमें ना केवल काशीवासी शामिल होंगे बल्कि पूरी दुनिया से बाबा के भक्त भी यहां पहुंचेंगे।
356 सालों से जारी है ये प्रथा
काशी में यह परंपरा पिछले 356 सालों से चली आ रही है. इस परंपरा के मुताबिक शिवरात्रि के दिन बाबा विश्वनाथ का पार्वती से विवाह संपन्न होता है,और उसके बाद रंग एकादशी वाले दिन पार्वती के गौना की तैयारियां जोरों पर हैं।
जानिए शिव-पार्वती के विवाह का पूरा कार्यक्रम
शिव-पार्वती के विवाह के सारे कार्यक्रम विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत कुलपति तिवारी के टेढ़ी नीम स्थित नवीन महंत आवास से संपन्न होंगे. वहीं, 5 मार्च यानी रंग एकादशी पर रुद्राभिषेक के साथ अनुष्ठान शुरू हुआ. इस दौरान सुबह 6 बजे पंचगव्य स्नान के बाद बाबा का पूजन हुआ. जिसके बाद 7 से नौ बजे के बीच लोकाचार निभाया गया. वहीं, 9 बजे से बाबा का श्रृंगार हुआ. 11 बजे भोग और महाआरती हुई. उसके बाद बाबा की पालकी सजाकर नगर भ्रमण कराया गया.इस दौरान बाबा के हजारों भक्त मौजूद रहें, जो छतों से बाबा पर श्रद्धा के फूल की बारिश किए. साथ ही हर तरफ शंख और डमरू की ध्वनि के बीच हर हर महादेव का स्वर हर तरफ गूंजता सुनाई दीया।
जानिए रंगभरी एकादशी की खास बात
इसकी खास बात ये है कि जहां एक ओर बाबा की आंख में सजने वाला काजल विश्वनाथ मंदिर के खप्पड़ से लाया जाता है.वहीं, दूसरी ओर गौरा यानी मां पार्वती की मांग अन्नपूर्णा जी के मुख्य विग्रह से लाए सिंदूर से भरी जाती है।
यही नहीं, बाबा के साथ नादस्वरम और बंगाल के विख्यात ढाक की गूंज भी पालकी यात्रा में सुनाई दीया।
अध्यात्म की नगरी काशी मैं रंगभरी एकादशी पर्व को बेहद धूमधाम से मनाया जाता है काशी में रंगभरी एकादशी का अलग ही अपनी जगह विशेषता महत्त्व है यहां पर रंगभरी एकादशी को भक्त बहुत ही मस्ती में साथ मनाते हैं।
मथुरा की होली जहां एक तरफ कृष्ण राधा और गोपियों के लिए जानी जाती है तो काशी में रंगभरी एकादशी से शुरू होने वाली होली को बाबा भोलेनाथ माता गौरा (पार्वती) के गौने के रूप में जाना जाता है
होली से 5 दिन पूर्व काशी में यह पर्व मनाया जाता है। जो न सिर्फ परंपरा का निर्वहन है बल्कि बाबा विश्वनाथ और माता गौरा के मधुर संबंधों की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
रंगभरी एकादशी की मान्याता
काशी में होली की शुरुआत बसंत पंचमी से मानी जाती है. ऐसी परंपरा है कि काशी में 40 दिनों तक चलने वाली होली के हुड़दंग की शुरुआत बसंत पंचमी से होती है और इस दिन ही बाबा भोलेनाथ के विवाह का कार्यक्रम शुरू होता है. बसंत पंचमी को तिलक के बाद महाशिवरात्रि पर बाबा भोलेनाथ अपनी अर्धांगिनी के संग सात फेरे लेते हैं. माता गौरा शादी के बाद अपने मायके में परंपराओं का निर्वहन करते हुए आती है और फिर भोलेनाथ रंगभरी एकादशी को कैलाश यानी बाबा विश्वनाथ मंदिर से निकलकर महंत आवास पहुंचते हैं, जो माता गौरा का मायका माना जाता है।
वाराणसी की रंगभरी एकादशी
यहां से भगवान शिव माता पार्वती और गोद में भगवान गणेश की चल रजत प्रतिमा रजत प्रतिमा को पालकी में रखा जाता है और भक्त इस पालकी को कंधे लेकर निकलते हैं।
इस दौरान भोले के भक्त आराध्य को अबीर-गुलाल चढ़ाकर होली की शुरुआत करते हैं। रजत सिंहासन पर विराजमान होंगे शिव
इस बार की रंगभरी एकादशी कुछ अलग भी होगी क्योंकि विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के दौरान महंत आवास भी विस्तारीकरण की जद में आ गया. अब गोदौलिया इलाके का एक गेस्ट हाउस महंत आवास के रूप में जाना जाता है, यहीं से इस बार महादेव, माता पार्वती और भगवान गणेश की चल रजत प्रतिमा निकलेगी।भक्त होली खेलते हुए विश्वनाथ मंदिर पहुंचेंगे। जहां पर बाबा विश्वनाथ के गर्भ गृह में उनके मुख्य शिवलिंग के ऊपर उस रजत सिंहासन पर विराजमान होगी।बाबा की सपरिवार रजत प्रतिमा और महाआरती के बाद भक्त होली खेलकर अपने इस महापर्व की शुरुआत करेंगे. इस उत्सव को महंत परिवार 350 सालों से भी ज्यादा वक्त से करते आ रहे हैं और इस बार भी इसे धूमधाम से करने की तैयारी है। रंगभरी एकादशी के बाद सर चढ़ बोलेगा होली का त्योहार।रंगभरी एकादशी कोई कार्यक्रम नहीं बल्कि एक उत्सव है जो काशी का हर व्यक्ति मनाना चाहता है।इस दिन से काशी में पूरी तरह से होली की खुमारी छा जाती है और अपने आराध्य को गुलाल चढ़ाकर लोग इसकी शुरुआत करते हैं।
संवाददाता:- रवि कौशिक वाराणसी
356 सालों से जारी है ये प्रथा
काशी में यह परंपरा पिछले 356 सालों से चली आ रही है. इस परंपरा के मुताबिक शिवरात्रि के दिन बाबा विश्वनाथ का पार्वती से विवाह संपन्न होता है,और उसके बाद रंग एकादशी वाले दिन पार्वती के गौना की तैयारियां जोरों पर हैं।
जानिए शिव-पार्वती के विवाह का पूरा कार्यक्रम
शिव-पार्वती के विवाह के सारे कार्यक्रम विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत कुलपति तिवारी के टेढ़ी नीम स्थित नवीन महंत आवास से संपन्न होंगे. वहीं, 5 मार्च यानी रंग एकादशी पर रुद्राभिषेक के साथ अनुष्ठान शुरू हुआ. इस दौरान सुबह 6 बजे पंचगव्य स्नान के बाद बाबा का पूजन हुआ. जिसके बाद 7 से नौ बजे के बीच लोकाचार निभाया गया. वहीं, 9 बजे से बाबा का श्रृंगार हुआ. 11 बजे भोग और महाआरती हुई. उसके बाद बाबा की पालकी सजाकर नगर भ्रमण कराया गया.इस दौरान बाबा के हजारों भक्त मौजूद रहें, जो छतों से बाबा पर श्रद्धा के फूल की बारिश किए. साथ ही हर तरफ शंख और डमरू की ध्वनि के बीच हर हर महादेव का स्वर हर तरफ गूंजता सुनाई दीया।
जानिए रंगभरी एकादशी की खास बात
इसकी खास बात ये है कि जहां एक ओर बाबा की आंख में सजने वाला काजल विश्वनाथ मंदिर के खप्पड़ से लाया जाता है.वहीं, दूसरी ओर गौरा यानी मां पार्वती की मांग अन्नपूर्णा जी के मुख्य विग्रह से लाए सिंदूर से भरी जाती है।
यही नहीं, बाबा के साथ नादस्वरम और बंगाल के विख्यात ढाक की गूंज भी पालकी यात्रा में सुनाई दीया।
अध्यात्म की नगरी काशी मैं रंगभरी एकादशी पर्व को बेहद धूमधाम से मनाया जाता है काशी में रंगभरी एकादशी का अलग ही अपनी जगह विशेषता महत्त्व है यहां पर रंगभरी एकादशी को भक्त बहुत ही मस्ती में साथ मनाते हैं।
मथुरा की होली जहां एक तरफ कृष्ण राधा और गोपियों के लिए जानी जाती है तो काशी में रंगभरी एकादशी से शुरू होने वाली होली को बाबा भोलेनाथ माता गौरा (पार्वती) के गौने के रूप में जाना जाता है
होली से 5 दिन पूर्व काशी में यह पर्व मनाया जाता है। जो न सिर्फ परंपरा का निर्वहन है बल्कि बाबा विश्वनाथ और माता गौरा के मधुर संबंधों की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
रंगभरी एकादशी की मान्याता
काशी में होली की शुरुआत बसंत पंचमी से मानी जाती है. ऐसी परंपरा है कि काशी में 40 दिनों तक चलने वाली होली के हुड़दंग की शुरुआत बसंत पंचमी से होती है और इस दिन ही बाबा भोलेनाथ के विवाह का कार्यक्रम शुरू होता है. बसंत पंचमी को तिलक के बाद महाशिवरात्रि पर बाबा भोलेनाथ अपनी अर्धांगिनी के संग सात फेरे लेते हैं. माता गौरा शादी के बाद अपने मायके में परंपराओं का निर्वहन करते हुए आती है और फिर भोलेनाथ रंगभरी एकादशी को कैलाश यानी बाबा विश्वनाथ मंदिर से निकलकर महंत आवास पहुंचते हैं, जो माता गौरा का मायका माना जाता है।
वाराणसी की रंगभरी एकादशी
यहां से भगवान शिव माता पार्वती और गोद में भगवान गणेश की चल रजत प्रतिमा रजत प्रतिमा को पालकी में रखा जाता है और भक्त इस पालकी को कंधे लेकर निकलते हैं।
इस दौरान भोले के भक्त आराध्य को अबीर-गुलाल चढ़ाकर होली की शुरुआत करते हैं। रजत सिंहासन पर विराजमान होंगे शिव
इस बार की रंगभरी एकादशी कुछ अलग भी होगी क्योंकि विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के दौरान महंत आवास भी विस्तारीकरण की जद में आ गया. अब गोदौलिया इलाके का एक गेस्ट हाउस महंत आवास के रूप में जाना जाता है, यहीं से इस बार महादेव, माता पार्वती और भगवान गणेश की चल रजत प्रतिमा निकलेगी।भक्त होली खेलते हुए विश्वनाथ मंदिर पहुंचेंगे। जहां पर बाबा विश्वनाथ के गर्भ गृह में उनके मुख्य शिवलिंग के ऊपर उस रजत सिंहासन पर विराजमान होगी।बाबा की सपरिवार रजत प्रतिमा और महाआरती के बाद भक्त होली खेलकर अपने इस महापर्व की शुरुआत करेंगे. इस उत्सव को महंत परिवार 350 सालों से भी ज्यादा वक्त से करते आ रहे हैं और इस बार भी इसे धूमधाम से करने की तैयारी है। रंगभरी एकादशी के बाद सर चढ़ बोलेगा होली का त्योहार।रंगभरी एकादशी कोई कार्यक्रम नहीं बल्कि एक उत्सव है जो काशी का हर व्यक्ति मनाना चाहता है।इस दिन से काशी में पूरी तरह से होली की खुमारी छा जाती है और अपने आराध्य को गुलाल चढ़ाकर लोग इसकी शुरुआत करते हैं।
संवाददाता:- रवि कौशिक वाराणसी