भारतीय एकता! मानव विकास! हमारा प्रयास!
सन्त गाडगे बाबा की जयन्ती के उपलक्ष्य में मानव विकास संस्थान, जिला-उन्नाव की कार्यकारिणी के सदस्यों की बैठक सम्पन्न हुई। जिसके मुख्य अतिथि संस्था प्रमुख डॉ जी पी मानव थे। सभा की अध्यक्षता मा. द्वारिका दास बैरागी जी ने किया।
संचालन मा.गोविन्द प्रसाद, महामंत्री मा.वि.सं.ने किया। धन्यवाद ज्ञापन मा.वि.सं.की जिला अध्यक्ष नीलम गौतम जी ने किया।
सर्वप्रथम मुख्य अतिथि महोदय एवं सभाध्यक्ष सहित पदाधिकारियों ने भगवान बुद्ध, सन्त गाडगे बाबा, बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर, महात्मा ज्योतिबा राव फूले,सावित्री फूले सहित कई महापुरुषों पर पुष्पार्पित किए गए।रोली गौतम ने बुद्ध वंदना करवाई।
मुख्य अतिथि महोदय ने सन्त गाडगे बाबा के जीवन चरित्र एवं उनकी शिक्षाओं पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने ने बताया कि सन्त गाडगे बाबा जन्म महाराष्ट्र के अकोला जिले के शेणपुर गांव में 23.02.1876ई. में धोबी जाति में हुआ था। उनके पिताजी का नाम झिंगरा जी एवं माता जी का नाम सखू बाई था। उनके बचपन का नाम "डेबू" था। स्त्री शूद्रोनाधीयताम् के अनुसार स्त्रियों और शूद्रों को पढ़ने- लिखने का अधिकार नहीं था। पढ़ाई तो दूर, साफ़-सुथरे कपड़े पहनना, बड़ा मकान बनाना तक मना था। गाडगे बाबा के बचपन का कार्य जानवर चराना एवं खेती बाड़ी में काम करना था।
गांव के पशु चराने वाले दोस्तों के साथ एक भजन मंडली बना ली थी। जो बुद्धवादी/ मानवतावादी विचारधारा के सन्तों- गुरूकबीर, गुरू रविदास, गुरू नानक देव, गुरू नामदेव एवं गुरू चोखा मेला आदि सन्तगुरुओं के भजन गाते थे। वे भजन मंडली के माध्यम से दलितों( बहुजनों) को शिक्षा के प्रति जागरूक करना, अन्धविश्वासों से दूर करना,जीव हत्या न करना,मद्यपान से दूर रहना,स्वच्छता पर ध्यान देना, मूर्ति पूजा न करना, छुआ-छूत ख़तम करना एवं चरित्र निर्माण पर विशेष जोर देते थे।
तथागत भगवान बुद्ध की विचारधारा को लेकर चलने वाले डेबूजी अर्थात् गाडगे बाबा ने कहा कि हमें स्वयं ही अपने इस दलित, पीड़ित , वंचित एवं पिछड़े समाज के लिए कुछ करना होगा।यह दर्द हमारा है, तो इसका इलाज भी हमें ही करना होगा। समाज सेवा हेतु घर का त्याग कर दिया। गांवोंमें सफाई करना, उससे सम्बन्धित उपदेश देना। साफ़ सफाई के बदले जो मेहनताना मिलता उससे उन्होंने ने कई विद्यालय, छात्रावास,धर्मशाला, बारातशाला, आश्रमस्कूल, महिला आश्रम, गौशाला, अस्पताल, तालाब व कुएँ बनवाए।
बाबा तो अनपढ़ थे लेकिन शिक्षा के महत्व को बखूबी जानते थे।सारी समस्याओं की जड़ ही अशिक्षा है, अज्ञान है। वे ऐसा मानते थे। अतः दलितों व पिछड़ों को एक बार ललकारते हुए कहा कि कहते हो पैसा नहीं है, तो खाने की थाली बेंच डालो,हाथ पर रोटी खाओ,पत्नी के लिए कम कीमत की साड़ी खरीदो,समधी की खातिरदारी मत करो।
गाडगे बाबा की धर्मपत्नी का नाम कुंताबाई था। बाबा की दो बेटियां जिनकी शादी हो चुकी थी। एक पुत्र गोविन्दा था। बाबा के गृह त्याग के बाद परिवार को नाना प्रकार के कष्ट झेलने पड़े। पागल कुत्ते के काटने से गोविन्दा की मृत्यु हो गई,किन्तु पुत्र की मृत्यु पर जरा भी गाडगे बाबा आहत नहीं हुए और न ही उन्होंने मानव कल्याण का मिशन छोड़ा।
गाडगे बाबा और डॉ अम्बेडकर-- गाडगे बाबा के वैसे तो लाखों अनुयायी थे। जिनमें मजदूर से लेकर मंत्री तक थे। लेकिन विश्व के महापुरुषों में से एक बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर भी उनके प्रशंसक थे। वे गाडगे बाबा से यदा- कदा मिलते भी रहते थे। डॉ अम्बेडकर गाडगे बाबा को बोधिसत्व सा सम्मान देते थे। वे गुरू ज्योतिबा राव फूले के बाद सबसे बड़ा त्यागी जन सेवक मानते थे। दोनों ही एक दूसरे के प्रशंसक थे। डॉ अम्बेडकर कभी- कभी गाडगे बाबा के भजन - उपदेश सुनने जाया करते थे। गाडगे बाबा अपने अनुयायियों से डॉ अम्बेडकर की जय के नारे भी। ने डॉ अम्बेडकर को शोषितों- पीड़ितों का उद्धारक कहा था। बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर ने भी कई अवसरों पर गाडगे बाबा को शाल ओढ़ा कर सम्मानित किया था।
जब बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर जी का आकस्मिक परिनिर्वाण 06 दिसम्बर 1956 को हुआ तो वे भीतर से टूट गये क्योंकि वे मानते थे कि भारत के अछूतों- पिछड़ों को डॉ भीम राव अम्बेडकर के रूप में एक मसीहा मिल गया है।
उन्होंने ने दुखी मन से कहा कि बाबा साहेब दलित समाज के सात करोड़ बालकों को छोड़ कर चले गए हैं ।उनकी मृत्यु से ये बच्चे निराधार हो गये। अभी- अभी ये बाबा साहेब का हाथ पकड़ कर चलने लगे थे।अगर बाबा साहेब कुछ दिन और रहते तो ये बालक चलने फिरने की हिम्मत करने लगे थे। डॉ भीम राव अम्बेडकर के परिनिर्वाण से सन्त गाडगे बाबा बहुत ही दुःखी हुए। उन्होंने दवाइयां लेना छोड़ दी थी। अन्ततः 20 दिसम्बर 1956 को वे भी परिनिर्वाण को प्राप्त हो गए।
सन्त गाडगे बाबा की बुद्धवादी विचारधारा को अपना कर भावी पीढ़ी की पराधीनता और दुर्दशा को ध्यान में रखते हुए आज की देश व्यापी बौद्धिक क्रांति को सफल बनाने में सहयोग करें। इनके अतिरिक्त मा.गोविन्द प्रसाद जी, मान.नीलम गौतम जी, मा.विजयपाल जी (एडवोकेट) मा. डॉ अयोध्या प्रसाद जी, मा.दयाशंकर जी, मा.राम खेलावन प्रजापति जी, मा.सुशीला पाल जी आदि ने अपने विचार प्रस्तुत किये।
नमो बुध्दाय, जय भीम, जय भारत, जय गाडगे, जय संविधान, जय मूलनिवासी।।
जयन्ती के साथ- साथ कुछ अहम मुद्दों पर चर्चा- परिचर्चा भी हुई। मुख्यतः संगठन का स्थापना- दिवस 14 अप्रैल यानी डॉ भीम राव अम्बेडकर की जयन्ती मनाने पर विचार- विमर्श किया गया
प्रदेश एवं देश में नितप्रति घट रही सामाजिक घटनाओं पर गम्भीरता से विचार किया गया।
रिपोर्ट प्रस्तुतकर्ता
गोविन्द कुमार
सन्त गाडगे बाबा की जयन्ती के उपलक्ष्य में मानव विकास संस्थान, जिला-उन्नाव की कार्यकारिणी के सदस्यों की बैठक सम्पन्न हुई। जिसके मुख्य अतिथि संस्था प्रमुख डॉ जी पी मानव थे। सभा की अध्यक्षता मा. द्वारिका दास बैरागी जी ने किया।
संचालन मा.गोविन्द प्रसाद, महामंत्री मा.वि.सं.ने किया। धन्यवाद ज्ञापन मा.वि.सं.की जिला अध्यक्ष नीलम गौतम जी ने किया।
सर्वप्रथम मुख्य अतिथि महोदय एवं सभाध्यक्ष सहित पदाधिकारियों ने भगवान बुद्ध, सन्त गाडगे बाबा, बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर, महात्मा ज्योतिबा राव फूले,सावित्री फूले सहित कई महापुरुषों पर पुष्पार्पित किए गए।रोली गौतम ने बुद्ध वंदना करवाई।
मुख्य अतिथि महोदय ने सन्त गाडगे बाबा के जीवन चरित्र एवं उनकी शिक्षाओं पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने ने बताया कि सन्त गाडगे बाबा जन्म महाराष्ट्र के अकोला जिले के शेणपुर गांव में 23.02.1876ई. में धोबी जाति में हुआ था। उनके पिताजी का नाम झिंगरा जी एवं माता जी का नाम सखू बाई था। उनके बचपन का नाम "डेबू" था। स्त्री शूद्रोनाधीयताम् के अनुसार स्त्रियों और शूद्रों को पढ़ने- लिखने का अधिकार नहीं था। पढ़ाई तो दूर, साफ़-सुथरे कपड़े पहनना, बड़ा मकान बनाना तक मना था। गाडगे बाबा के बचपन का कार्य जानवर चराना एवं खेती बाड़ी में काम करना था।
गांव के पशु चराने वाले दोस्तों के साथ एक भजन मंडली बना ली थी। जो बुद्धवादी/ मानवतावादी विचारधारा के सन्तों- गुरूकबीर, गुरू रविदास, गुरू नानक देव, गुरू नामदेव एवं गुरू चोखा मेला आदि सन्तगुरुओं के भजन गाते थे। वे भजन मंडली के माध्यम से दलितों( बहुजनों) को शिक्षा के प्रति जागरूक करना, अन्धविश्वासों से दूर करना,जीव हत्या न करना,मद्यपान से दूर रहना,स्वच्छता पर ध्यान देना, मूर्ति पूजा न करना, छुआ-छूत ख़तम करना एवं चरित्र निर्माण पर विशेष जोर देते थे।
तथागत भगवान बुद्ध की विचारधारा को लेकर चलने वाले डेबूजी अर्थात् गाडगे बाबा ने कहा कि हमें स्वयं ही अपने इस दलित, पीड़ित , वंचित एवं पिछड़े समाज के लिए कुछ करना होगा।यह दर्द हमारा है, तो इसका इलाज भी हमें ही करना होगा। समाज सेवा हेतु घर का त्याग कर दिया। गांवोंमें सफाई करना, उससे सम्बन्धित उपदेश देना। साफ़ सफाई के बदले जो मेहनताना मिलता उससे उन्होंने ने कई विद्यालय, छात्रावास,धर्मशाला, बारातशाला, आश्रमस्कूल, महिला आश्रम, गौशाला, अस्पताल, तालाब व कुएँ बनवाए।
बाबा तो अनपढ़ थे लेकिन शिक्षा के महत्व को बखूबी जानते थे।सारी समस्याओं की जड़ ही अशिक्षा है, अज्ञान है। वे ऐसा मानते थे। अतः दलितों व पिछड़ों को एक बार ललकारते हुए कहा कि कहते हो पैसा नहीं है, तो खाने की थाली बेंच डालो,हाथ पर रोटी खाओ,पत्नी के लिए कम कीमत की साड़ी खरीदो,समधी की खातिरदारी मत करो।
गाडगे बाबा की धर्मपत्नी का नाम कुंताबाई था। बाबा की दो बेटियां जिनकी शादी हो चुकी थी। एक पुत्र गोविन्दा था। बाबा के गृह त्याग के बाद परिवार को नाना प्रकार के कष्ट झेलने पड़े। पागल कुत्ते के काटने से गोविन्दा की मृत्यु हो गई,किन्तु पुत्र की मृत्यु पर जरा भी गाडगे बाबा आहत नहीं हुए और न ही उन्होंने मानव कल्याण का मिशन छोड़ा।
गाडगे बाबा और डॉ अम्बेडकर-- गाडगे बाबा के वैसे तो लाखों अनुयायी थे। जिनमें मजदूर से लेकर मंत्री तक थे। लेकिन विश्व के महापुरुषों में से एक बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर भी उनके प्रशंसक थे। वे गाडगे बाबा से यदा- कदा मिलते भी रहते थे। डॉ अम्बेडकर गाडगे बाबा को बोधिसत्व सा सम्मान देते थे। वे गुरू ज्योतिबा राव फूले के बाद सबसे बड़ा त्यागी जन सेवक मानते थे। दोनों ही एक दूसरे के प्रशंसक थे। डॉ अम्बेडकर कभी- कभी गाडगे बाबा के भजन - उपदेश सुनने जाया करते थे। गाडगे बाबा अपने अनुयायियों से डॉ अम्बेडकर की जय के नारे भी। ने डॉ अम्बेडकर को शोषितों- पीड़ितों का उद्धारक कहा था। बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर ने भी कई अवसरों पर गाडगे बाबा को शाल ओढ़ा कर सम्मानित किया था।
जब बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर जी का आकस्मिक परिनिर्वाण 06 दिसम्बर 1956 को हुआ तो वे भीतर से टूट गये क्योंकि वे मानते थे कि भारत के अछूतों- पिछड़ों को डॉ भीम राव अम्बेडकर के रूप में एक मसीहा मिल गया है।
उन्होंने ने दुखी मन से कहा कि बाबा साहेब दलित समाज के सात करोड़ बालकों को छोड़ कर चले गए हैं ।उनकी मृत्यु से ये बच्चे निराधार हो गये। अभी- अभी ये बाबा साहेब का हाथ पकड़ कर चलने लगे थे।अगर बाबा साहेब कुछ दिन और रहते तो ये बालक चलने फिरने की हिम्मत करने लगे थे। डॉ भीम राव अम्बेडकर के परिनिर्वाण से सन्त गाडगे बाबा बहुत ही दुःखी हुए। उन्होंने दवाइयां लेना छोड़ दी थी। अन्ततः 20 दिसम्बर 1956 को वे भी परिनिर्वाण को प्राप्त हो गए।
सन्त गाडगे बाबा की बुद्धवादी विचारधारा को अपना कर भावी पीढ़ी की पराधीनता और दुर्दशा को ध्यान में रखते हुए आज की देश व्यापी बौद्धिक क्रांति को सफल बनाने में सहयोग करें। इनके अतिरिक्त मा.गोविन्द प्रसाद जी, मान.नीलम गौतम जी, मा.विजयपाल जी (एडवोकेट) मा. डॉ अयोध्या प्रसाद जी, मा.दयाशंकर जी, मा.राम खेलावन प्रजापति जी, मा.सुशीला पाल जी आदि ने अपने विचार प्रस्तुत किये।
नमो बुध्दाय, जय भीम, जय भारत, जय गाडगे, जय संविधान, जय मूलनिवासी।।
जयन्ती के साथ- साथ कुछ अहम मुद्दों पर चर्चा- परिचर्चा भी हुई। मुख्यतः संगठन का स्थापना- दिवस 14 अप्रैल यानी डॉ भीम राव अम्बेडकर की जयन्ती मनाने पर विचार- विमर्श किया गया
प्रदेश एवं देश में नितप्रति घट रही सामाजिक घटनाओं पर गम्भीरता से विचार किया गया।
रिपोर्ट प्रस्तुतकर्ता
गोविन्द कुमार