परिवार की महिलाओं के गले में सोने का हार हो ऐसा जरूरी नहीं है लेकिन अपने बच्चों को अच्छी एवं पूरी शिक्षा दिलाना बहुत जरूरी - बीएल बौद्ध

आज से 50 वर्ष पहले तक SC, ST समाज के तकरीबन सभी परिवारों का रहन सहन,खान पान, वेश भूषा एवं आभूषण एक समान ही हुआ करते थे लेकिन समय के अनुसार धीरे धीरे एक दूसरे परिवार में अंतर आने लगा और उस अंतर का मुख्य कारण शिक्षा का रहा, जिस भी परिवार ने अपने बच्चों को स्कूलों में भेजना शुरू कर दिया एवं वह बच्चा 10 कक्षा तक भी पढ़ लिया तो बाबा साहेब अंबेडकर द्वारा दिए गए आरक्षण की बदौलत उसे कहीं न कहीं नोकरी मिल गयी।
या फिर जिस भी परिवार ने अपनी आमदनी से ज्यादा खर्चा नहीं किया उसने भी अपनी स्थिति में जरूर सुधार किया।

बहुत से परिवार ऐसे भी देखने को मिलते हैं कि उन्होंने अपने पावों पर खुद ने ही कुल्हाड़ी मार ली, वे या तो शराबी बन बैठे या फिर कर्जदार बन बैठे।
दिहाड़ी मजदूर भी कर्ज लेकर अपने बेटों की शादी में बहू के लिए सोने का हार एवं अमीरों की भांति बेशुमार खर्चा कर बैठे।

इन्ही अनेकों कारणों के चलते समाज में  रहन सहन, खान पान एवं जीवन जीने के तरीकों में बहुत ज्यादा अंतर नजर आने लगा है।
देखने में यह आता है कि घर की महिलाओं के गले में तो सोने का हार दिखाई देता है लेकिन बच्चों की स्कूल फीस भरने में भी असमर्थ हैं।

इस पोस्ट का सारांश यह है कि शादियों में कर्ज लेकर अनाप शनाप बेशुमार खर्चा न करें बल्कि अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्चा करें।

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