बारूद की रेत पर राजधानी दिल्ली

जी हां !  हमारे देश की राजधानी दिल्ली दंगो की चपेट में हैं, जहां से पूरा देश चलता है आज वही शहर बन्द पड़ा है, खुद को सर्वशक्तिमान समझने वाले लोग अपनी नाकामी को छुपाने के लिए मानो किसी बिल में घुस गए हैं, यह नाकामी सरकार, पुलिस, सुरक्षा एजेंसियों सबकी नाकामी है, धब्बा है सत्ता में बैठे दलालो के माथे पर,            यह दंगे सिर्फ दंगे नहीं है बल्कि इस बात का प्रमाण है कि हमारे देश में भाईचारा, सौहार्द, प्रेम यह सब कहने की बातें है, असल में तो हम उन कुत्तों से गए गुजरे हैं जो एक रोटी के टुकड़े के लिए झगड़ लिया करते हैं ।

अरे 132 करोड़ की आबादी वाले देश में कितने राजनेता हैं ???        सब कुछ राजनीति में हो गया, कोई भी आएगा तुमको बरगलाएगा और तुम वही करने लगोगे जो वो चाहता है, क्या हुआ है तुम सबके दिमाग को, खुद से सोचना समझना बन्द कर दिया है क्या ?    या फिर आप सब सिर्फ देखने के लिए जिंदा हो, असल में आप सब मरी हुई लाशों की तरह हो, जो दूसरों के कंधों पर चलती है, आप सबने क्या अपना रिमोट चंद हरामखोरों के हाथों में दे रखा है ।

तुम इंसानियत को ही भूल बैठे, मरने - मारने पर उतावले घूम रहे हो, जिन कम्पनियों, फैक्ट्रियों को आज जला रहे हो, उनको बनाने मे कितना समय और धन लगा है, कितने लोगों के परिवार पलते हैं उनसे, कभी यह सब भी सोच लो, एक बात याद रखो इन दंगों से किसी को कुछ नही मिलने वाला और जिनके कहने से तुम बेवजह लोगों को मार रहे हो, चीजों को तोड़ - फोड़ रहे हो, सम्पति को आग लगा रहे हो यदि ऐसा करते हुए पकड़े गए या मर गए तो, तुमको भड़काने वाले लोग तुम्हारी लाश को कंधा तक लगाने न आएँगे ।

            शाक्य अरविन्द मौर्य

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