दिन के समय हाथों में बाबा साहेब अंबेडकर की तस्वीर एवं रात होते ही दारू की बोतल, साथ में दावा करते हैं कि मैं अम्बेडकरवादी हूँ,

जैसा कि हम सब जानते हैं कि बाबा साहेब अंबेडकर ने कभी भी शराब का सेवन नहीं किया था,कई युवा अपने दोस्तों की देखा देखी या उनके साथ रहने से अथवा उनके कहने से शराब पीना शुरू कर देते हैं लेकिन बाबा साहेब अंबेडकर ने तो उच्च अध्ययन विदेशों में किया था वहां तो उनके सभी सहपाठी शराब का सेवन करते थे लेकिन बाबा साहेब ने कभी नहीं किया।
बाबा साहेब की तबीयत बिगड़ने पर किसी डॉक्टर ने एक बार उन्हें सलाह दी थी कि दवा के रूप में शाम के समय दो चमच ब्रांडी का इस्तेमाल किया करो, बाबा साहेब अंबेडकर ने जवाब दिया कि मैं अपना स्वास्थ्य सुधारने के लालच में अपने समाज को बर्बाद नहीं कर सकता हूँ क्योंकि मेरे ऐसा करने से मेरे समाज के लोग बड़े खुश होकर शराब पीएंगे और कहेंगे कि बाबा साहेब भी  थोड़ी थोड़ी पीया करते थे, इसलिए मैं कल की बजाय आज ही मरना बेहतर समझूंगा लेकिन शराब को छुऊँगा तक नहीं।

लेकिन बड़े अफसोस की बात है कि आजकल बहुत से युवा दिन में बाबा साहेब अंबेडकर की तस्वीर उठाकर नारे लगाते हुए देखे जाते हैं कि बाबा साहेब का मिशन अधूरा हम सब मिलकर करेंगे पूरा।
परन्तु रात होते ही बात कुछ और ही देखने को मिलती है दिन के वक्त हाथों में बाबा साहेब की तस्वीर थी उन्हीं हाथों में रात में दारू की बोतल।

हमारे ऐसे होनहार युवाओं से हम जानना चाहते हैं कि बाबा साहेब अंबेडकर के मिशन को आप कोनसी दिशा में लेजाना चाहते हो ?

हमारे बहुजन समाज में जन्मे संत शिरोमणि रैदास जी महाराज ने भी कहा था कि
नशा विनाश का मूल है,
जान लेउ रे मीत
दास बने रैदास को
कोउ न करेगा प्रीत।

तथागत बुद्ध ने भी नशे को मूर्खों का स्वर्ग कहा था।

आज सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम लोग समाज को तो सुधारना चाहते हैं लेकिन स्वयं का सुधार नहीं करते,जबकि सच्चे अम्बेडकरवादी वे लोग हैं जो सबसे पहले स्वयं को सुधारने का प्रयास करते हैं।

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