राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तम्भ (चौमुखी सिंह) की नकल है ब्राम्हा की मूर्ति - शाक्य बीरेंद्र मौर्य

भारत में सांस्कृतिक घोटालो की परम्परा रही है किसी ने तलवार के जोर पर दूसरे की संस्कृति पर अपना लेबल लगाया। किसी ने तलवार की नोक पर लोगों का धर्म परिवर्तन किया। और कोई आज भी सत्ता के नशे में चूर होकर नगर, शहर, स्टेशन, एअरपोर्ट,नदियों के नाम बदलने में मशगूल है।

आज हम बात करेगें। लोक कल्याणकारी, आर्थिक महाशक्ति मौर्यकालीन भारत की। जिसकी कला, संस्कृति, पर किस तरह विषमतावादी लोगो ने अपना लेबल लगाकर उसकी मार्केटिंग की है। इसको जानना, समझना बहुत जरूरी है।

अपनी प्रजा को अपनी सन्तान समझने वाले, वसुधैव कुटुम्बकम के जनक, पूरी वसुधा को अपना परिवार समझने वाले कोई और नहीं सम्राट अशोक महान ही हैं। पूरी दुनिया मे अपनी प्रजा के प्रति इतना अपनापन दूसरे किसी शासक में दिखाई नही पडता। वो वसुधा को परिवार समझते थे प्रजा को सन्तान समझते थे। इसलिए प्रजा भी उनको अपना पितामह समझती थी। सांस्कृतिक चोरो ने अपने शास्त्रो में एक ऎसे पात्र को जन्म दिया। जिसको दुनिया का पालनहार कहा। पितामह कहा। श्रष्टि का रचयिता कहा। अरे भाई तुम ये साफ - साफ क्यॊं नही कहते कि सारनाथ मे रखे राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तम्भ की नकल कर तुमने ब्रम्हा का निर्माण किया है ब्रम्हा की चौमुखी मूर्ति भी अशोक स्तम्भ (चौमुखी सिंहो) की नकल है।

धर्म की चासनी को अपने कलम की स्याही बनाकर इतिहास लिखने वाले इतिहासकारो तुमने सच्चाई से मुंह मोडकर वास्तविक इतिहास को नजरंदाज किया है और अवास्तविक काल्पनिक पात्रो से अपना इतिहास भर रखा है। जिसे आपने श्रष्टि का रचयिता कहा है उसे भारत के बाहर विदेशों मे कोई पहचानता तक नहीं है। और सम्राट अशोक महान व उनके लोक कल्याणकारी साम्राज्य का प्रतीक भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तम्भ को भारत ही नही आज दुनिया के दर्जनो देश सम्मान दे रहे हैं।आस्ट्रेलिया, जापान,कोरिया, थाईलैण्ड, वियतनाम, फ्रान्स, सिंगापुर, मलेशिया, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मिश्र इत्यादि देशों मे अशोक स्तम्भ को स्थापति कर वहां के नागरिक आज भी सम्राट अशोक महान को अपना आदर्श, प्रेरणास्त्रोत मानते हैं।

सम्राट अशोक कालीन भारत ऎतिहासिक है भौगोलिक है सम्राट अशोक कालीन आर्थिक महाशक्ति भारत के पुरातात्विक साक्ष्यों पर यूनेस्को व पुरातत्व विभाग की मुहर लगी है सम्राट अशोक वास्तविक हैं इसीलिए संविधान निर्माताओं ने अशोक स्तम्भ को राष्ट्रीय प्रतीक के रुप मे चुना। जबकि तुम्हारे चार मुंह वाले बाबा, तथाकथित श्रष्टि के रचयिता का कोई इतिहास, भूगोल नही है सिर्फ आपके शास्त्रो तक सीमित हैं भारत से बाहर उन्हे कोई नहीं जानता। क्योकिं वह काल्पनिक है  अवास्तविक है।

इसलिए नागपुरिया दरबार के इतिहासकारों अब अपने साहित्य की समीक्षा करो और अवास्तविक चीजों को खुद हटा लो। वर्ना 21 वीं शदी के युवा आपके सडे गले साहित्य का ऎसे ही पोस्टमार्टम करते रहेगें।

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