मीडिया
एक ऐसा नाम जिससे सारे करप्ट (किसी भी संस्था के लोग हों, किसी भी विभाग के लोग हों, किसी भी पद पर आसीन व्यक्ति क्यों न हो) लोगों के मन में दहशत और डर हो जाता है और वह अपने कर्तव्यो का निर्वहन ईमानदारी पूर्वक करने लगता है ।
वहीं दूसरी ओर एक मजबूर वर्ग है जो कि पूरी तरह समस्याओं से घिरा हुआ होता है, किसी के पास रोजगार नही है, तो किसीने खेती करने के लिए लोन लिया था और फसल अच्छी नहीं हुई तो कर्ज चुकाने की समस्या से आत्महत्या करने को तैयार है, तो किसी बीमार व्यक्ति को उपयुक्त इलाज नही मिल रहा, तो कहीं बच्चों उचित शिक्षा नही मिल रही, किसी को श्रम के बदले उचित वेतन नही मिल रहा इस तरह की 90% पीड़ित जनमानस की आंखों में जिसे देखकर उम्मीद की चमक आ जाए, वो होती है मीडिया, जो छुपी हुई चीजों को बाहर ले आए, जिसमें सत्य को सत्य और झूठ को झूठ कहने की निष्पक्षता हो, जो आवाम की आवाज को सत्ता तक पहुंचाए, जमीनी समस्याओं के लिए किसी भी कर्मचारी, अफसर, नेता, मंत्री, सरकार तक से बेबाकी से निडर होकर सवाल पूंछ सके, सरकार की हर गलत नीति का विरोध करने की जिसमें हिम्मत हो, जिसमें एक आम इंसान और एक राजनेता दोनों की बातों को बराबरी से उठाने की हिम्मत हो, जो बड़े बिज़नेसमैन के काले कारनामों को भी बेबाकी से दिखा सके वो होती है और गरीब मजबूर इंसान की जरूरतों को भी बता सके वो होती है मीडिया ।
करना चाहिए ये सब
तो कर रहे हैं ये सब
👉जिसको दिखाना चाहिए कि भारत की GDP गिर रही है इसको कैसे सुधार किया जाए, वो दिखाता है कि पाकिस्तान की GDP कितनी गिर रही है और वो अपने निचले पायदान पर पहुंच गया ।
👉जिनका डिबेट होना चाहिए बढ़ती बेरोजगारी को कैसे रोका जाए, सरकार को कोई ऐसी नीति चाहिए जिससे युवाओं के पास रोजगार हो, उनका डिबेट होता है NRC कैसे लागू किया जाए ।
👉जिनको दिखाना चाहिए देश की आर्थिक मंदी, कि आखिर देश मे ऐसा क्या हो रहा है जिससे आर्थिक मंदी बढ़ रही है, वो दिखाते हैं कि राममूर्ति का बजट 446 करोड़ ।
👉जिनको बताना चाहिए की भारत में उच्च शिक्षा को कैसे बढ़ाया जाए वो दिखाते हैं कि JNU में देश विरोधी नारे लग रहे हैं, JNU को कैसे बंद किया जाए ।
👉जिनको बहस करानी चाहिए बढ़ती किसान आत्महत्या को कैसे रोका जाए, कैसे किसान के जीवन को भी खुशहाल बनाया जाए, वो बहस करवाते हैं कि गाय माता है या जानवर ।
👉जिनको चर्चा करनी चाहिए बढ़ते बलात्कार पर अंकुश कैसे लगाया जाए, वो चर्चा करवाते हैं कि पादुकोण को JNU में पीड़ितों से मिलने जाना चाहिए था या नहीं ।
अरे अभी वक्त है सुधर जाओ और अपने काम को ईमानदारी से करो क्योंकि सरकार का क्या है आज इनकी है कल दूसरे की जाएगी, लेकिन आपको तो जनता के बीच रहना है और कही ऐसा न हो जाए कि अपने सर आंखों पर बैठाने वाली जनता आपको अपने दिमाग में बैठा ले ।
शाक्य अरविंद मौर्य