योगी बताएं कि यूपी में किस आधार पर एनआरसी लागू करने के लिए करवाया जा रहा है सर्वे- रिहाई मंच

योगी बताएं कि यूपी में किस आधार पर एनआरसी लागू करने के लिए करवाया जा रहा है सर्वे- रिहाई मंच

आरएसएस की बैठक मंत्रिमंडल के समकक्ष नहीं हो सकती जहां देश के नीतिगत-रणनीतिक फैसले लें गृहमंत्री अमित शाह

योगी द्वारा एनआरसी पर सर्वे और आरएसएस द्वारा पूरे देश में लागू करवाने वाले बयान पर रिहाई मंच ने कहा कि योगी-मोदी-शाह आरएसएस एण्ड कंपनी नहीं तय कर सकती कि देश का नागरिक कौन होगा

दुनिया में बदनाम इजरायल से व्हाट्सएप की जासूसी करवा रही सरकार

लखनऊ, 3 नवम्बर।
राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों की बैठक में अयोध्या विवाद, अनुच्छेद 370 और देश भर में एनआरसी लागू किए जाने जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चर्चा और उसे लागू किए जाने के बयान पर रिहाई मंच ने आपत्ति जताई है।

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि भले ही उस बैठक में अमित शाह, भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नुड्डा और कुछ अन्य नेता शामिल रहे हों लेकिन ऐसी कोई भी बैठक मंत्रिमंडल के समकक्ष नहीं हो सकती। नीतिगत और रणनीतिक फैसले लेना मंत्रिमंडल का क्षेत्राधिकार है फिर संविधान और गोपनीयता की शपथ लेकर मंत्रीमंडल संभालने वाला व्यक्ति उस बैठक में कैसे मौजूद था। यह मंत्रिमंडल की सम्प्रभुता पर डाका है। उन्होंने कहा कि एक तरफ गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में इस बैठक में कहा जाता है कि 2021 की जनगणना के बाद देश में चरणबद्ध तरीके से एनआरसी लागू की जाएगी तो दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कहते हैं कि प्रदेश में एनआरसी को लेकर सर्वे किया जा रहा है।

मुहम्मद शुऐब ने कहा कि सरकारों का काम जनता के बीच उपजे भ्रम को खत्म करना होता है लेकिन यहां तो प्रदेश सरकार का मुखिया ही भ्रम उत्पन्न कर रहा है। योगी आदित्यनाथ को बताना चाहिए कि वह कौन सा सर्वे है जो एनआरसी लागू करने के लिए प्रदेश में करवाया जा रहा है जिसके बारे में जनता को कोई जानकारी नहीं दी गई। उन्हें यह भी बताना चाहिए कि इस सर्वे से कौन सी संस्था या लोग जुड़े हैं और उनकी विश्वसनीयता क्या है।

रामपुर सीआरपीएफ कैम्प पर कथित आतंकवादी हमले के मामले में रामपुर सेशन कोर्ट ने ग्यारह साल दस महीना बाद सुनाए गए अपने फैसले में कुल आठ अभियुक्तों में से दो को बरी करते हुए छह को दोषी माना है। रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि यह मामला शुरू से ही विवादों में रहा था। इस तरह की मीडिया रिपोर्ट्स भी आई थीं कि 31 दिसम्बर और 1 जनवरी की रात नए साल का जश्न मनाते हुए नशे में सीआरपीएफ जवानों के दो गुटों ने एक दूसरे पर फायरिंग कर दी। घटना के बाद रिहाई मंच नेताओं ने क्षेत्र का दौरा किया और कई लोगों से मुलाकात की थी। उसमें भी यह बात खुलकर सामने आई थी कि फायरिंग की घटना तो हुई लेकिन वहां से किसी को भागते हुए नहीं देखा गया था जैसा कि पुलिस का दावा था।

राजीव यादव ने कहा कि जिस तरह से व्हाट्एप के (संचार) निदेशक मार्क जुकरबर्ग ने स्वीकार किया है कि इजरायल द्वारा निर्मित पेगासस स्पाईवेयर का प्रयोग करते हुए भारत के पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की निगरानी की गई, वह शर्मनाक है। उन्होंने कहा कि व्हाट्एप निदेशक ने यह भी बताया कि उसने निगरानी के शिकार लोगों से सम्पर्क कर इस बावत उन्हें आगाह भी किया था। जुकरबर्ग ने सेन फ्रांसिसकों के अमरीकी फेडरल कोर्ट को इस जासूसी के बारे में विस्तार से बताया। यह भी कि भारत को इस जासूसी/निगरानी की जानकारी थी लेकिन कितने भारतीयों की निगरानी/जासूसी की गई उसकी निश्चित संख्या बताने से उन्होंने इनकार किया। राजीव यादव ने कहा कि एलगार परिषद अभियुक्त, भीमा कोरेगांव मामले के वकील, दलित एक्टिविस्टों आदि के खिलाफ सरकारी एजेंसियां काफी सक्रिय रही हैं जिससे उक्त निगरानी प्रकरण में वैचारिक आधार पर टार्गेट करने की मंशा जान पड़ती है। भारत सरकार को बताना चाहिए कि इस इजरायली स्पाईवेयर को किस भारतीय कंपनी या एजेंसी ने खरीदा और कितने लोगों की निजता भंग की गई और ऐसा क्यों किया गया। इसी तरह की निगरानी⁄जासूसी के लिए इससे पहले फेसबुक और व्हाट्सएप ने मांफी मांगी है लेकिन क्या भारत सरकार से ऐसी अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए जिसके नागरिकों की निजता में झांकने की कोशिश हुई।

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