अज्ञानता की अन्धीआस्था में डूबे अन्धभक्तों में कब बदलाव होगा?

अब आप लंगोट से  जौकी पर आ गये...पायजामे से पतलून पर आ गये...नाड़े से बेल्ट पर आ गये...खड़ाऊँ से बूट पर आ गये...कलम से कीबोर्ड पर आ गये।  पगडंडियों से एक्सप्रेस वे पर आ गये...चूल्हे से इंडक्शन कुकर पर आ गये...जंगलो से अपार्टमेंट तक आ गये। हल से ट्रैक्टर पर आ गये...पैदल से लक्ज़री जहाज़ों पर आ गये...दीये-मशाल से एलईडी पर आ गये...आप लैंडलाइन से ओरियो एंड्रॉयड तक आ गये...तीर-कमान और गदा से ऑटोमैटिक बंदूकों और मिसाइलों पर आ गये। दुनियां चाँद पे चली गई...मंगल की छाती पर नासा ने रोबोट उतार दिया....शनि मंगल सूर्यग्रहण- चन्द्रग्रहण के हर रहस्य से पर्दा उठ गया !

आप पाँच हज़ार ईसापूर्व और पाँचवी-छठवीं शताब्दी से इक्कीसवी शताब्दी में आ गये...आप लगातार अपडेट होते रहे हैं !!! मगर फिर भी तुम ग्रह नक्षत्रों को...शनि मंगल को जन्मकुंडली में देख -देख कर काँप रहे हो। अपना भविष्य सुधारने के लिए ढोंगी बाबाओं  का रास्ता नाप रहे हो। क्या इसी दिन के लिए तुमने बीएससी एमएससी पीएचडी की थी ?

 तुम पढ़ेलिखे जाहिलों की फौज में शामिल हो जाना !
क्या इसी दिन के लिए तुम डॉक्टर इंजीनियर वकील - मजिस्ट्रेट या प्रोफेसर बने थे ? कि बंगले पर काली हांडी टांगना ! निम्बू मिर्ची टांगना ! नजर न लगने के  लिएे  एक पैर में काला धागा बांधना ?और अपने उज्ज्वल भविष्य की भीख किसी बाबा बाबी के दर पर नाक रगड़ के मांगना ?

देश आजाद हो गया ! दुनिया आजाद हो गई !
आखिर कब मिलेगी तुम्हें आजादी ? अज्ञानता की इस अंधीआस्था की  मानसिक गुलामी से ? दुनिया रोज नए - नए आविष्कार कर रही है ! तुम हजारों साल पुरानी भाषा संस्कृति रीति रिवाजों की वैज्ञानिक व्याख्या करने में लगे हो ! क्या भारत पुनः विश्व गुरु तुम्हारे जैसे मनोरोगियों की वजह से कभी बन पाएगा ?

बंद कमरे में तुम्हारी चोटी कट जाती ! अँधेरे में अकेले में तुम्हें भूत- प्रेत
  सताते हैं ! तुम्हें ही सारी दुनिया की
नजर लगती है ! डायन तो तुम्हारे हर घर में मौजूद है !!
तुम्हारे तंत्र मंत्र यंत्र काम क्यों नहीं करते हैं ? एक पैर में काले धागे वाला रक्षा सूत्र ,तुम्हारी चोटी क्यों नहीं बचाती है ? आख़िर कब तक तुम
 मानसिक गुलाम रहोगे ?

तुम्हारी समस्याएं लौकिक है। मगर तुम्हें हर समस्या का हल परलोक में नजर आता है ! संसार तुम्हारे लिए स्वप्नवत् है माया है ! भगवान की लीला है ! नाटक है ! भ्रम है ! आखिर तुम्हें इस सपने से कौन जगाएगा ? कब तक शब्दों के साथ बलात्कार करोगे ? कब तक धोखे में रहोगे ? कब तक हर सिद्धान्त हर आविष्कार को शास्त्रों ऋषि मुनियों के माथे मढ़ोगे ?

तुम लोगों  को जो जगाए वही धर्मद्रोही,देशद्रोही,जातिवादी या नास्तिक है ? चारवाक, बुद्ध, महावीर, कपिल, कणाद गौतम, नागसेन, अश्वघोष, कबीर, नानक, रविदास, ओशो, फुले, शाहू, पेरियार,नारायणा, डॉ.अम्बेडकर , भगतसिंह, कोवूर, राहुल, दयानन्द, विवेकानंद, सबने विवेक लगाया !
मगर फिर भी तुम्हारा विवेक नहीं जागा !

तुम्हारा धर्म कब अपडेट होगा ?
तुम्हारी आस्था कब अपडेट होगी ?
तुम्हारा ईश्वर कब अपडेट होगा ?
तुम्हारी सोच कब अपडेट होगी ?
तुम्हारे धर्म की किताबें कब अपडेट होंगी ?

क्योंकि तुम विश्वगुरु के अहंकार की दारू पीकर गरीबी ,अनपढ़, लिंगभेद, जातिभेद, भाषाभेद, क्षेत्रभेद एवं  साम्प्रदायिकता की गंदी  नाली में पड़े हो ! आखिर तुम्हें कब मिलेगी आजादी ? इस उम्दा मानसिक गुलामी से ?
सोच के बता देना, इंतजार करूंगा!!जय भीम,जय भारत,जय संविधान,जय विज्ञान।
   डॉ जी पी मानव
        अध्यक्ष
  मानव विकास संस्थान,उत्तर प्रदेश।।

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