कछवाहा(कुशवाहा) राजपूतों में विभाजन

भारत के इतिहास में अपने समाज(शाक्य,कुशवाहा,मौर्य)के राजाओं ने सबसे अधिक समय तक तथा सबसे उत्तम शासन किया है।चाहे भगवान बुद्ध के समय के राजा शुद्धोधन,राजा पसेनजित, राजा बिम्बसार आदि शासक रहे हों या उनके बाद के सम्राट चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य,सम्राट बिंदुसार,सम्राट अशोक महान से लेकर सम्राट वृहद्रथ मौर्य आदि सभी महान राजा हुए हैं।इसी प्रकार अपने समाज के कछवाहा(कुशवाहा) राजाओं ने भी भारत के बिभिन्न राज्यों(बिहार,उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश,उड़ीसा, राजस्थान सहित कई राज्यों)में शासन किया है।राजस्थान में जयपुर के पास आमेर कस्बा की स्थापना मीणा राजाओं ने की थी जिस पर मीणा राजाओं का शासन था।मीणा राजाओं को पराजित कर कछवाहा राजाओं ने आमेर को अपनी राजधानी बनाया तथा आमेर की पहाड़ी पर किला बनबाया जो आज जयपुर का प्रमुख पर्यटक स्थल है।जिस समय आमेर के राजा भारमल थे उस समय भारत में मुगलों का राज्य स्थापित हो गया था।तत्समय मुगलों का शक्तिशाली राजा सम्राट अकबर था जो सम्पूर्ण भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहता था।इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने आमेर के कछवाहा राजा भारमल के पास प्रस्ताव भिजवाया कि या तो मेरी अधीनता स्वीकार कर लो या फिर हमसे युद्ध करो।राजा भारमल ने अकबर की सेना की ताकत का अंदाजा लगाकर अकबर से युद्ध न करके अकबर से संधि करने का कूटनीतिक निर्णय लिया, क्योकि अकबर की सेना के मुकाबले राजा भारमल की सेना बहुत कमजोर थी। अकबर से युद्ध करने पर राजा भारमल का हारना तो निश्चित था ही, युद्ध में भारमल की सेना के मारे जाने के साथ साथ आमेर की निर्दोष जनता का मारा जाना भी निश्चित था।इस नरसंहार के दृष्टिगत भारमल ने अकबर से युद्ध न करके उसकी अधीनता स्वीकार कर ली और समझौते में अपनी बेटी जोधा की शादी अकबर से कर दी।इसके बदले अकबर ने अपने जीवन में कभी आमेर पर आक्रमण नहीं किया।भारमल के इस निर्णय से देश के कछवाहा राजाओं में विभाजन हो गया।कुछ कछवाहा राजाओं को भारमल का यह फैसला अच्छा नहीं लगा और अकबर के खिलाफ लड़ना जारी रखा,जिसके कारण अकबर ने कछवाहा राजपूतों का नरसंहार करना शुरू कर दिया।अकबर के कहर से बचने के लिए बहुत से कछवाहा राजाओं ने राजपाट छोड़ दिया यहाँ तक कि अपनी पहचान छिपाने के लिए छत्रिय लिखना भी छोड़ दिया और शादी संबंध भी क्षत्रिय कछवाहों के यहाँ करने बन्द कर दिये तथा कृषि कार्य करने लगे।सैकड़ों वर्षों से राज करते आये थे इसलिए उनके पास जमीन तो थी ही।इस प्रकार क्षत्रिय कछवाहा समाज जोधा की अकबर से शादी होने के कारण दो भागों में बंट गया। जो कछवाहा कहीं कहीं राजसत्ता में बने रहे वो अपने को राजपूत और जो कछवाहा अपनी पहचान छुपाकर कृषि के कार्य मे लग गए वो अपने को कोइरी,काछी लिखने लगे।इस प्रकार हम क्षत्रिय कुशवाहों से कोइरी और काछी हो गए।यह है हम लोगों का पुराना इतिहास जो बहुत कम लोगों को पता है।कालांतर में राजा भारमल,उनका पुत्र राजा भगवानदास और राजा मानसिंह अकबर की अधीनता में आमेर पर शासन करते रहे और अकबर की तरफ से युद्ध मे भाग लेते रहे।राजा भगवान दास के पुत्र राजा जयसिंह द्वितीय ने अपने शासनकाल में जयपुर शहर बसाया।हमारा अतीत बहुत गौरवशाली रहा है परंतु आज सामाजिक एकता की कमी और शिक्षा के अभाव के कारण आज हमारे समाज की स्थिति बहुत सराहनीय नहीं है।हमारे अंदर राजवंशीय खून  है हम आज भी अच्छा से अच्छा कर सकते हैं।अपना पुराना गौरव वापस लाने के लिए आज हम सबको अपने बिखरे समाज  (कुशवाहा,मौर्य,शाक्य, सैनी,माली,कोइरी,मुराव,महतो आदि)को एकजुट करने और अपने बच्चों की उचित शिक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

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