खस्ताहाल सड़कों पर बेलगाम दौड़ते अनफिट वाहन नित लोग जान गंवा रहे हैं और सरकारी तंत्र की नींद हर बार हादसे के हर हादसे के बाद जागता है, शोक जताता है। कुछ आदेश जारी होते हैं और फिर चैन की नींद सो जाता है। हादसे के लगभग पांच घंटे बाद राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने शोक जताया और राज्य में कहीं भी सड़क पर दौड़ने वाले हर कंडम और अनफिट वाहनों को हटाने का निर्देश दे दिया है लेकिन काश यह निर्णय पहले ले लिए जाते।
गांव केशवान से जिला मुख्यालय किश्तवाड़ की तरफ एक मिनी बस आती है। जाहिर है इसमें क्षमता से लगभग दोगुने यात्री सवार थे। ओवरलोड होने के कारण बस चालक के नियंत्रण से बाहर हो गई और सड़क से करीब एक हजार मीटर गहरी खाई में जा गिरी। 35 लोग बेमौत मारे गए और 16 अन्य जख्मी हो गए। यह पहला हादसा नहीं है, जब एक साथ इतने लोग मौत के आगोश में समा गए हों। पिछले सप्ताह पुंछ में 12 छात्रों को जान गंवानी पड़ी थी।
पहली जनवरी 2010 से लेकर 31 दिसंबर 2018 तक राज्य में 9050 लोगों ने सड़क हादसों में जान गंवा दी। यूं कहें कि प्रतिवर्ष 900 से एक हजार लोग हादसों में जान गंवाते हैं। इससे कई गुना अपंग हो जाते हैं। तीन पहाड़ी जिलों किश्तवाड़, रामबन और डोडा क्षेत्र में वर्ष 2010 से लेकर पहली जुलाई 2019 तक 3800 सड़क हादसे हुए हैं और इनमें 1200 लोगों की मौत हुई है, जबकि 6300 जख्मी हुए।
हर दिन 15 हादसे, सात घंटे में एक की मौत
प्रति दस हजार वाहनों के आधार पर सड़क हादसों की गणना की जाए तो जम्मू कश्मीर देश में तीसरे स्थान पर है। बीते आठ वर्ष का रिकॉर्ड बताता है कि राज्य में प्रतिदिन औसत 15 सड़क हादसे होते हैं और राज्य में हर सात घंटे बाद एक व्यक्ति की सड़क हादसे में मौत होती है। हर एक घंटे में एक नागरिक जख्मी होता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के वर्ष 2017 में हुए एक सर्वे के मुताबिक (वर्ष 1996 से वर्ष 2016 तक के सड़क हादसों का अध्ययन) सड़क हादसों में लोगों की मौत और उनके अपाहिज होने के मामले में जम्मू कश्मीर सबसे आगे है।
पहाड़ी ही नहीं मैदानी इलाकों में भी सुरक्षित नहीं सड़कें
जम्मू कश्मीर में पहाड़ी इलाकों में काफी हादसे होते हैं लेकिन मैदानों में सड़कें सुरक्षित नहीं हैं। वर्ष 2018 में पूरी रियासत में 5,528 सड़क हादसों में सबसे ज्यादा 1130 जम्मू में हुए। उसके बाद कठुआ, ऊधमपुर और सांबा जैसे मैदानी इलाकों में। पहाड़ी जिलों रामबन और राजौरी में क्रमश: 252 और 394 सड़क हादसे हुए। कश्मीर घाटी में कुपवाड़ा और बांडीपोर जैसे पहाड़ी जिलों की अपेक्षा श्रीनगर, बारामुला, अनंतनाग, पुलवामा और बडग़ाम जैसे मैदानी जिलों में सबसे ज्यादा सड़क हादसे हुए हैं। घाटी में श्रीनगर में सबसे ज्यादा सड़क हादसे होते हैं।
अनफिट वाहन, ओवरलोडिंग और स्पीड बरपा रहे हैं कहर
जम्मू कश्मीर में हादसों के कारणों पर नजर दौड़ाई जाए तो साबित होता है कि अधिकतर वाहनों को टाला जा सकता था। अनफिट वाहन खस्ताहाल सड़कों पर बेलगाम दौड़ते हैं और मुख्य तौर पर हादसों का कारण बन जाते हैं। इसके अलावा वाहनों में ओवरलोडिंग भी इन सड़कों पर स्थिति गड़बड़ा देती है।
राज्य के केवल ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों में ही नहीं बड़े शहरों में भी कंडम वाहनों पर कोई अंकुश नहीं दिखता। यात्रियों की लाइफ लाइन मिनी बसों में ज्यादातर कंडम स्थिति में ही हैं। बड़ी संख्या में नौसिखिए वाहन चालक यात्री वाहन चला रहे हैं। एक दशक के दौरान पहाड़ी इलाकों में हुए यात्री वाहनों के हादसों की जांच में पता चला है कि अधिकांश वाहन पुराने थे, जो खस्ताहाल सड़क पर ओवरलोड थे। पहाड़ी इलाकों में यात्री वाहनों की कमी है। उनका निर्धारित रूट पर चलने का समय भी तय नहीं है। इसलिए इनमें क्षमता से अधिक यात्री सवार रहते हैं।
इस तथ्य का गत वर्ष मचैल यात्रा के दौरान हुए सड़क हादसों की जांच करने वाली समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया था। इसके अलावा वाहनों का तेज गति में होना भी हादसों का एक बड़ा कारण बना है। इसके साथ ही राज्य में विशेषकर हाईवे और पहाड़ी इलाकों में सड़कों के किनारे कई जगह क्रैश बैरियर नहीं हैं। पैराफिट भी नहीं हैं। सड़कों की कटाई भी कई जगह नियमों के मुताबिक नहीं है। हाई-वे पर जारी निर्माण कार्य के कारण भी कई जगह सड़क की स्थिति दयनीय है।
रोड सेफ्टी काउंसिल नहीं हो सकी सक्रिय
सड़क हादसों पर काबू पाने के लिए जम्मू कश्मीर में रोड सेफ्टी काउंसिल की वर्ष सितंबर 2017 से लेकर जून 2018 तक एक भी बैठक नहीं हुई थी। पूर्व राज्यपाल एनएन वोहरा ने राजभवन छोडऩे से चंद दिन पहले बैठक की। उनके जाने के बाद कोई बैठक नहीं हुई है। निर्वाचित सरकार की स्थिति में परिवहन मंत्री काउंसिल अध्यक्ष होंगे या राज्य के मुख्यसचिव। वर्ष 2017 में इसकी एक बैठक राज्य मुख्य सचिव के नेतृत्व में हुई थी। गत वर्ष किश्तवाड़ में ही मचैल यात्रा के दौरान दो अलग-अलग सड़क हादसों में 20 लोगों की मौत पर तत्कालीन राज्यपाल एनएन वोहरा की फटकार के बाद तीन अक्टूबर 2018 को परिवहन विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव असगर सामून ने आदेश जारी कर जिला सड़क सुरक्षा समितियां गठित कीं। लेकिन समितियां भी सड़क सुरक्षा परिषद की तरह सिर्फ कागजों तक ही सीमित हैं।
जिला सड़क सुरक्षा समितियों की जिला स्तर पर लगभग वही जिम्मेदारियां हैं जो सड़क सुरक्षा परिषद की हैं। स्टेट रोड सेफ्टी फंड के लिए सितंबर 2018 में नियम बने और 15 दिसंबर 2018 को पहली बार राज्य सरकार ने इसके लिए आठ करोड़ रुपये का फंड जारी किया था। पर इनकी सक्रियता आज तक नहीं दिख पाई।
पर जिम्मेवारी किसी की नहीं
क्षेत्रीय परिवहन आयुक्त धनंतर सिंह ने कहा कि हादसे की जांच की जा रही है। हादसे का कारण अनफिट वाहन या पुराना वाहन नहीं है। हादसे की शिकार हुई गाड़ी करीब एक साल पुरानी थी। शुरुआती जांच में जो पता चला है कि उसके मुताबिक सड़क की स्थिति और ओवरलोडिंग को हादसे का जिम्मेदार माना जा सकता है। लेकिन जांच पूर होने के बाद ही इस पर पक्के तौर पर कुछ कहा जाएगा।
आइजी ट्रैफिक अलोक कुमार ने कहा कि किश्तवाड़ की घटना दुखदायी है। हादसे के कारणों की जांच का आदेश दे दिए हैं। ट्रैफिक पुलिस के पास सीमित संसाधन हैं। मानव श्रम भी अपर्याप्त हैं। हर जगह वाहनों की निगरानी के लिए, नियमों के पालन यकीनी बनाने के लिए ट्रैफिक पुलिसकर्मी को तैनात करना मौजूदा परिस्थितियों में मुश्किल है। सड़क हादसे की वजह हमेशा वाहन चालक की लापरवाही या नियमों की अनदेखी नहीं होती, कई बार सड़क की स्थिति और मौसम भी कारण बन जाता है।
डीसी किश्तवाड़ अंग्रेज सिंह राणा ने कहा कि जिस जगह पर यह हादसा हुआ है वहां पर सड़क ज्यादा खराब नहीं है। इतना जरूर है कि वह उस पर तारकोल नहीं बिछाया गया है लेकिन हादसे के बारे में पूरी तरह से साफ नहीं कहा जा सकता। इतना जरूर है कि इसमें या तो चालक की गलती है और या कोई तकनीकी खराबी भी हो सकती है। इसकी पूरी जांच करवाई जाएगी।
वर्ष सड़क हादसों की संख्या घायलों की संख्या मृतकों की संख्या
2010 6120 8655 1073
2011 6644 10108 1120
2012 6709 9776 1165
2013 6469 8681 990
2014 5861 8043 992
2015 4638 6076 688
2016 5501 7677 958
2017 5624 7419 926
2018 5529 7250 928
नंबर गेम
-9050 लोगों ने जनवरी 2010 से लेकर दिसंबर 2018 तक सड़क हादसों में गंवाई जान
-3800 सड़क हादसे 2010 से पहली जुलाई 2019 तक किश्तवाड़, रामबन व डोडा में हुए
-1200 लोगों की मौत और 6300 लोग हादसों में घायल हुए हैं किश्तवाड़, रामबन और डोडा में नौ वर्ष के दौरान