आर्थिक समृद्धि के बिना स्वतंत्रता जीने योग्य नहीं है।
क्योंकि
भगवान बुद्ध ने कहा था-
गरीबी और भूख सबसे बड़ा रोग है। गरीब रहकर जीवन बर्बाद कर देना कोई आदर्श नहीं है। भारत के पिछड़े, अति पिछड़े, दलित अति दलित,शोषित, वंचित व अल्पसंख्यक समाज के लोगों के मुक्ति का मार्ग धर्म शास्त्र व मंदिर नहीं है बल्कि हमारे समाज का उद्धार उच्च शिक्षा, व्यवसाय, रोजगार तथा उच्च आचरण व नैतिकता में निहित है। तीर्थ यात्रा व्रत, पूजा-पाठ व कर्मकांड में कीमती समय बर्बाद मत करो। धर्म ग्रंथों का अखंड पाठ करने यज्ञ हवन में आहूति देने व मंदिरों में माथा टेकने से हमारी दास्ता दूर नहीं होगी, हमारे गले में पड़ी तुलसी की माला गरीबी से मुक्ति नहीं दिलाएगी, काल्पनिक देवी देवताओं की मूर्तियों के आगे नाक रगड़ने से हमारी भुखमरी दरिद्रता, गुलामी दूर नहीं होगी। अपने पूर्वजों की तरह हम भी चिथड़े लपेटकर जीना नहीं चाहते। सड़ा गला आनाज खाकर जीवन बिताना नहीं चाहते। दड़बे में रहकर जीवन जीना नहीं चाहते। इलाज के अभाव में तड़प तड़प कर जीना नहीं चाहते। भाग्य व ईश्वर के भरोसे मत रहो। हमें अपना उद्धार खुद ही करना है। धर्म मनुष्य के लिए है मनुष्य धर्म के लिए नहीं और जो धर्म हमें इंसान नहीं समझता वह धर्म नहीं अधर्म है। जहां ऊंच-नीच की व्यवस्था है वह धर्म नहीं गुलाम बनाए रखने की बहुत गहरी साजिश है।
. डॉ राजेंद्र सिंह बौद्ध
डायरेक्टर
... शाक्यमुनि बुद्ध फाउंडेशन
मो0 नं0-94157 60603
क्योंकि
भगवान बुद्ध ने कहा था-
गरीबी और भूख सबसे बड़ा रोग है। गरीब रहकर जीवन बर्बाद कर देना कोई आदर्श नहीं है। भारत के पिछड़े, अति पिछड़े, दलित अति दलित,शोषित, वंचित व अल्पसंख्यक समाज के लोगों के मुक्ति का मार्ग धर्म शास्त्र व मंदिर नहीं है बल्कि हमारे समाज का उद्धार उच्च शिक्षा, व्यवसाय, रोजगार तथा उच्च आचरण व नैतिकता में निहित है। तीर्थ यात्रा व्रत, पूजा-पाठ व कर्मकांड में कीमती समय बर्बाद मत करो। धर्म ग्रंथों का अखंड पाठ करने यज्ञ हवन में आहूति देने व मंदिरों में माथा टेकने से हमारी दास्ता दूर नहीं होगी, हमारे गले में पड़ी तुलसी की माला गरीबी से मुक्ति नहीं दिलाएगी, काल्पनिक देवी देवताओं की मूर्तियों के आगे नाक रगड़ने से हमारी भुखमरी दरिद्रता, गुलामी दूर नहीं होगी। अपने पूर्वजों की तरह हम भी चिथड़े लपेटकर जीना नहीं चाहते। सड़ा गला आनाज खाकर जीवन बिताना नहीं चाहते। दड़बे में रहकर जीवन जीना नहीं चाहते। इलाज के अभाव में तड़प तड़प कर जीना नहीं चाहते। भाग्य व ईश्वर के भरोसे मत रहो। हमें अपना उद्धार खुद ही करना है। धर्म मनुष्य के लिए है मनुष्य धर्म के लिए नहीं और जो धर्म हमें इंसान नहीं समझता वह धर्म नहीं अधर्म है। जहां ऊंच-नीच की व्यवस्था है वह धर्म नहीं गुलाम बनाए रखने की बहुत गहरी साजिश है।
. डॉ राजेंद्र सिंह बौद्ध
डायरेक्टर
... शाक्यमुनि बुद्ध फाउंडेशन
मो0 नं0-94157 60603