पत्रकारिता बनाम चाटुकारिता _ फरमान अब्बासी


किन पत्रकारों की मिसाल दू, जो स्थानीय लेवल पर ही नही बल्कि राष्ट्रीय लेवल पर भी अपना  वजूद, अपना प्रभाव गवा चुके है। किसी ने खूब ही कहा है कि जो जितना बड़ा चापलूस, वो उतना ही बड़ा पत्रकार नज़र आता है। आज अधिकारियों को अपना गुड़ वर्क जनता को दिखाने के लिए पत्रकारों को ढूंढने या उन्हें बुलाने की आवश्यकता नही पड़ती बल्कि लाइन में लगे कुछ कथित पत्रकार उनकी तारीफ लिखने का मौका तलाश करते है, तारीख भी ऐसी लिखी जाती है कि पढ़कर हंसी आना स्वाभाविक है। 151 में चालान होने पर भी बहुत बड़ा गुडवर्क दिखा, एसएसपी से लेकर सिपाही तक की पीठ थपथपाई जाती है, और हा उस खबर में तारीफ के सिवा 5w+1h कही नज़र नही आता। आज हाल ये है कि शामली के पत्रकार को इंसाफ दिलाने के लिए स्वयं पत्रकारों को धरना देना पड़ता है, कई समाजसेवी भी उनके पक्ष में आते है तब जाकर कुछ हद तक उन्हें इंसाफ मिलता है, लेकिन क्या बाद में दी गई पुलिसवालो को सजा उस पत्रकार को उसका छीना हुआ सम्मान दोबारा लौटा पाएगी। चापलूसी के नाम पर पत्रकारिता को दफन करने की  साजिश हो रही है। यही वजह है कि हर कोई हावी नजर आता है। सच कहें तो पत्रकार समाज का आईना होता है। उसकी कलम ही उसकी तलवार और उसका अभिमान होती है। वो कद या काठी से नही, बल्कि अपनी कलम से अपने वजूद का अहसास कराता है। उसकी काबिलियत और हूनर ही उसकी सबसे बड़ी ताकत होती है। एक कलमकार को किसी की चापलूसी या अपने चेहरे को अधिकारियों में मशहूर करने की जरूरत नही होती, क्योकि उसकी कलम ही उसकी पहचान होती है, आज भी बहुत ऐसे कलमकार है जिनकी कलम का लोहा माना जाता है अगर मुज़फ्फरनगर की ही बात करूं तो *अरविंद भारद्वाज, उत्तम चन्द शर्मा, अनिल रॉयल, गुलफाम अहमद, राशिद जैदी, विवेक चौहान, ऋषिपाल, सलाऊदीन, राकेश त्यागी, के अलावा जागरण ब्यूरोचीफ, उजाला ब्योरोंचीफ़* आदि बहुत पत्रकार मौजूद है जिनके कारण पत्रकारिता जिंदा है। इसी तरह देश मे पत्रकारिता की गरिमा को रवीश कुमार, अभिसार शर्मा, प्रसूनवाजपायी ने जिंदा रखा है। मैं सभी सच्चे कलमकारों को दिल से सेल्यूट करता हूँ, और उनकी हिफाजत की दुआ भी कर रहा हूँ।

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