अनेक पत्रकार संघर्षग्रस्त क्षेत्रों से रिपोर्टिंग करते हुए मारे जाते हैं. लड़ाई के मोर्चे पर न जाने कितने पत्रकारों ने अपनी जान गंवाई है. लेकिन एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि अखबार और टीवी चैनल अपने पत्रकारों का जीवन बीमा भी नहीं कराते. पत्रकारिता एक ऐसा अभागा पेशा है जिसमें पेंशन की कोई सुविधा नहीं है. इसीलिए बुढ़ापे में भी पत्रकार काम करते नजर आते हैं. पत्रकार संगठनों का दायित्व है कि वे देश भर में सरकार और मीडिया के मालिकों का ध्यान इन समस्याओं की ओर आकृष्ट करें ताकि पत्रकारों की सुरक्षा के बेहतर इंतजाम हो सकें और उनकी मृत्यु की स्थिति में उनके परिवार के लोगों को राहत उपलब्ध कराई जा सके. यह केंद्र और राज्य सरकारों का संवैधानिक दायित्व है कि वे यह सुनिश्चित करें कि पत्रकार बिना किसी खौफ के अपना काम कर सकें और उनकी अभिव्यक्ति की आजादी पर आंच न आने पाए. लेकिन खुद अभिव्यक्ति की आजादी पर बंदिशें लगाने वाली सरकारें क्या कभी ऐसा करेंगी?