अनुशासनहीनता के आरोप में अगर कोई फौज या पुलिस बल से बर्खास्त हुऐ, तो वो पांच साल तक नही लड़ सकता चुनाव

वाराणसी सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने तेज बहादुर यादव का पर्चा खारिज हो गया है. इसका कयास उसी दिन से लगाया जा रहा था, जिस दिन सपा, बसपा और राष्ट्रीय लोक दल ने अपने साझा उम्मीदवार के तौर पर शालिनी यादव की जगह तेज बहादुर को उतारने का फैसला किया था. जन प्रतिनिधित्व कानून इस मामले में बहुत साफ है. अनुशासनहीनता के आरोप में अगर कोई फौज या पुलिस बल से बर्खास्त हुआ है, तो वो पांच साल तक चुनाव लड़ने के योग्य नहीं है.लेकिन जानते-बूझते तेज बहादुर को खड़ा किया गया और अब जब पर्चा खारिज हो गया, चुनाव आयोग से लेकर वाराणसी का जिला प्रशासन तक निशाने पर है. सपा, बसपा तो ठीक, जो अरविंद केजरीवाल 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के सामने करारी शिकस्त हासिल करने के बाद दोबारा वाराणसी की तरफ नजर उठाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए, वो भी आरोप लगा रहे हैं कि तेज बहादुर से डर गए प्रधानमंत्री और इसलिए साजिश के तहत पर्चा खारिज करवा दिया.

सवाल उठता है कि आखिर तेज बहादुर के व्यक्तित्व में वाकई कुछ ऐसा है, जिसमें कोई आम आदमी अपना नायक तलाश सके. आखिर क्यों तेज बहादुर को हीरो बनाने में लगी हैं कई राजनीतिक पार्टियां. आम तौर पर फौज या पुलिस दल में भगोड़े, अनुशासनहीन और बर्खास्त किए जाने वाले आदमी की कोई पूछ नहीं होती. लेकिन चुनाव का सीजन है और अगर ऐसे में तेज बहादुर के सहारे बंदूक दागी जा सकती है तो फिर भला इससे विरोधी दलों को इनकार कैसे हो सकता है. वो भी तब जब निशाने पर मोदी हों. लेकिन तेज बहादुर में नायक या अपना प्रतिनिधि तलाशने में लगी पार्टियों ने राजनीति को उस स्तर पर पहुंचा दिया है, जहां यह फर्क करना मुश्किल है कि आखिर किस तरह के फौजी को आप अपना हीरो मानेंगे. तमाम प्रतिकूल परिस्थितियों में देश की सेवा और सुरक्षा करने वाले जवान को या फिर उस शख्स को, जिसने अपनी पूरी नौकरी के दौरान लगातार अनुशासनहीनता का परिचय दिया हो.

खराब खाने की शिकायत वाला वीडियो हुआ वायरल

तेज बहादुर के बारे में देश का लोगों का तब ध्यान गया, जब उसने 2017 के जनवरी महीने में अपने फेसबुक अकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट किया, वो भी बीएसएफ की वर्दी पहने हुए. तेज बहादुर ये बयान कर रहा था कि कितना खराब खाना बीएसएफ में परोसा जा रहा है, जली हुई रोटी और पतली दाल का हवाला देकर. उस वीडियो ने सनसनी मचा दी और सोशल मीडिया में वो वायरल हो गया. ये पहला मौका था, जब फौज या किसी अर्द्धसैनिक बल में काम करने वाले किसी जवान ने इस तरह की हरकत की हो. ध्यान जाना स्वाभाविक था. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मामले में जांच के आदेश भी दिए. इस वाकये से आलोचना के घेरे में आई बीएसएफ ने एक स्वतंत्र संस्था से अपने यहां परोसे जाने वाले भोजन की गुणवत्ता की जांच करवाई. जांच की डीआरडीओ से जुड़े संगठन डीआईपीएएस ने. इस संगठन ने अपनी जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें साफ तौर पर ये बताया गया कि बीएसएफ के मेस या चौकियों में परोसे जाने वाले भोजन में कोई खराबी नहीं है और उसकी गुणवत्ता बेहतर है.

14 दिनों की सख्त कैद की मिली थी सजा

सवाल ये उठता है कि आखिर तेज बहादुर ने ऐसा क्यों किया. इसके लिए ये आवश्यक है कि बीएसएफ से फरवरी 2018 में बर्खास्त हो चुके इस शख्स के करियर की पड़ताल की जाए. रिकॉर्ड के तौर पर तेज बहादुर का संबंध हरियाणा के महेंद्रगढ़ से है और पिता का नाम शेर सिंह है. शेर सिंह के पांच बेटों में सबसे छोटा है तेज बहादुर. तेज बहादुर ने 20 जनवरी 1996 को बीएसएफ ट्रेनी रिक्रूट के तौर पर ज्वाइन की. शुरुआती ट्रेनिंग के बाद उसे तीस अक्टूबर 1996 को बीएसएफ की 29वीं बटालियन में बतौर कांस्टेबल शामिल किया गया. बटालियन में शामिल होने के पहले और ट्रेनिंग के दौरान ही तेज बहादुर के लक्षण दिखने शुरू हो गए थे. ट्रेनिंग के दौरान नए जवानों को सबसे पहले अनुशासित होना सिखाया जाता है. ट्रेनिंग के दौरान ही तेज बहादुर बिना अनुमति के गायब हो गया था, जिसे फौज की भाषा में भगोड़ा होना कहा जाता है. इस वजह से बीएसएफ एक्ट के सेक्शन 19 ए के तहत तेज बहादुर को 25 सितंबर 1996 को 14 दिनों की सख्त कैद की सजा सुनाई गई. लेकिन ये तो बस शुरुआत थी. एक के बाद एक गंभीर किस्म की अनुशासनहीनता

इसके बाद भी तेज बहादुर की अनुशासनहीनता का सिलसिला रुका नहीं. नियमित अंतराल पर वो एक के बाद एक गंभीर किस्म की अनुशासनहीनता करता रहा और सजा भी पाता रहा. मसलन 28 सितंबर 2003 को उसे सात दिनों की सख्त कैद की सजा सुनाई गई. ये सजा बीएसएफ एक्ट के सेक्शन 40 के तहत सुनाई गई यानी दिशा-निर्देशों को न मानना और इस तरह अनुशासन तोड़ना. चार साल बाद फिर से तेज बहादुर ने अनुशासनहीनता बरती और इस बार बीएसएफ एक्ट के सेक्शन 26 और 40 के तहत उसे 27 सितंबर 2007 को 28 दिनों की सख्त कैद की सजा सुनाई गई. अमूमन तीन ऐसी गंभीर हरकतों के बाद फौज या बीएसएफ जैसे संगठन से बर्खास्त कर दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन अपने परिवार का अकेला पालनहार होने की बात कर तेज बहादुर ने दया की भीख मांगी और इस तरह वो बर्खास्तगी से बचा.

सेवा अवधि में हुई तीन साल की कटौती

लेकिन कहानी यही खत्म नहीं हुई. तीन साल बाद फिर से एक बड़ा बखेड़ा किया तेज बहादुर ने. जब उसकी बटालियन मार्च 2010 में भारत-बांग्लादेश सीमा पर किशनगंज के पास तैनात थी, उस वक्त उसने अपने कंपनी कमांडर को न सिर्फ मां-बहन की गालियां दीं, बल्कि आगे जाकर गश्त करने के आदेश को मानने से भी मना कर दिया. हद तो ये हुई कि उसने अपने कंपनी कमांडर इंस्पेक्टर मोहन सिंह को गोली मारने की धमकी तक दे डाली. इस मामले में एक बार फिर से तेज बहादुर का कोर्ट मार्शल हुआ और बीएसएफ एक्ट के सेक्शन 20 ए और सी के तहत उसे न सिर्फ 89 दिन की सख्त कैद की सजा सुनाई गई, बल्कि उसकी सेवा अवधि में भी तीन साल की कटौती कर दी गई.

दागदार है तेजबहादुर का व्यक्तित्व

ये किस्सा ये बताने के लिए काफी है कि जिस तेज बहादुर को देशभक्त वीर जवान के आदर्श मॉडल के तौर पर पेश किया जा रहा है, उसका अपना व्यक्तित्व कितना दागदार रहा है. जहां तक फेसबुक पर खाने की शिकायत वाला वीडियो पोस्ट कर सनसनी मचाने वाली तेज बहादुर की हरकत का सवाल है, उसके पीछे की कहानी भी रोचक है. बीएसएफ के उच्च पदस्थ सूत्र बताते हैं कि तेज बहादुर की सीमा की कठिन परिस्थितियों में ड्यूटी करने की इच्छा नहीं होती थी. ऐसे में जब उसे जनवरी 2017 में जम्मू सेक्टर के तहत नियंत्रण रेखा के पास बटालियन के एडमिन बेस पर रखा गया, तो वो नाराज हो गया और उसने अपनी पोस्टिंग कही कम दबाव वाली जगह पर करने की मांग अपने अधिकारियों के सामने रखी. जब उसकी ये मांग नहीं मानी गई, तो आदत से मजबूर उसने एक बार फिर से ड्रामा किया और घटिया भोजन की कहानी सोशल मीडिया पर वायरल की.

भूख हड़ताल कर किया ब्लैकमेल

तेज बहादुर के इस ड्रामे के बाद जब बीएसएफ ने इस मामले में जांच-पड़ताल शुरू की, तो घबराये तेज बहादुर ने भूख हड़ताल कर डाली और कह दिया कि अगर उसको स्वैच्छिक सेवानिवृति नहीं दी गई, तो वो आमरण अनशन करेगा. जाहिर है उसे साफ पता था कि जांच-पड़ताल के बाद उसे एक बार फिर सजा होगी और भविष्य अंधकारमय रहने वाला है, ऐसे में अगर बर्खास्तगी की जगह वीआरएस मिल जाता, तो पेंशन और बाकी सुविधाएं नौकरी छोड़ने के बाद उसे मिलती, जिसका हकदार वो बर्खास्तगी के बाद नहीं

फरवरी 2018 में बीएसएफ से विदाई

बीएसएफ अधिकारियों ने तेज बहादुर की इस ब्लैकमेलिंग पर ध्यान नहीं दिया और मार्च से अप्रैल 2017 के दौरान उसका कोर्ट मार्शल हुआ समरी सिक्योरिटी फोर्स कोर्ट यानी एसएसएफसी में. इस कानूनी प्रक्रिया के बाद उसे कुल छह आधार पर अनुशासनहीनता और कर्तव्य में लापरवाही का दोषी पाया गया. इसी के बाद आखिरकार फरवरी 2018 में उसकी बीएसएफ से विदाई हो गई, लेकिन शान-शौकत से नहीं, बल्कि बर्खास्तगी के साथ, जिसकी भूमिका वो खुद नौकरी ज्वाइन करने के साथ ही बनाने में लगा हुआ था.

सवाल ये उठता है कि आखिर तेज बहादुर का ये करियर जो किसी भी आदर्श जवान के लिए प्रेरणा नहीं, बल्कि शर्मिंदगी का सबब हो सकता है. उसको इस तरह से महिमामंडित किया जाना क्या सही है. राजनीति में सब कुछ जायज है, शायद यही इसका एकमात्र जवाब हो सकता है. जब देश की सीमा की सुरक्षा करने वाले बल से बर्खास्त सिपाही को यूपी की सियासत में तेज बहादुर यादव के तौर पर पेश कर नायक तलाशने की असफल ही सही, लेकिन सनसनीखेज कोशिश की जाए।

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