बुराई से रोककर इंसान को परहेजगार बनाता है रमजान _मोहम्मद इदरीश उन्नाव


रमजान का महीना इबादत का षौक और रूह की पाकीजगी का जज्बा पैदा करता हैं।रमजान इंसान को जहां परहेजगार बनाता हैं वहीं दूसरों की तकलीफों का अहसास भी कराता हैं।ताकि इंसान गरीब बेसहारा लोगों के दुख,दर्द को करीब से महसूस कर उनकी सेवा कर सके।रहमतों,बरकतों और नेकियों का महीना रमजान हिजरी कैलैंडर का नौंवा महीना हैं।इस्लाम के मुताबिक अल्लाह नें अपनें बंदों पर पांच चीजें फर्ज की हैं।जिनमें कलमा,नमाज,रोजा,हज और जकात षामिल हैं।रोजें का फर्ज अदा करनें का मौका रमजान में आता हैं।कहा जाता हैं कि रमजान में हर नेकी का सवाब 70 नेकियों के बराबर मिलता हैं और इस महीनें में इबादत करनें पर 70 गुना सवाब हासिल होता हैं।रमजान के ही मुबारक महीनें में अल्लाह नें पैगम्बरे इस्लाम हजरत साहब पर कुरानें करीम नाजिल किया था।यह भी कहा जाता हैं कि इस महीनें में अल्लाह शैतान को कैद कर देता हैं।
रोजे की शुरूआतःहजरत आदम अलैहिस्सलाम के जमाने से ही रोजे की शुरूआत हो गई थी।उनके जमाने में अययाम बैज,यानी हर महीनें की तेरहवीं,चैदहवी व पन्द्रवीं तारीख को रोजें रखे जाते थे।षुरू में रोज में इतनी छूट थी कि जिसका मन करें,रोजा रखे या फिर रोजे के बदले मे किसी गरीब इंसान को भरपेट खाना खिला दे।अल्लाह नें अपने बंदो की कमजोर स्थिति पर फिक्र किया और फिर धीरे धीरे रोजे की आदत डलवाई,इसके बाद जब लोगों को रोजे की आदत हो गई तो फिर बीमार लोगों के अलावा किसी को भी रोजे की छूट नही दी गई।
रोजे का संदेशःरोजा रखनें से इंसान का जमीर इतना रोशन हो जाता हैं कि वो हर तरह की बुराई के मार्ग से किनारा कर लेता हैं।उसके दिल में इंसानियत के लिए खिदमत करनें का वो जज्बा पैदा होता हैं कि जो इंसान को सत्य के रास्तें पर ले जाता हैं।क्योकि रोजा रखने से मुराद सिर्फ भूखे प्यासे रहनें भर से नही हैं।रोजे रखनें मे तमाम तरह के वो परहेज बतायें गए हैं कि जो इंसान को कल्याण के मार्ग पर ले जातें हैं।रोजा वही हैं कि जिसमें ना बुरा देखा जाए,ना बुरा कहा जाए और ना ही बुरा सुना जाए।किसी का भी दिल ना दुखाया जाए।किसी की चुगली गीबत ना की जाए।
रोजे में रखें ध्यानःरोजे रखनें वालों में बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं कि जिन्हें रोजे के तमाम फराइज मालूम नही होते हैं।जिसकी वजह से यदि उनसे कुछ काम जानबूझ कर या अनजानें में हो जाते हैं तो वह इस उलझन में पड जाते हैं कि उनका रोजा बरकरार हैं,टूट गया हैं या मकरूह हो गया हैं।मकरूह का मतलब रोज में खलल पडनें से हैं।कुल्ली करनें, नाक में पानी डालते समय पानी हल्क और नाक के आखरी हिस्से तक नही पहुंचे,वरना रोजा टूट जायेंगा।कोई रोजेदार के मुंह में जबरदस्ती कुछ डाल दे और वह पेट में चला जाए तो रोजा टूट जाएगा,कुल्ला करते समय पानी पेट में चला जाए और इंसान को रोजे की बात पहले से ही याद हो तो रोजा टूट जाएगा,कान में तेल डालनें से रोजा टूट जाएगा,भूल में खानें पीनें से रोजा नही टूटता हैं।
तरावीह और शबे कद्रःरमजान का चांद देखनें के साथ ही ईशा की नमाज के बाद तरावीह पढनें का सिलसिला आरम्भ हो जाता हैं।इस महीनें में तीन अषरे होते हैं।एक अषरा दस दिन का होता हैं।रमजान के आखिरी में षबे कद्र के बारे में कुरआन में कहा गया हैं कि यह रात हजार रातों से बेहतर हैं।यानी इस रात में इबादत करनें करनें का सवाब एक हजार रातों की इबादत करनें के बराबर हैं।रमजान की 21,23,25,27 और 29 तारीख को पूरी रात इबादत करते हैं।

 *क्राइम ब्यूरो मोहम्मद इदरीश उन्नाव*

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