समय की मांग है तेजी से धम्म प्रचार करो, समय जा रहा है


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हमारा समाज शीलवान बनें, खुशहाल हो.इसके लिए बुद्ध और उनके धम्म  यानी उनकी मानवतावदी शिक्षाओं का प्रचार बहुत जरूरी है। बाबासाहेब ने कहा था कि बुद्ध के नाम पर पूजा पाठ,समारोह, भोजन,भवन निर्माण में खर्च भले ही कम हो लेकिन उनके द्वारा रचित महान ग्रंथ 'बुद्ध और उनका धम्म' को बहुत तेजी से घर घर पहुंचाया जाना जरूरी है। यही ग्रंथ प्रचारक का काम करेगा। लोग पढेगे तो बुद्ध के प्रति श्रद्धा जगेगी ,शील का पालन करेंगे।विपस्सना ध्यान की ओर चलेंगे। जीवन सार्थक होगा।
   लेकिन धम्म का पर्याप्त प्रचार नहीं होने के कारण हम साल मे एक बार बुद्ध पूर्णिमा मनाने तक ही सीमित हो गए है। इस कारण जहां बुद्ध विहार बनाए गए है वे भी सुने पड़े है,या चार पाच बुर्जुग नजर आते है क्योंकि युवा अनुयायी उपासक नहीं है। बुद्ध के नाम पर संस्थाएं भी खूब है लेकिन पद व पैसे के कारण अक्सर विवादों में ही रहती हैं,धम्म प्रचार नहीं करती है, समारोह करते है,बुद्ध वंदना, त्रिशरण को मंत्र की तरह पढकर कर्मकांड करते है,खीर पुड़ी खाकर इतिश्री कर लेते है। धम्म प्रचार उनकी प्राथमिकता नहीं होती है।उनका ज्यादा जोर 'बौद्ध' सरनेम लिखने,अपनी संस्था की कागजी शाखाएं खोलने, बौद्ध कर्मकांड करने व चंदा लेने में ही रहता है। 

   अधिकतर भिक्षुओं की दशा तो और भी दयनीय है अधिकतर भिक्षु तो धम्म प्रचार का काम करते ही नहीं हैं सिर्फ बुद्ध विहारों में महंत की तरह विराजे रहते है ,न ध्यान करते हैं और न गांव गांव जाकर देशना देते हैं। और तो और भिक्षु भी विकारों से भरे रहते हैं,चिवर तो सिर्फ दिखावा होता है व्यवहार में पूरे धन जोड़ते हुए गृहस्थ नजर आते है। चेले बनाने में ज्यादा रूची रखते है।गांवों में देशना देने की बजाय शहर में अफसरों के घर दक्षिणा इकट्ठा करते है, शादी ब्याह या अन्य कर्मकांड कराने में ही व्यस्त रहते हैं। कई जगहों पर तो भिखारियों की तरह भीख मांगते नजर आते हैं।इसलिए बाबासाहेब ने भिक्षुओं से उम्मीद छोड़कर हर उपासक को धम्म प्रचारक की भूमिका निभाने का आह्वान किया था।
     दूसरी ओर जमीनी हकीकत यह है कि इस समय देश में बुद्ध ,उनके धम्म व ध्यान के प्रति बहुजन समाज में खासतौर से गांवों कस्बों में जबरदस्त आकर्षण हैं।युवा पीढी में बुद्ध को पढना, जानना व अपनाने की चाह तेजी से बढी है।बस जरूरत है कि जल्दी व तेजी से उन तक बुद्ध के चित्र व साहित्य पहुंचा दिया जाय। देश में समर्पित दानवीरों , उपासकों ,भिक्षुओं व विद्वानों द्वारा जहां यह पहुंच गया हैं वहां तेजी से वैचारिक व सांस्कृतिक बदलाव हो रहे हैं। दैनिक जीवन की सड़ी गली व थोपी गई रूढ रिवाज व परम्पराएं धराशायी होकर समाज को समृद्ध बनाने वाली परम्पराएं स्थापित हो रही है।लोगों के जीवन में कायापलट हो रही है इसीलिए तो पूरी दुनिया बुद्ध की ओर चल पड़ी है। सिर्फ बहुजन ही नहीं बल्कि जिन सवर्णों में हम रात दिन सिर्फ कोसते रहते हैं उनमें भी प्रगतिशील लोग बुद्ध व बाबासाहेब को अधिक पढना व जानना व अपनाना चाहते है। उल्टा बुद्ध की ध्यान साधना विपस्सना का लाभ तो जागरूक विदेशी व भारत के युवा सवर्ण ही ले रहे हैं बहुजन समाज तो निर्रथक मुद्दों में ही ज्यादा उलझा रहता है।
   देश में इस समय धम्म प्रचार के लिए माहौल बहुत ही अनुकूल है, उपजाऊ भूमि रूपी जागरूक युवा पीढ़ी का खेत खाली है, बस हमें तो समाज को खुशहाल करनेवाले मानवतावदी धम्म का बीज बोना है,यह  काम किसी की आलोचना किए बिना शांति से किया जा सकता है।और यह काम यदि बहुजन समाज व प्रगतिशील सवर्ण लोगों ने नहीं किया तो समाज को जाति,धर्म के नाम पर गुमराह कर नफरत फैलाने वाली ताकतें तैयार बैठी है,यह काम वे कर भी रही है और तेजी से करेंगी।
  Pay back to society ...हम सभी समाज की खुशहाली के लिए अपना योगदान देने में पूरी तरह सक्षम हैं। समय,धन, ज्ञान, हुनर, श्रम आदि किसी भी रूप में। तथागत कहते है जीवन अनित्य है ,सभी को एक दिन जाना है इसलिए समय के महत्व को समझ कर जितना जल्दी हो सकें शरीर,मन व वाणी से कुशल कर्म कर लें, धम्म के मार्ग पर चलते हुए धम्म प्रचार कर जीवन सार्थक बना लें।
🌷 *भवतु सब्ब मंगल*🌷
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