डा.भीमराव अम्बेडकर ने1956 मे विदेश भ्रमण के लिए गये उसके बाद बौद्ध धर्म की दीक्षा ली तथा विदेशी संस्कृति को अपनाया - रामप्रसाद कुशवाहा

डा.भीमराव अम्बेडकर ने1956 मे विदेश भ्रमण के लिए गये उसके बाद बौद्ध धर्म की दीक्षा ली तथा विदेशी संस्कृति को अपनाया।
1957 मे दलित समाज के 80हजार से अधिक लोगों ने उसी बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।
मौर्य, कुशवाहा, शाक्य,शैनी समाज के लोग बसपा के अनुयायी बने दलितों से बौद्ध दीक्षा प्राप्त की तथा दलितों के अनुयायी बने।हम जय राम जी की छोड़ कर नमो बुद्धाय व जय भीम करने लगे ।हमारी जय राम जी की ब्राह्मणों व दलितों को पसंद नही थी।
जो लोग हमारी संस्कृति को मिटाना चाहते थे ,उन्होंने संस्थायें खोली तथा चेले बनाने का अभियान चलाया।
हम यदि जय गुरु देव की संस्था मे चेले बने तो जयगुरुदेव रटने लगे
हम अपना हित अनहित के बारे मे बिना सोचे समझे समर्पित भाव से संस्था या पार्टी के अनुयायी बन जाते हैं इसलिये हमारे(किसान वर्ग)हित के बारे मे कोई नही सोचता।
अंग्रेजों ने शासन प्रशासन मे जनसंख्या के अनुपात मे भागीदारी दिये जाने हेतु 1931 मे जातीय जनगणनाकराई थी।
1931 की गणना के आधार पर मंडल आयोग की रिपोर्ट1990मे लागू की गई।
डा.भीमराव अम्बेडकर द्वारा सम्बिधान की रचना की गई जिसमे1931 की जनसंख्या के.आधार पर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति केलिए उनकी जनसंख्याके अनुपात मे शासन व प्रशासन मे आरक्षण की व्यवस्था की  गई ।पिछड़े वर्गके लिए भी जनसंख्या के अनुपात मे आरक्षण सुनिश्चितकरके शासन प्रशासन मे भागीदारी सुनिश्चितकी जा सकती थी परन्तु ऐसा नही कियागया यही हमारे साथ धोखा हुआ।पिछड़े वर्गके लिये संविधान की धारा340 की व्यवस्था दी गई जिसके अनुसार आयोग गठित किया जाए तथा आयोग की रिपोर्ट के आधार पर आरक्षण दिया जाए।
काका कालेलकर की अध्यक्षता मे आयोग गठित किया गया ,आयोग ने रिपोर्ट दी जिसे मा.प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरु ने रद्दी की टोकरी मे डाल दिया गया।

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